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________________ मागमधरसरि "पूज्यवर मुनिराज के उपदेश से हमारे संघ की आंखें खुली हैं। हमें नया मार्गदर्शन तथा नूतन प्रकाश मिलता रहा है । फलतः हम अपना कर्तव्य समझने लगे हैं। हम अपना संपूर्ण जीवन जिनशासन को समर्पित करने में असमर्थ हैं क्योंकि अर्थ और काम की लालसाएँ अभी पूर्णतया नष्ट नहीं हुई हैं फिर भी पूज्य मुनिराज के बताये हुए. मार्ग में भी हम यथाशक्ति पुण्य कार्य करेंगे। इस पुनीत अवसर पर मैं अपने पिताजी के स्मरणार्थ सिर्फ एक लाख पूजनीय भागों एवं प्राचीन धर्मशास्त्रों के मुद्रण-कार्य के लिए देता हूँ। मेरी प्रार्थना है कि सूरत का श्री जैन संघ हमारी यह तुच्छ रकम स्वीकार कर हमें उपकृत करे। यह एक लाख रुपयों का दान विक्रम संवत् १९६४ के वर्ष का है । आज अर्थात् संवत् २०२८ में उसका मूल्यांकन करे तो करीब साढ़े बारह लाख का दान करे और जिसने सं. १९६४ में एक लाख का दान किया हो उन दोनों का दान समान है। आज रुपये का साढ़े बारह गुना अवमूल्यन हुआ है। आगमोद्धारक एक संस्था की स्थापना की गई । उदारमूर्ति श्री गुलाबचंदभाई तथा उनके परिवार ने अपने पिता की स्मृति में एक लाख रुपये दान दिथे । अतः श्री संघने उनके पिता की याद में उक्त संस्था के साथ उनका नाम जोड़ कर उस संस्था का नाम 'शेठ देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड' रखा। इस संस्था के द्वारा एवं 'भागमोदय समिति' नामक संस्था के द्वारा मुनिराज ने अनेक आगमप्रन्थ तथा चरित्र प्रकाशित करवाये। श्रद्धावान् श्रावक संघ ने आर्थिक सहायता दी परन्तु इस से मुनिराज का काम कई गुना बढ़ गया। भंडारों के तहखाने में धरी हुई हस्त-प्रतिया प्राप्त करना कठिन था। बड़ी मुश्किल से कुछ मिलीं ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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