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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ८५४ विदित है और हमें इस पर गर्व है। संघ का प्रधान कार्यालय घोडों का चौक , जोधपुर (राजस्थान) में है। संघ-व्यवस्था की दृष्टि से प्रधान कार्यालय देश भर में फैले ग्यारह क्षेत्रीय कार्यालयों, इकत्तीस शाखा कार्यालयों व विभिन्न ग्राम नगरों व महानगरों में। स्थापित सम्पर्क सूत्रों के माध्यम से कार्य संचालित करता है। आचार्यप्रवर , उपाध्याय प्रवर आदि संत-सतीवन्द के विचरण-विहार, प्रवास, चातुर्मास, स्वास्थ्य-समाधि एवं विशिष्ट आयोजनों की जानकारी समय-समय पर संघ कार्यालय द्वारा दी जाती है। संघ द्वारा समय-समय पर क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं जिससे संघ की एकता-एकरूपता पुष्ट होती है और संघहित में सार्थक निर्णय भी किये जाते हैं। संघ की विभिन्न प्रवृत्तियों के संचालन के लिए वित्तीय आधार के रूप में आल इण्डिया श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ ट्रस्ट चेन्नई, अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी संघ पारमार्थिक ट्रस्ट इन्दौर, गजेन्द्र निधि मुम्बई , श्री गजेन्द्र फाउण्डेशन मुम्बई एवं श्रीमती शरदचन्द्रिका मोफतराज मुणोत वात्सल्य निधि संस्थाओं का सहयोग प्राप्त है। ज्ञान-दर्शन-चारित्र की उन्नति, संगठन व संघ सदस्यों में वात्सल्य, सेवा आदि लक्ष्यों से गठित अनेक संस्थाओं का संचालन संघ के संरक्षण/अन्तर्गत किया जा रहा है। प्रमुख संस्थाओं का परिचय इस अध्याय में अलग से दिया गया है। ___ चुनाव नहीं, चयन संघ-संचालन की मुख्य विशेषता रही है। संघ-संचालन में न्यायाधिपति श्री सोहननाथ जी मोदी, श्री लाभचन्दजी लोढा, श्री नथमलजी हीरावत, डॉ. सम्पतसिंह जी भांडावत, श्री मोफतराजजी मुणोत एवं श्री रतनलालजी बाफना ने अध्यक्ष पद को सशोभित किया है। कार्याध्यक्ष के रूप में डॉ. सम्पतसिंह जी भाण्डावत, श्री। रतनलालजी बाफना, श्री सायरचन्दजी कांकरिया व श्री कैलाशचन्दजी हीरावत ने अपनी महनीय भूमिका का निर्वहन किया है। संघ महामंत्री के रूप में श्री ज्ञानेन्द्र जी बाफना , श्री माणकमलजी भण्डारी, श्री किरोड़ीमलजी लोढ़ा, श्री जगदीशमलजी कुम्भट श्री प्रसन्नचन्दजी बाफना व श्री अरुण जी मेहता ने अपनी विशिष्ट सेवाएँ दी हैं। संघ-संरक्षक एवं शासन सेवा समिति के साथ विविध ट्रस्टों के ट्रस्टीगण एवं संघ की सहयोगी संस्थाओं के अध्यक्ष, कार्याध्यक्ष, सचिव, संयोजक आदि के सहयोग से संघ व संघ की सहयोगी संस्थाओं का सामंजस्य तो बना रहता ही है, सार्थक चिन्तन से प्रवृत्तियों का पोषण और कार्यक्रमों का क्रियान्वयन भी सफल होता है। संघ सदस्यों में गुरु हस्ती के सामायिक - स्वाध्याय और गुरु हीरा के व्यसन-त्याग संदेश की अमिट छाप है। संघ-सदस्यों का गुरु के प्रति समर्पण है और सेवा में यह संघ एक आदर्श संघ के रूप में अपनी पहचान रखता है, जिस पर सदस्यों को गर्व है। • अखिल भारतीय श्री जैन रत्न श्राविका मण्डल, घोडों का चौक, जोधपुर रलवंशीय श्रावकों की भांति संघ-सेवा में श्राविकाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। श्राविकाएँ श्रद्धा-भक्ति में, त्याग-तप में और सेवा-धर्म की साधना में अग्रणी रहती हैं। अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ की सहयोगी संस्था के रूप में श्राविका-मण्डल का पुनर्गठन २४ सितम्बर १९९४ को सूर्यनगरी जोधपुर में किया गया। इससे पूर्व यह भगवान महावीर श्राविका समिति के रूप में सक्रिय थी। ___श्राविका-मण्डल बच्चों को संस्कारित करने के साथ पारिवारिक संघर्ष घटाने और आपसी प्रेम स्थापित करने का प्रयत्न करता है। संघ-सेवा और संत-सेवा के साथ जरूरतमंद बहिनों को सहयोग करने में एवं धार्मिक कार्यक्रम ----------uae.w-namuser APKNEEMARRIEREKAARLPHABiuruPrasaraatmarMEMULNIR
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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