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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ८५२ भगवन्त की इस प्रेरणा से साधक श्रावक-श्राविकाओं का मनोबल बढ़ा। साधना-आराधना में गठित संस्थाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है. अखिल भारतीय सामायिक संघ, घोड़ों का चौक, जोधपुर आचार्यप्रवर का सामायिक-साधना पर बहुत बल था। आप फरमाते थे कि सामायिक-साधना जीवन के उन्नयन का मूल आधार है। घर-घर में इसका प्रचार होना चाहिए। आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर सुज्ञ श्रावकों ने संवत् २०१६ में अखिल भारतीय सामायिक संघ की स्थापना की। प्रारम्भ में इसका कार्य श्री चुन्नीलाल जी ललवाणी ने देखा तथा बाद में कई वर्षों तक श्री राजेन्द्र जी पटवा ने इसका संचालन किया। सम्प्रति इसके संयोजक श्री नवरतनमल जी डोसी हैं। सामायिक संघ के प्रमुख कार्य हैं १. अधिक से अधिक सामायिक साधक तैयार करना। २. सदस्यों को सामायिक साधना हेतु प्रेरित करना। ३. पुस्तकालय एवं वाचनालय खोलना। ४. साहित्य एवं सामायिक के उपकरण वितरित करना। सामायिक संघ के सदस्यों की तीन श्रेणियां रखी गई १. नैष्ठिक सदस्य- धर्मस्थान में प्रतिदिन सामायिक साधना करने वाले। २. साधारण सदस्य - माह में कम से कम चार दिन धर्मस्थान में सामायिक-साधना करने वाले। ३. प्रेमी सदस्य - प्रतिदिन २० मिनट धार्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय करने वाले। सामायिक संघ के सदस्य सप्त कुव्यसन के त्यागी होने के साथ नैतिक जीवन जीते हैं। उनकी जीवन शैली | अहिंसक होती है तथा कुरीतियों को प्रोत्साहित नहीं करते। साधना-विभाग, घोड़ों का चौक, जोधपुर साधना की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने हेतु साधना - विभाग का प्रारम्भ हुआ, जिसका संचालन साधनानिष्ठ श्रावक प्रो. चांदमल जी कर्णावट, उदयपुर ने किया तथा अब श्री सम्पतराजजी डोसी, जोधपुर इसका कार्य देख रहे हैं ।इस विभाग के द्वारा साधना-शिविरों का आयोजन किया जाता है एवं साधना की ओर गतिशील बनने के लिये श्रावकों को प्रेरित व प्रोत्साहित किया जाता है। (इ) संघ-उन्नयन हेतु गठित संस्थाएँ आचार्यप्रवर सम्प्रदायवाद से परे थे, किन्तु सम्प्रदाय को संघहित में सहायक मानते थे। सम्प्रदाय की गौरव गरिमा निरन्तर विकसित हो, एतदर्थ अखिल भारतीय स्तर पर श्रावक संघ, श्राविका-मण्डल और युवक परिषद् का गठन किया गया। इन संस्थाओं का संगठन संघ-उन्नयन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार • अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ, घोडों का चौक, जोधपुर, दूरभाष ०२९१-६३६७६३ रत्नवंशीय श्रावकों ने निर्मल संयम-साधक, दृढ प्रतिज्ञ, परम्परा के मूलपुरुष, पूज्य श्री कुशलचन्द्रजी म.सा. से
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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