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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं (iv) जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग ४ (४) जैन आचार्य चरितावली (vi) ऐतिहासिक काल के तीन तीर्थंकर । श्री महावीर जैन रत्न ग्रन्थालय, जलगाँव जैन धर्म-दर्शन के विद्यार्थियों को सभी सम्बन्धित पुस्तकें एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ३० | नवम्बर १९८२ को आचार्य श्री की सत्प्रेरणा से इस ग्रन्थालय की स्थापना की गई जिसमें जैन धर्म व साहित्य सम्बन्धी करीब २००० पुस्तकें संगृहीत है, इसका उपयोग अधिकांशतया साधु-साध्वियों के द्वारा किया जाता है। यह ग्रन्थालय रतनलाल सी बाफना जैन स्वाध्याय भवन में चालू है। इसका सम्पूर्ण खर्च समाज रत्न श्री सुरेश कुमार जी जैन द्वारा वहन किया जाता है। • श्री अखिल भारतीय जैन विद्वत् परिषद्, सी-२३५ए, दयानन्द मार्ग, तिलकनगर, जयपुर ___ आचार्यप्रवर के इन्दौर चातुर्मास में १२ नवम्बर १९७८ को 'श्री अखिल भारतीय जैन विद्वत् परिषद' की स्थापना हुई, जिसके उद्देश्य निम्न प्रकार थे १. अखिल भारतीय स्तर पर पुरानी एवं नई पीढी के जैन विद्वानों को संगठित करना। २. जैन विद्या के अध्ययन, अध्यापन, अनुसन्धान, संरक्षण-संवर्धन, लेखन-प्रकाशन, प्रचार-प्रसार आदि में सहयोग देना। ___ ३. जैन विद्या में संलग्न विद्वानों, श्रीमन्तों, कार्यकर्ताओं एवं संस्थाओं में पारस्परिक सम्पर्क एवं सामंजस्य स्थापित करना। ४. जैन विद्या में निरत विद्वानों एवं संस्थाओं के हितों की रक्षा करना एवं उन्हें यथाशक्य सहयोग देना। ५. जैन धर्म-दर्शन, इतिहास के सम्बन्ध में प्रचलित भ्रान्तियों का निराकरण करना। ६. अन्य ऐसे कार्य करना जो इस परिषद् के उक्त उद्देश्यों की सम्पूर्ति में सहायक हों। इस परिषद् के माध्यम से मुख्य रूप से स्थानकवासी परम्परा के विद्वानों का एक मंच उभरकर आया। परिषद् के द्वारा देश के विभिन्न प्रान्तों में अनेक संगोष्ठियाँ आचार्य श्री के सान्निध्य में आयोजित की गई। इन गोष्ठियों में | स्थानकवासी विद्वानों के अतिरिक्त अन्य जैन-जैनेतर विद्वानों को भी आमन्त्रित किया गया। परिषद् के स्थापना काल से ही जिनवाणी के मानद् सम्पादक डॉ. नरेन्द्र जी भानावत ने महामन्त्री का दायित्व सम्हाला और इसे व्यापक रूप देते हुये परिषद् के माध्यम से विभिन्न प्रवृत्तियों का संचालन किया, यथा (१) संगोष्ठियों का आयोजन - परिषद् ने सन् १९७९ से सन् १९९३ तक अजमेर, इन्दौर, जलगांव, | मद्रास, रायपुर, जयपुर, आबूपर्वत, कलकत्ता, भोपालगढ, पीपाडशहर, कानोड कोसाणा, पाली, जोधपुर आदि स्थानों पर कुल २० संगोष्ठियाँ आयोजित की, जिनमें बाल संस्कार, युवा पीढी,समाज सेवा, स्वाध्याय, वृद्धावस्था जैन आगम, सामायिक, पत्रकारिता, श्रावक धर्म, अपरिग्रह, धर्म, समता-साधना, कर्मसिद्धान्त , जैन सिद्धान्त प्रचार-प्रसार, अहिंसा, पर्यावरण आदि विषयों पर चर्चा की गई। __(२) ज्ञान प्रसार पुस्तकमाला (ट्रेक्ट योजना) - 'कुआ प्यासे के पास जाये' इस भावना से ज्ञान प्रसार )
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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