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________________ पंचम खण्ड: परिशिष्ट आपको प्रवर्तिनी पद से सुशोभित किया गया। अन्तिम वर्षों में स्वास्थ्य प्रतिकूल होने पर भी आप सदा समभाव में रहकर साधनाशील रहती थी । १४ | नवम्बर २००२ को जोधपुर में ही पूर्ण समाधिभाव व संथारे के साथ रात्रि में लगभग ११.४५ बजे आपका महाप्रयाण हो गया। • महासती श्री उगमकंवरजी म.सा. आपका जन्म जोधपुर में हुआ। आपके पिता सुश्रावक श्री सज्जनराजजी भंसाली तथा माता श्रीमती कुंवरीबाईजी थीं । आपके पति श्री सुखलालजी बाफना का आकस्मिक निधन हो जाने से आपको संसार से विरक्ति हो गयी । • • ८२३ आपने वि.सं. १९९७ मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी को भोपालगढ़ में महासती श्री धनकंवरजी म.सा. (बड़े) की निश्रा में भागवती दीक्षा अंगीकार की तथा संयमी जीवन में सद्गुणों का अर्जन किया । वि.सं. २००१ में नागौर शहर में आपका स्वर्गगमन हो गया। महासती श्री धनकंवरजी म.सा. (सबसे छोटे ) आपका जन्म जोधपुर में वि.सं. १९५६ के पौष माह में हुआ। आपके पिता श्रीमान् भागचन्दजी मूथा तथा माता श्रीमती सिरेबाईजी थीं । आपके पति श्री मनोहरमलजी सिंघवी का आकस्मिक निधन हो जाने से आपको संसार से विरक्ति हो गयी । आपने वि.सं. १९९८ आषाढ शुक्ला द्वितीया को जोधपुर में महासती श्री राधाजी म.सा. की निश्रा में भागवती दीक्षा | अंगीकार की । ३० वर्षों तक संयम पालन कर वि.सं. २०२८ मार्गशीर्ष कृष्णा सप्तमी को घोड़ों का चौक जोधपुर में आपने समाधिमरण को प्राप्त किया। साध्वीप्रमुखा महासती श्री सायरकंवरजी म.सा. सरलहृदया महासती श्री सायरकंवरजी म.सा. का जन्म मद्रास वि.सं. १९८३ की फाल्गुन शुक्ला दशमी को | हुआ। आपके पिता सुश्रावक श्रीमान् रिड़मलजी भण्डारी तथा माता सुश्राविका श्रीमती जतनबाईजी से आपको बचपन से ही धार्मिक संस्कार प्राप्त होते रहे, जिसके कारण आप सन्त-सतियों के दर्शन - वन्दन एवं प्रवचन श्रवण का यथायोग्य लाभ लेती रहती थीं। बीकानेर निवासी श्रीमान् शिवकरणजी मेहता खजांची के साथ आपका विवाह सम्पन्न हुआ। कुछ समय पश्चात् ही आपके पतिदेव का आकस्मिक निधन हो जाने से आपने संसार की असारता को अच्छी तरह समझ लिया तथा परम श्रद्धेय आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से वि.सं. २००३ की माघ शुक्ला त्रयोदशी । को बारणी खुर्द में जैन भागवती दीक्षा अंगीकार कर श्रमणी - जीवन को अपना पथ बनाया। आपने श्रद्धेया महासती | श्री बदनकंवर जी म.सा. की सेवा में रहकर अपना ज्ञान-ध्यान त्याग तप आगे बढ़ाया। आपकी मधुरता, विनम्रता एवं | वात्सल्य भावना आगन्तुक श्रोताओं को सहज ही प्रभावित कर लेती है। आप स्वभाव से सरल, सहिष्णु एवं भद्रिक ( महासती हैं तथा सम्प्रति महासती मण्डल में सबसे वरिष्ठ होने से साध्वी प्रमुखा हैं। आपका विचरण क्षेत्र निमाज,
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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