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________________ पंचम खण्ड : परिशिष्ट ८१५ आपमें सेवा का गुण कूट-कूट कर भरा है। आपने पूज्य गुरुदेव आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म.सा. की खूब सेवा की। आचार्यप्रवर श्री हीराचन्द्रजी म.सा. की सेवा में समर्पित हैं। सेवा तो मानो आपके साधक जीवन का लक्ष्य है । इंगित मात्र से सबकी सेवा में जुट जाना आपके साधक-जीवन की विशेषता है। आपके चातुर्मास प्राय: आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. एवं आचार्यप्रवर श्री हीराचन्दजी म.सा. के साथ हुए हैं। संवत् २०४१ का चातुर्मास आपने पंडितरत्न मानचन्द्रजी म.सा. के सान्निध्य में अहमदाबाद किया। सेवा के साथ तपस्या करने में भी आप आगे रहते हैं। प्रवचन एवं चर्चा के मध्य विषयवस्तु के प्रतिपादन में भी निपुण हैं । शान्त एवं सौम्य चेहरा, आपकी सेवा-भावना तथा संयम की सजगता को प्रतिबिम्बित करता है। • श्री गौतममुनिजी म.सा. __ मधुर व्याख्यानी श्री गौतममुनिजी म.सा. का जन्म जोधपुर जिले के पालासनी ग्राम में वि.सं.२०१९ पौष शुक्ला षष्ठी को धर्मपरायण सुश्रावक श्री जावंतराजजी आबड़ की धर्मनिष्ठ धर्मसहायिका श्रीमती शान्तादेवीजी आबड़ की कुक्षि से हुआ। ___ आपने लगभग ३ वर्ष के वैराग्य के अनन्तर आचार्यप्रवर श्री १००८ श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से पालासनी में ही वि.सं. २०३४ माघ शुक्ला दशमी १७ फरवरी १९७८ शुक्रवार को श्रमणधर्म अंगीकार किया। दीक्षा | के समय आपकी आयु मात्र १५ वर्ष थी। आपने दीक्षा ग्रहण कर अपने पिताश्री की भावना को भी साकार किया। आपके पिताश्री की भावना थी कि एक पुत्र दीक्षा अंगीकार करे तो वे सहर्ष आज्ञा प्रदान कर देंगे। दीक्षा लेकर आपने हिन्दी एवं संस्कृत भाषाओं के ज्ञान के साथ थोकड़ों एवं शास्त्रों का अभ्यास किया। प्रार्थना एवं भजनों की रचना करने में आप सिद्धहस्त कवि हैं। गायनकला में आपकी विशेष दक्षता है। आपकी मधुर कण्ठकला सहज ही लोगों को प्रभावित करती है। आपकी प्रवचन शैली बहुत सरल, सरस एवं हृदयस्पर्शी है। स्वतन्त्र चातुर्मास एवं विचरण के दौरान आपने अपने सारगर्भित, प्रवाहपूर्ण, आगमपोषित एवं रोचक प्रवचनों से जन-मानस पर अमिट प्रभाव छोड़ा है । आचार्यप्रवर श्री हीराचन्द्रजी म.सा. एवं उपाध्यायप्रवर पं. रत्न श्री मानचन्द्रजी म.सा. के महाराष्ट्र प्रवास के दौरान आपने मारवाड़ में सराहनीय भूमिका अदा की है। आपमें सेवा की भावना भी कूट-कूट कर भरी हुई है। आपने पीपाड़ में वयोवृद्ध श्री राममुनिजी म.सा. की जो दत्तचित्त होकर सेवा की वह सदैव स्मरणीय रहेगी। __ ईस्वी सन् २००० के पाली, सन् २००१ के पीपाड़ और सन् २००३ के पालासनी चातुर्मास में आपने वृद्ध सन्तों की सेवा के साथ प्रवचन-प्रार्थना आदि सभी दायित्वों का अत्यन्त कुशलतापूर्वक निर्वहन किया एवं मारवाड़ में अपनी प्रतिभा से बड़े सन्तों की कमी नहीं खलने दी। . श्री नन्दीषेणमुनिजी म.सा. सेवाभावी एवं थोकड़ों के ज्ञाता श्री नन्दीषणजी म.सा. का दीक्षापूर्व नाम महावीर प्रसाद था। आपका जन्म सवाईमाधोपुर में धर्मनिष्ठ सुश्रावक श्री रामनिवासजी जैन की धर्मपरायणा धर्मपत्नी श्रीमती गुलाबदेवीजी जैन की कुक्षि से वि.सं. २०१६ की ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीया ८ जून १९५९ को हुआ। आपकी दीक्षा ग्रहण करने की उत्कट भावना थी। आप गुरुचरणों में कतिपय वर्ष वैरागी रहे। परिजनों से आज्ञा प्राप्त करने एवं दीक्षा नियत करने में सैलाना के धर्मनिष्ठ उदारमना भक्त श्रावक श्री प्यारचन्द जी रांका की निर्णायक भूमिका रही। मन्दसौर में पूज्य
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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