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________________ Sa नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ८०६ रूपकंवर जी ने आपकी नेश्राय में ही दीक्षा अंगीकार कर अपने जीवन को सार्थक किया। आपका जन्म सुरपुरा (देशनोक जिला बीकानेर) के श्रेष्ठिवर्य श्री जसरूपमलजी गोलेछा की धर्मशीला धर्मपत्नी श्रीमती नानी बाई की कुक्षि से हुआ। वय प्राप्त होने पर आपका विवाह देशनोक निवासी श्री हजारीमलजी भूरा के साथ सम्पन्न हुआ। जीवन सांसारिक सुखोपभोग और ऐश्वर्य के साथ व्यतीत हो रहा था, पर 'गहना कर्मणो गति:' यौवनावस्था । में ही आपका यह सुख सुहाग काल के क्रूर पंजों से न बच सका। महापुरुषों के जीवन में आई विपत्तियाँ भी कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर देती हैं। आपके पुण्योदय से आपको ज्ञान-क्रिया की धनी महासतीजी मल्लाजी म.सा. का सान्निध्य मिला। महासतीजी के दर्शन, उपदेश सान्निध्य से आपको संसार की असारता व विनश्वरता का बोध हुआ और आपने नागौर में महासतीजी का शिष्यत्व स्वीकार कर भागवती श्रमणी-दीक्षा अंगीकार कर अपने आपको सदा के लिये समर्पित कर दिया। गुरुणी जी म. सा. की सेवा में ! रहकर आपने शास्त्रों व थोकड़ों का अच्छा अभ्यास किया। वृद्धावस्था में आपका स्थिरवास भोपालगढ़ में हुआ। दीर्घकाल तक आपके वहाँ विराजने से अनेक बहिनों ने सामायिक, प्रतिक्रमण व थोकड़ों का अभ्यास किया। भोपालगढ़ की बहिनों को धर्म-संस्कार देने व उन्हें ज्ञान-ध्यान सिखाने में आपका महनीय उपकार रहा है। वि.सं. २००८ के फाल्गुन मास में भोपालगढ़ में ही आपका महाप्रयाण हो गया। • महासती श्री रूपकंवर जी म.सा. 'स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्, नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता।' इस विश्व में लाखों माताएँ पुत्र को जन्म देकर अपने आपको सौभाग्यशाली समझती हैं, पर ऐसी माताएँ ।। विरल होती हैं, जो लाखों भक्तों की असीम आस्था के केन्द्र जिनशासन के देदीप्यमान रत्न संत-शिरोमणि आचार्य हस्ती जैसे पुत्र रत्न को जन्म देती हों। शासन प्रभावक आचार्यों को जन्म देने वाली माताओं में भी आप जैसी माताएँ विरल होती हैं, जो स्वयं अपने पुत्र की कल्याण-कामना एवं उसके आत्म-हितार्थ उसे संयम-ग्रहण हेतु प्रेरित करे, और स्वयं भी दीक्षा लेकर सच्चा आदर्श प्रस्तुत करे। रूपकुंवर का जन्म पीपाड़ निवासी राजमान्य श्रेष्ठिवर्य श्री गिरधारीलालजी मुणोत की धर्मपत्नी सुश्राविका श्रीमती चन्द्राबाई की रत्नकुक्षि से हुआ। भरे-पूरे परिवार में आपका लालन-पालन हुआ। यौवन में प्रवेश होते ही आपका विवाह पीपाड़ के प्रतिष्ठित श्रावक श्री दानमलजी बोहरा के सुयोग्य सुपुत्र श्री केवलचंदजी बोहरा के साथ | सम्पन्न हुआ। सासूमाँ नौज्यांबाई की छत्रछाया में पति के संग आपका वैवाहिक जीवन सांसारिक सुखों से व्यतीत हो रहा था। किन्तु प्रकृति को यह मंजूर नहीं था, उसे तो आपको शासन आधार को पुष्ट करने का निमित्त बनाना था। पुण्यात्मा आपके गर्भ में आई , परिवार में हर्षोल्लास छा गया, भावी जीवन की मधुर कल्पनाएँ परिजनों व आप दम्पती के मन में अंगडाइयां लेने लगी, पर अल्पकाल में ही पतिवर्य का द:खद निधन हो गया। इससे आपको संसार से विरक्ति हो गई। परन्तु गर्भ में आशा का प्रसून पलने से और बाद में बालक के लालन-पालन के कारण दीक्षा का योग नहीं बन पाया। कतिपय वर्षों पश्चात् प्लेग की महामारी से भरे पूरे पैतृक परिवार के सदस्यों के असामयिक निधन ने आपके जीवन को झकझोर दिया तथा संसार की अनित्यता एवं अशरणता का साक्षात् अनुभव) -thale A.AN-Asans- anna
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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