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चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड
मेतारज मुनि सामायिक कर, तन का मोह हटाया हो प्रबल वेदना सहकर मुनि ने केवल ज्ञान मिलाया हो । दिल में करुणा धार है, निज दुःख दिया विसार है ॥ करलो ॥ पुणिया ने नित सामायिक कर, काम क्रोध को मारा हो न्याय नीति से द्रव्य मिलाकर, अपना किया गुजारा हो । वीर प्रभु दरबार धन्य हुआ अवतार है ॥ करलो ॥ इन्द्रिय वशकर शांत स्थान में, मौन सहित अभ्यास करो ज्ञान ध्यान में चित्त रमाकर, राग द्वेष का नाश करो करना सबसे प्यार है, यही धर्म का सार है अंश मात्र भी जो सामायिक अपनाते नर नार है वैर विरोध रहे नहीं जग में, घर घर मंगलाचार है । 'गजमुनि' का आधार है, सुख शांति का द्वार है ॥ करलो ॥
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॥करलो ॥
(४६) संकल्प
गुरुदेव चरण वन्दन करके मैं नूतन वर्ष प्रवेश करूँ । शम-संयम का साधन करके, स्थिर चित्त समाधि प्राप्त करूँ ॥१ ॥ तन, मन, इन्द्रिय के शुभ साधन, पग-पग इच्छित उपलब्ध करूँ । एकत्व भाव में स्थिर होकर, रागादिक दोष को दूर करूँ ॥२ ॥ हो चित्त समाधि तन-मन से, परिवार समाधि से विचरूँ । अवशेष क्षणों को शासनहित, अर्पण कर जीवन सफल करूँ ॥३ ॥ निन्दा, विकथा से दूर रहूँ, निज गुण में सहजे रमण करूँ । गुरुवर वह शक्ति प्रदान करो, भवजल से नैया पार करूँ ॥४॥ शमदम संयम से प्रीति करूँ, जिन आज्ञा में अनुरक्ति करूँ । परगुण से प्रीति दूर करूँ 'गजमुनि' यों आंतर भाव धरूं ॥५ ॥ (अपने ७३ वें जन्मदिवस पर के. जी. एफ. में रचित)
(४७)
प्रभु प्रार्थना
(तर्ज- धन धर्मनाथ धर्मावतार सुन मेरी)
श्री वर्धमान जिन, ऐसा हमको बल दो ।
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