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________________ चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड (४३) पार्श्व महिमा तर्ज- (शिवपुर जाने वाले तुमको...) पार्श्व जिनेश्वर प्यारा, तुमको कोटि प्रणाम २ ॥टेर ॥ अश्वसेन कुल कमल दिवाकर, वामादे मन कुमुद निशाकर । भक्त हृदय उजियारा ॥१ ॥ तुमको | जड़ जग में बेभान बना नर, आत्म तत्त्व नहीं समझे पामर । उनका करो सुधारा ॥२॥ तुमको | तुम सम दूजा देव न भय हर, वीतराग निकलंक ज्ञान धर । ध्यान से होवे अमरा ॥३ ॥ तुमको | सकल चराचर सम्पत्ति अस्थिर, आत्म रमणता सदानंद कर . यही बोध है सुखकर ॥४ ॥ तुमको ॥ देव तुम्हारी सेवा मन भर, करें बने वह अजर-अमर नर । सदा लक्ष्य हो सब घर ॥५ ॥ तुमको | (हो यह भावना सब घर) भूल न तू धन में ललचाकर परिजन तन अरु धन भी नश्वर । पार्श्व चरण ही दिलधर ॥ ६ ॥ तुमको | दुनिया में मन नहीं लुभाकर, पार्श्व वचन का तो पालन कर । 'गजमुनि' (हस्ती) विषय हटाकर ॥७ ॥तुमको ॥ (४४) पर्व पर्युषण आया यह पर्व पर्युषण आया, सब जग में आनंद छाया रे ॥टेर ॥ यह विषय कषाय घटाने, यह आतम गुण विकसाने । जिनवाणी का बल लाया रे, यह यह जीव रुले चहुं गति में, ये पाप करण की रति में । निज गुण सम्पद को खोया रे, यह तुम छोड़ प्रमाद मनाओ, नित ध्यान रम जाओ । लो भव-भव दुःख मिटाओ रे, यह तप-जप से कर्म खपाओ, दे दान द्रव्य फल पाओ । ७८७
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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