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________________ ७२६ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं प्रभु में बसे स्वयं प्रभु यहाँ तीर्थ लहर थी, रहे करोड़ों वर्ष नाम, कामना करें ॥३॥वन्दना करें ॥ हम अन्त में झुकाते सिर बिछाके दो नयन, खुद आये करने नाग, इन्द्रदेव भी नयन, नित दर्श देना कमल मधुर चाहना करे ॥४॥वन्दना करें | (३८) हस्ती नटवर नागरियो (तर्ज - चाँदी की दीवार न तोड़ी.....) माँ रूपा री कोख सराई केवल कुल रो टाबरियो। नर सूं नारायण बण कर चाल्यो हस्ती नटवर नागरियो ।टेर ॥ जन्मे शहर पीपाड़ में देवी - देव नहलायो हुलरायो, घर-घर गीत बधाई सुणकर मां रो मनड़ो हुलसायो, देख नक्षत्र पंडित मुस्कायो बालक बण सी सांवरियो ॥१॥ बाल उम्र वय दस में बणियो शोभा गुरु रो बावरियो, गुरु सेवा कर विनय भाव सूं बणियो ज्ञान रो सागरियो, पायो आचार्य पद बीसवें वर्ष बणियो संघ रो ठाकरियो॥२॥ दीर्घकाल में भारत भू पर ग्राम नगर विचरण करियो, नगर बैराठ संथारा मांही नाग प्रभु ने नमन करियो, आगम रहस्य रो ज्ञाता बणियो, जीव सुशिव म्हारो सांवरियो ॥३॥ पाली अन्तिम जन्म दिवस कर आया, नीमाज गुरु मन जंचियो, उत्कृष्ट भाव संथारो लीनो तब आकर प्रभु में प्रभु बसियो, धन्य भाग्य निमाज शहर रा, कर गयो म्हारो सांवरियो ॥४॥ 'हीरो' परख आचार्य बणाकर, उपाध्याय पद 'मान' धरियो, तब 'नाग' देव और 'इन्द्र' देव आ, चरणों में प्रभु नमन करियो, 'मधुर' थारे चरणों रो चाकर, पार कीजो भव सागरियो ॥५॥ (३९) जय बोलो हस्ती पूज्यवर की (तर्ज - जयबोलो महावीर स्वामी की)। जय बोलो हस्ती पूज्यवर की, पूज्य शोभाचन्दजी के पट्टधर की ॥टेर ॥
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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