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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ६९६ आचार्य श्री हस्तीमल्ल-गणाष्टकम् (पूज्य घासीलालजी म.सा. द्वारा रचित) असारं संसारं वदति सकलो बोधयति नो, बुधे बोद्धा बुद्ध्या सकलजनताबोधनपरः । यदीये सद्वाक्ये स्फुरति महिमा कोऽप्यनुपमो,गणी हस्तीमल्लः शमितकलिमल्लः शुभमतिः॥१॥ संसार को मिथ्या कहें, सब किन्तु समझाते कहाँ, बुद्ध मध्य बोद्धा बुद्धि से, गणिवर्य समझाते यहाँ । जिनके मनोहर वाक्य में, बहुतेज अनुपम भासते, शुभ बुद्धि हस्तीमल्ल, गणिं को देखि कलिमल भागते ॥१॥ इस संसार को सब मनुष्य असार अर्थात् मिथ्या कहते हैं, किन्तु इसके सच्चे तात्पर्य को नहीं समझते हैं।। बुद्धिमान् मनुष्यों में ज्ञानी मनुष्य ही इसके सत्य स्वरूप को समझते हैं, जिनकी मनोहर वाणी में अनुपम महिमा प्रकट होती है। ऐसे शुद्ध बुद्धि के धारक आचार्य श्री हस्तीमल्लजी को देखकर पाप स्वयं पलायमान हो जाते हैं अर्थात् दूर हो जाते हैं । (अथवा आपको देखकर कलियुग के मल्ल शान्त हो जाते हैं।) शरच्चन्द्राभासं प्रवचनममूल्यं वदति यः ददत्तीवं बोधं सकलमलशोधं निजगिरा। सदा पापं तापं हरति भविनां हृत्तलगतम्, गणी हस्तीमल्लः शमितकलिमल्लः शुभमतिः ॥१॥ उपदेश जिनका शरद् शशि सम अति अमूल्य महान है। देते सकल कलिमल हरण जो, मोह नाशक ज्ञान हैं। जिनके वचन भविजन हृदयगत-पाप ताप निवारते शुभ बुद्धि हस्तीमल्ल गणि को देख कलिमल भागते ॥२॥ जिनका उपदेश शरदऋतु के निर्मल चन्द्रमा के समान अमूल्य एवं महान है, जो सब पापों का नाश करने वाला | एवं मोह को नष्ट करने वाला उपदेश देते हैं, जिनके वचन भव्य जनों के हृदय में रहे हुये पाप एवं संताप को नष्ट करने वाले हैं, ऐसे शुद्ध बुद्धि के धारक आचार्य श्री हस्तीमल्लजी को देखकर पाप स्वयं दूर हो जाते हैं विहारं यः कुर्वन्नवनितलजन्तूनुपदिशन्भृशं तापं शापं जिनवचनशक्त्या परिहरन्। अमन्दं सानन्दं ध्वजमुपरि जैनं परिधुवन् । गणी हस्तीमल्लः शमितकलिमल्लः शुभमतिः ॥३॥
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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