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________________ जम्बूद्वीपे भरत क्षेत्रे पीपाड़नगरे • पुण्यधरा : पीपाड़ परमप्रतापी प्रतिभामूर्ति चारित्रनिष्ठ आचार्य श्री हस्ती का जन्म जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित भारतदेश के मारवाड़ (राजस्थान) की पुण्यधरा पीपाड़ शहर में हुआ। मारवाड़ की मरुधरा के मुकुटमणि जोधपुर नगर से ६० किलोमीटर की दूरी पर जोजरी नदी के तट पर अवस्थित 'पीपाड़शहर' के सम्बन्ध में कथानक है कि इसे बप्पा रावल | के वंशज पीपला रावल ने बसाया था । इतिहासविदों के अनुसार यह प्राचीन नगरी शताब्दियों तक राजस्थान के वर्तमान पाली - मारवाड़ जिले में स्थित निमाज ठिकाने के जागीरदार की जागीर का हिस्सा रही । मध्ययुग में सन्त पीपाजी ने भी इसे धर्मप्रसार का केन्द्र बनाया । आचार्य श्री हस्ती की जन्मभूमि पीपाड़ की वसुधा अन्न एवं धन से भी समृद्ध रही है तो महान् सन्तों की पदरज से भी पावन होती रही है। इसे अनेक जैन सन्तों एवं आचार्यों ने अपने जन्म, दीक्षा, विचरण एवं महाप्रयाण से धन्य किया है। आचार्य श्री हस्ती जिस सन्त परम्परा के सप्तम पट्टधर बने, उस रत्नवंश के मूलपुरुष यशस्वी सन्त श्री | कुशलचन्द्रजी महाराज ने इसी पीपाड़ (रियां) की धरा पर जन्म लिया । स्थानकवासी जैन सम्प्रदाय के तेजस्वी आचार्य श्री जयमलजी महाराज, महान् क्रियोद्धारक आचार्य श्री रत्नचन्द्रजी महाराज (जिनके नाम से 'रत्नवंश' विश्रुत है), चारित्रनिष्ठ आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी महाराज (आचार्य श्री हस्ती के गुरु) आदि अनेक सन्तों एवं महापुरुषों ने | अपने वर्षावासों एवं शेषकाल- विचरण से इस धरा की पुण्यशालिता में अभिवृद्धि की । रत्नवंश-परम्परा के ही प्रखर चर्चावादी एवं 'सिद्धान्तसार' ग्रन्थ के रचयिता प्रसिद्ध प्रभावशाली सन्त श्री कनीरामजी महाराज का देवलोकगमन भी इस धरा से हुआ । आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध यह तपःपूत पीपाड़नगरी तब और अधिक धन्य हो उठी जब | लक्षाधिक लोगों के सन्मार्ग प्रवर्तक आचार्य श्री हस्ती का जन्म भी इसी भूमि पर हुआ । यहाँ पर यह उल्लेख करना अप्रासङ्गिक नहीं होगा कि खरतरगच्छ की अत्यन्त प्रभावशालिनी साधिका महासती श्री विचक्षण श्री जी एवं चरितनायक आचार्य श्री हस्ती के शिष्य रत्नवंश के वर्तमान अष्टम पट्टधर आचार्य श्री हीराचन्द्र जी महाराज की जन्म-स्थली होने का सौभाग्य भी पीपाड़ की धरा को प्राप्त है । रियासतकाल में पीपाड़ के साथ ही रीयां का नाम जुड़ा हुआ था। पीपाड़ से कच्चे रास्ते से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित रीयाँ उस समय अत्यन्त समृद्ध ग्राम था। कहा जाता है कि मारवाड़ में पड़े भीषण अकाल के | समय जोधपुर के तत्कालीन महाराजा विजयसिंहजी को धनराशि की आवश्यकता हुई तो रीयाँ के श्रेष्ठिवर | जीवनसिंह जी मुणोत ने मरुधरा की सहायता के लिए खुले दिल से स्वर्ण- मुद्रा से लदे छकड़ों की कतारें लगा दी । छकड़ों की कतार रीयाँ से जोधपुर तक जा पहुँची, जिसे देखकर जोधपुर नरेश अचम्भित रह गए। रीयाँ का यह वर्णन कवि प्रतापमल ने इस प्रकार किया है शहर । है । परतख पीपाड़ पास, रीयाँ रंग भीनो शक्ति की मेर सेती बस्ती गुलजार
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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