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________________ संयम और विवेक के आदर्श प्रतीक - - ---- ------ बात महाराजा उम्मेदसिंह जी के शासन के समय की है। दिखने में तो वह साधारण है, पर उसके पीछे एक । महान् उद्देश्य जिनाज्ञा के अपवाद रहित वृत्ति-विजय का पालन है। विषय-विकार, कषाय, प्रमाद, प्रलोभन, परीषह, । उपसर्ग आदि कर्म रिपु विविध रूप से प्रत्येक के सामने आते ही हैं । पूज्य श्री एक सफल साधक होने से उन्हें परास्त कर समता, संतोष, धैर्य, अभयता, शान्ति का साम्राज्य विस्तृत कर अन्य को भी आत्मोन्नति के फल प्रदान करते हैं। जोधपुर नगर से पूज्य गुरुदेव के विहार का प्रसंग है। कुछ भावुक श्रावकों ने बनाड़ स्टेशन की ओर विहार हो जाने के बाद जोधपुर से बनाड़ के स्टेशन पर फोन द्वारा सूचना कर दी कि अभी आपकी ओर गुरुदेव का विहार हो चुका है। बनाड़ स्टेशन पर मालगाड़ी आने पर उसके इन्जन में से पानी की प्याऊ वाले ने दो पीपे गरम जल से भर कर अलग रख दिये। पूज्य श्री यथासमय बनाड़ पधारे। जब साथ विहार में आने वाले भाई, जिसको संभवतः इस पानी के प्रबन्ध की जानकारी हो गई होगी, उसने संतों को दूर आये हुए ग्राम में, पानी के लिये न जाते हुए इधर ही प्रासुक पानी की जोगवाई होने का निवेदन किया। पूज्य श्री स्वयं ही जल ग्रहण करने पधारे और पूरी गवेषणा। शुरु की। अन्त में यह पूछा कि इस पीपे में, यह इन्जन का गरम जल भरा, उसके पूर्व कैसा जल था? पीपा पहले गीला तो नहीं था? प्याऊ वाले ने जो सही बात थी वह कह दी। अंदर के सचित्त पानी से दोष युक्त हुआ गरम || जल लेने से पूज्य श्री ने मना कर दिया और साथ के सन्त को गांव में जाकर पानी लाने की आज्ञा दी। लगभग एक | बजने आया होगा जब दो सन्त गांव से जल और आहार लेकर स्टेशन के समीप पधारे। (२) मध्य प्रदेश में सैलाना के चातुर्मास के पश्चात् आपका विहार कोटा की ओर हो रहा था। किन्तु नलखेड़ा गांव पहुंचने के बाद, जिस दीक्षा के प्रसंग के कारण उधर विहार हो रहा था, वह प्रसंग स्थगित होने से, शुजालपुर होते हुए भोपाल पधारने की विनती स्वीकृत हुई। सुरसलार गांव से मकर-संक्रान्ति के दिन मेघाच्छादित नभ के कारण ९ बजे आकोदिया मंडी की ओर विहार प्रारम्भ हुआ। साढ़े तीन मील चलने पर आकोदिया के श्रावक । शुजालपुर से आये हुए चौधरी जी आदि पांच व्यक्ति के साथ, विहार में साथ हो गये। बातचीत करते हुए हम पूज्य श्री के पीछे-पीछे चल रहे थे; सात मील का विहार हो चुका था। अब गांव एक ही मील दूर था। अन्य भाई-बहिन भी उस समय सामने से आते दिखाई दे रहे थे; एकाएक वर्षा शुरु हुई और पूज्य गुरुदेव वहां पर नजदीक की श्मशानशाला, जो कि उन्हीं दिनों तैयार हुई थी, में पधारे। मध्याह्न का माला जाप का समय हो जाने पर पूज्य श्री ने अपना ध्यान शुरु किया। इस प्रसंग पर उल्लेख कर देना उचित होगा कि अनेक वर्षों से पूज्य श्री के त्रिकाल ध्यान व स्वाध्याय का । समय प्राय: नियत रहा। छोटे गांव में, विहार में, जोधपुर या जयपुर जैसे विशाल नगरों में जहाँ ज्ञान-गोष्ठी चल रही हो, पूज्य श्री को स्वयं को दिन भर शास्त्रों की प्रतियों का अवगाहन कार्य करना हो, कितने ही दूर-दूर से आये हुए LTETOVA
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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