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________________ गुरुवर की महती अनुकम्पा . श्री पारसचन्द जैन परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्री हस्तीमलजी म.सा. की हमारे पोरवाल क्षेत्र पर विशेष अनुकम्पा रही है। भगवन्त प्रथम बार १९६८ में शेषकाल में यहाँ पधारे थे। इसी वर्ष यहाँ श्रमण संघ के आचार्य राष्ट्र संत श्री आनन्द ऋषि जी म.सा. तथा समता विभूति आचार्य प्रवर श्री नानालालजी म.सा. का शुभागमन भी हुआ। मैं उस समय बहुत छोटा था, पर मुझे अभी भी स्मरण आता है कि आचार्य भगवन्त श्री हस्तीमलजी म.सा. ने प्रवचन सभा में एक प्रश्न किया था- संज्ञा कितने प्रकार की होती है ? मैंने उत्तर देने के लिये हाथ खड़ा किया , तो मुझसे जवाब के लिये कहा गया, मैंने तीन प्रकार की (स्कूली ज्ञान वाली) संज्ञा बता दी, हालांकि गुरुदेव (आहार संज्ञा, भय संज्ञा आदि चार संज्ञाओं) के बारे में पूछ रहे थे। उस प्रवचन सभा में यहाँ के जैन समाज के श्रावकों की धार्मिक भावना देखकर ही गुरुदेव ने संभवत: इस क्षेत्र में चातुर्मास करने का मानस बना लिया जिसकी परिणति १९७४ में हो पायी। गुरुदेव के प्रथम चातुर्मास के पूर्व हमारे पोरवाल समाज के बंधु अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे, वहीं परचून, कपड़े आदि की दुकान तथा खेती के सहारे अपनी जीविका चलाते थे। धार्मिक संस्कार तो क्षेत्र में पहले से ही थे, परन्तु साधु-साध्वियों के दर्शनार्थ जाने का बहुत कम प्रचलन था, क्योंकि इस तरह की प्रभावना भी कम होती थी तथा आय के साधन भी सीमित थे, परन्तु १९७४ के चातुर्मास के बाद आचार्य भगवन्त की ऐसी कृपा बनी कि छोटे से छोटा तथा बड़े से बड़ा श्रद्धालु खर्च की परवाह नहीं करता हुआ सन्त-सतियों के दर्शनार्थ जाने लगा, आचार्य भगवन्त का चातुर्मास चाहे बालोतरा हुआ हो, जलगांव हुआ हो या मद्रास, जहाँ-जहाँ भी भगवन्त पधारे, हमारे इस क्षेत्र के श्रद्धालु भी गुरुदेव के दर्शनार्थ जाते रहे । मेरा तो ऐसा मानना है कि गुरुदेव के यहाँ चरण पड़ने के बाद मानो हमारे पोरवाल बंधुओं ने चहुँमुखी उन्नति की है। . भगवान से साक्षात्कार सन् १९८८ के आचार्य भगवन्त के सवाईमाधोपुर चातुर्मास में प्रख्यात चिन्तक डॉ. महेश चन्द्र शर्मा (राज्य सभा सदस्य तथा सचिव दीनदयाल शोध संस्थान, नई दिल्ली) दर्शनार्थ महावीर भवन में पधारे थे। पूर्व परिचय था, | इसलिये मैं भी उनके साथ ही था। मैंने गुरुदेव को उनका परिचय कराया तथा यह भी बताया कि आप कॉलेज की | नौकरी छोड़कर राष्ट्र सेवार्थ निकले हैं। पूज्य प्रमोद मुनि जी म.सा. का भी विद्यार्थी जीवन में उनसे घनिष्ठ सम्पर्क था। आचार्य भगवन्त डा. महेशजी को प्रेरणा दे रहे थे। मैं दूर खड़ा था, परन्तु मुझे भी गुरुदेव के श्रीमुख से यह सुनाई दिया कि समाज के उपेक्षित लोगों की सेवा भी करते हो या नहीं, मैंने बीच में यह कहने का प्रयास किया कि बाबजी यह तो जीवनदानी व्यक्ति हैं जिनका लक्ष्य ही उपेक्षितों की रक्षा करना है, परन्तु मुझे डा. महेशजी भाई सा. ने रोक दिया और चुप रहने का इशारा किया। खैर आचार्य भगवन्त से आशीर्वचन लेने के पश्चात् रास्ते में मैंने डा. |
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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