SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 664
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कैसे भूलूँ ? - • श्री जननग़ज़ महता युग मनीषी, तप: पूत, अप्रमत्त, योगविभूति आप्तपुरुष, संघनायक, कुशल संचालक पूज्य गुरुदेव १००८ || आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. एक युग पुरुष थे। आपश्री के प्रथम दर्शन से ही मेरा मन आपके प्रति समर्पित हो गया । अन्तर का तार एकाकार हो गया, झंकृत हो गया। आपके आप्त वचनों से मेरी सूक्ष्म शक्तियाँ जागृत हो उठीं।। वि.सं. २००८ से २०४८ तक मैं गुरुदेव की सेवा में आता-जाता रहा । इस चालीस वर्ष की लम्बी जीवन-यात्रा में आचार्य श्री के सानिध्य में बहुत सी विशेष घटनाएँ घटीं। उनमें से कुछ घटनाओं को संस्मरण के झरोखे से लिखने का प्रयास किया है। ___आचार्य श्री के जीवन का प्रत्येक क्षण ही संस्मरण था, फिर भी सिन्धु को बिन्दु में दर्शाने का प्रयत्न किया | | गया है। कहीं कुछ गलती हो तो सुज्ञ पाठक क्षमा करें। • प्रभु-भक्ति में तल्लीनता प्रभु को प्राप्त करने की पगडंडी जो गुरुदेव के पास थी, वैसी शक्ति विरल विभूतियों के पास होती है।। आपका ब्रह्मवाद अद्भुत था। प्रभु के प्रति उन्मनी शक्ति आपकी प्रमुख विशेषता थी। पूज्य गुरुदेव के रोम-रोम में ब्रह्म का भाव छाया रहता था। अत: मन्द स्वर स्वरलहरी लेकर निकलता था। आप एक अद्भुत योगी थे। अनेक बार पूज्य गुरुदेव को (प्रभुभक्ति के) भावावेग का ज्वर चढ़ जाता। वह समय पूज्य गुरुदेव के प्रभु के सामीप्य का होता, और ऐसा आप श्री के जीवन में अनेक बार हुआ। उस समय वे तन्द्रावत् हो जाते और किसी तरह का भान नहीं रहता। प्रभु में खोए-खोए से पूज्य गुरुदेव मन ही मन हृदय में प्रभु का अमृतपान करते रहते और यह स्थिति उनकी सहज ही हो जाती। नन्दी सूत्र गुणते-गुणते पूज्य गुरुदेव की स्थिति योगमय हो जाती और उस समय पूज्य गुरुदेव प्रभु के साथ एकमेक हो जाते । प्रभु के साथ आत्मा की ऊर्जस्विता और अन्तश्चेतना के स्वरों के साथ तदाकार हो जाना, पूज्य गुरुदेव के | दैनिक जीवन में प्राय: होता रहता था। जब कभी एकान्त में प्रभु का ध्यान करते तब उनकी स्थिति और भी अधिक चिन्मय हो उठती। पूज्य गुरुदेव को एकान्त बहुत प्रिय था। अत: पूज्य गुरुदेव कृष्णा १० का मौन अखण्ड करते एवं नगर के बाहर किसी एकान्त स्थान में पधार जाते । मेड़ता में अनेक बार पूज्य गुरुदेव एकान्त स्थल में पधारे। प्राय: सुबह साढे आठ बजे तक मौन सदैव रहता। सुबह साढ़े चार बजे उठकर साढ़े आठ बजे तक पूज्य गुरुदेव की अन्तःप्रभु-भक्ति चलती और उनकी वाणी व्याख्यान में गहन गूढ और अध्यात्ममयी हो उठती । वाणी का प्रत्येक शब्द रस से सराबोर होता और श्रोता के अन्तर्हृदय में चोट करता।। ___उनके विराट् वैभव, उनके अन्तर्हदय की प्रभु-भक्ति के सौन्दर्य को देखकर एक मुस्लिम मेड़ता में प्रभु-भक्ति से ओतप्रोत वाणी को सुनकर भाव विभोर हो उठा और निज का भान ही भूल बैठा। प्रभु के प्रति पूज्य गुरुदेव की भक्ति इतनी गहरी थी कि वे निर्गुणमार्गी होते हुए भी कभी-कभी भावविह्वल होकर सगुण भक्त की तरह परिलक्षित होते।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy