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________________ तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड ५४९ ले लिया ? मेरे लिये करना तो दूर की बात है, पर अगर यह विचार मात्र भी आ जाता तो जीवन भर की साधना ही निष्फल हो जाती।" ऐसे थे वे समताधारी सजग साधनापुरुष आचार्य भगवन्त । (३) आचार्य श्री ने श्रमण संघ छोड़ने की जयपुर में घोषणा की। उस समय जैसे ही व्याख्यान समाप्त हुआ, जयपुर के एक वरिष्ठ श्रावक आदरणीय श्री स्वरूप चन्द जी चोरडिया आचार्य श्री से बोले कि आपके श्रावकों का ऐसा कौन सा संगठन है जिसके बलबूते पर श्रमण संघ छोड़ दिया ? आचार्य श्री गणेशी लाल जी महाराज के साथ तो श्रावक श्राविकाओं का बहुत बड़ा समूह है। तो आचार्यप्रवर ने फरमाया कि मैंने श्रावकों के पीछे संयम नहीं लिया। पेड़ के नीचे रहकर भी चौमासा पुरा| | कर सकता हूँ। ऐसे थे दृढसंयमी आचार्यप्रवर जो कि वीतराग वाणी का पूर्णत: पालन करने हेतु पेड़ के नीचे भी चौमासा पूर्ण करने का साहस रखते थे। (४) श्री निरंजन लाल जी आचार्य राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष थे। यशवन्तसिंह जी नाहर भीलवाड़ा से तत्कालीन विधायक एवं प्रसिद्ध अधिवक्ता थे। नाहर साहब उन्हें प्रेरणा देते चलने की, तो कहते-हाँ चलूँगा कई प्रश्न भी हैं, उनके समाधान प्राप्त करने हैं। एक दिन प्रवचन के समय पधारे । आचार्य श्री का व्याख्यान किसी अन्य प्रसंग पर चल रहा था, श्रोताओं ने देखा कि एकाएक आचार्य श्री ने विषय ही पलट दिया। व्याख्यान समाप्त होने पर निरंजन नाथ जी आचार्य श्री के चरण पकड़ कर बोले कि आपको यह कैसे ज्ञात हो गया कि मेरे मन में क्या प्रश्न हैं। मेरे द्वारा किसी को न बताने पर भी आपको मेरे मन के प्रश्नों का कैसे ज्ञान हो गया? आचार्य श्री कुछ भी नहीं बोले। एक तरफ गम्भीर साधक आचार्यप्रवर थे, तो दूसरी ओर अभिभूत दर्शनार्थी । (यह बात गुमानमलजी सा चोरड़िया ने आचार्य श्री की जन्म-जयन्ती पर फरमाई थी।) (५) बूंदी निवासी श्री सुजान मलजी भड़कत्या आचार्य श्री के परम भक्तों में रहे। उनके सुपुत्र पन्नालाल जी साहब की भी भक्ति रही। किन्तु संतों का विचरण उस क्षेत्र में न होने से परिवार का रुख मंदिर की तरफ हो गया। उनके पुत्र श्री मोतीलालजी सा. जयपुर तपागच्छ संप्रदाय के मंत्री-पद का निर्वहन जिम्मेदारी पूर्वक कर रहे हैं। उनसे निकट का सम्बन्ध रहा है। एक दिन आचार्य श्री का प्रसंग चला तो बोले-उस महापुरुष की बात छोड़ दो, कहीं पर भी जाता तो आचार्यश्री के दर्शन अवश्य करता था। अजमेर गया हुआ था। रात्रि अधिक हो गई, दर्शन की भावना से आचार्य श्री के चरणों में पहुँचा व पाटे के पास बैठ गया। पूर्ण अन्धकार था। आचार्य श्री ध्यानस्थ थे। एकाएक ऐसा जबरदस्त प्रकाश हुआ, ऐसा प्रकाश, जिसकी मैं जीवन में कल्पना भी नहीं कर सकता। ऐसे प्रकाश में जैसे ही आचार्य श्री की नज़र मेरी ओर गई तो मैं तो गद्गद् हो गया। (६) आचार्यप्रवर आगरा पधारे। उपाध्याय कवि श्री अमरमुनिजी म.सा. व आचार्य प्रवर का मधुर मिलन हुआ। शब्दों से भावभीना स्वागत वहाँ के मेयर व संघ के लोगों ने किया तो मेयर कल्याणमल जी अग्रवाल ने कहा कि राजस्थान से क्रिया के शूरवीर आये हैं एवं ज्ञान की गंगा (कवि जी) यहां पर है तो ज्ञान व क्रिया का | अद्भुत जोड़ है। दूसरे दिन व्याख्यान प्रारम्भ हुआ। पहले कविश्री अमरमुनि जी म.सा. ने प्रवचन फरमाया। फिर आचार्यप्रवर ने आगमवाणी का आधार लेते जो प्रवचन फरमाया उससे प्रभावित होकर मेयर अग्रवाल साहब ने कहा -“कल मैंने
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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