SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 541
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड ४७७ दूर होगा। अपने धार्मिक ज्ञान को, सैद्धान्तिक ज्ञान को समृद्ध बनाये रखने के लिए हमारे सम्यक्दृष्टि श्रावक-श्राविकाओं का | कर्तव्य हो जाता है कि वे नियमित स्वाध्याय द्वारा अपने आप में ज्ञान-बल जगावें । ज्ञान-बल निर्मल होगा तो दर्शन और चारित्र बल अधिक मजबूती के साथ बढ़ेगा। जब मन में लौ लग जाती है तो स्वयं जगने वाला भी अंधेरे में नहीं रहता और दूसरों को भी अंधेरे से उजाले में लाने का प्रयास करता है। दीपक दूसरों के लिए भी उजाला करता है और स्वयं को भी प्रकाशित करता है। एक दीपक को देखने के लिए दूसरा दीपक जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिस प्रकार दीपक स्वयं के लिए और दूसरों के लिए प्रकाश करता है, उसी प्रकार आपका ज्ञान दीपक आपके भीतर जलेगा तो आपको | उबुद्ध करता हुआ आपके अन्तर को भी प्रकाशित करेगा और अन्य जीवों को भी प्रकाशित करेगा। जीवन-निर्वाह की शिक्षा पाया हुआ आज का पढ़ा-लिखा युवक बिगड़े हुए नल को ठीक कर सकता है, बिजली में कहीं कोई खराबी हो गई हो तो उस बिगड़े हुए स्विच आदि को ठीक कर सकता है, मशीन में कोई पुर्जा बिगड़ गया हो तो उसको ठीक बैठा सकता है, पर अपना बिगड़ा दिमाग ठीक नहीं कर सकता। दो भाइयों के बीच में झगड़ा हो गया, उनका जो मधुर सम्बंध था वह सम्बंध बिगड़ गया, तो उस बिगड़े हुए सम्बंध को वह नहीं सुधार सकता। पिता और पुत्र के बीच किसी बात को लेकर नाराजगी हो गई, पिता से रुपया पैसा अथवा अपना हिस्सा मांगने पर मांग पूरी नहीं हुई तो उस समय मन को कैसे सम्हालना, दिमाग के बिगड़े हुए स्नायुओं को कैसे ठीक करना, यह वह नहीं जानता। • अध्यापक और बालक इस बात को ध्यान में रखें कि केवल पाठ रटकर ही संतोष नहीं करना। इन बच्चों के मन में, मस्तिष्क में, हृदय में इन पाठों के भावों को भरना है। • क्रोध, मान, माया, लोभ की ज्वालाएँ उठ रही हैं। वे दिल-दिमाग को उत्तप्त कर रही हैं। यदि ज्ञान के जलाशय में गोता लगाया जाए, तो इनको हम शान्त कर सकते हैं। दूसरा लाभ इससे यह है कि हमारे मन का अज्ञान दूर होगा, ज्ञान की कुछ उपलब्धि होगी, कुछ जानकारी होगी। तीसरा लाभ है प्राणी का जो तृष्णा का तूफान है, वह तूफान भी जरा हल्का होगा और तृष्णा का तूफान हल्का हुआ तो व्यक्ति में जो अशान्ति है, घट-बढ़ है, मन में बेचैनी है, आकुलता, व्याकुलता है वह दूर होगी। • स्वाध्याय से हमारा ज्ञान और दर्शन निर्मल भी होता है और दृढ़ भी बनता है और जब हमारा ज्ञान एवं दर्शन शुद्ध होगा, निर्मल होगा तो चारित्र में भी आगे बढ़ना होता रहेगा और अन्ततोगत्वा हम कर्मों को काटकर मुक्ति के अधिकारी बन जायेंगे। • स्थानांग सूत्र के पांचवें ठाणे (स्थान) सूत्र ४६८ में प्रभु ने फरमाया- “पंचहिं ठाणेहिं सुत्तं वाएज्जा” अर्थात् पाँच कारणों से सूत्र का वाचन करें । बहुत गहराई से चिन्तन सामने रखा-"तं जहां (१) संगहट्ठयाए (२) उवग्गहणट्ठयाए (३) णिज्जरणट्ठयाए (४) सुत्ते वा मे पज्जवयाए भविस्सइ (५) सुत्तस्स वा अवोच्छित्तिणयट्ठाए।” अर्थात् पाँच कारणों से गुरु शिष्य को वाचना देते हैं- (१) संग्रह-सूत्र का ज्ञान कराने के लिए, (२) उपग्रह-उपकार करने के लिए (३) निर्जरा के लिए (४) सूत्रज्ञान को दृढ़ करने के लिए (५) सूत्र का विच्छेद न होने देने के लिए। इतिहास बतलाता है कि हमारा विशाल श्रुतज्ञान विच्छिन्न क्यों हुआ। शास्त्र का वाचन, पठन और परावर्तन होता रहता है तो श्रुतहानि नहीं होती। दीर्घकालीन दुष्काल के समय जब दुर्लभ भिक्षा की गवेषणा में श्रमणों का
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy