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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ४६८ जबकि मुनि-जीवन में हिंसादि पापों का तीन करण तीन योग से आजीवन त्याग होता है। सावद्ययोगों के त्याग का नियम लेने से सामायिक एक व्रत है। इसे शिक्षा व्रत माना गया है । इसमें साधक पापवृत्ति न करने का संकल्प लेता है। फलस्वरूप उसका चित्त शान्त होता है। सम होने के साथ-साथ शान्ति बढ़ती जाती है। और शान्ति बढ़ने के साथ चित्त की साधना भी बढ़ती जाती है। चित्त की समता रूप अवस्था ही सामायिक चारित्र है। • आप जब सामायिक करें, उस समय एक घण्टा पालथी आसन से बैठकर सामायिक का अभ्यास करना चाहिए। प्रतिदिन इस प्रकार का नियमित अभ्यास करते रहेंगे तो आगे चलकर इससे आपको अपनी इन्द्रियों पर काबू पाने में, चित्त को एकाग्र करने में बड़ी सहायता मिलेगी। • सामायिक में सावधयोगों की द्रव्य निवृत्ति तो की, पर परिवार वालों की ओर आपका मन चला गया, घर वाले याद करते होंगे, अब तो जल्दी ही घर जाऊँगा, मकान की मरम्मत करवानी है। इसके साथ ही दूसरी विचारधारा चली कि बाजार से सब्जी लानी है, अमुक प्रकार की साग-भाजी बनवानी है, फल-फूल लेने हैं, रस निकालना है, कुएं से पानी निकालना है, आदि-आदि रूप से आपका चिन्तन चला तो आपकी वह सामायिक द्रव्य दृष्टि से ही सामायिक हुई, भाव दृष्टि से नहीं हुई। इसलिए सामायिक पर पूरा पहुँचने के लिए अभ्यास की आवश्यकता रहती है। यदि आप निरन्तर अभ्यास करते रहेंगे तो बाहर की द्रव्य विरति की तरह सावधयोगों की भाव से भी निवृत्ति कर सकेंगे। सामायिक संघ वाले और स्वाध्याय संघ वाले कहीं इस बात को भूल न बैठे, सदा इस बात को ध्यान में रखें कि सामायिक, बिना स्वाध्याय के शुद्ध नहीं हो सकती और स्वाध्याय बिना सामायिक के आगे नहीं बढ़ सकता। यदि सामायिक को आगे बढ़ाना है, विशुद्धिपूर्वक करना है, आध्यात्मिक प्रगति करना है, तो उसके लिए स्वाध्याय बहुत जरूरी है, यह एक अनुभूत तथ्य है। बहुत सोचने पर मुझे यह निष्कर्ष मिला है और यही निष्कर्ष मैंने आपके सामने रखा है। • आप में से बहुत से भाई सामायिक करने के अभ्यासी हैं, पर सामायिक की साधना का कोई दायित्व नहीं समझा है। थोड़ी माला फेर ली, कुछ स्तवन बोल दिये और सामायिक का समय पूरा कर लेते हैं। वे भूल जाते हैं कि सामायिक साधना की क्या विधि है, क्या व्यवस्था, क्या-क्या नियम हैं? सामायिक-साधना कोई साधारण वस्तु नहीं । वस्तुतः सामायिक एक बहुत बड़ी योग-साधना है। पतञ्जलि ने पातञ्जल योग सूत्र में योग के आठ अंग बताये हैं। योग के जो आठ अंग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि रूप में बताये गये हैं, वे आठों सामायिक में पूर्ण होते हैं। • हमारी माताएँ सामायिक ग्रहण करने में आपसे आगे हैं, पर सामायिक में प्रमाद-सेवन में, विकथा करने में भी वे आपसे आगे हैं। वे सामायिक में अपने घर की, पर घर की, खाने-पीने की सभी प्रकार की बातें कर लेंगी। यहाँ तक कि सामायिक में विवाह-सम्बंध की बात भी पक्की कर लेंगी। इसीलिए सामायिक की साधना जो एक बड़ी साधना मानी गई है, वह तेजहीन हो जाती है। सामायिक जैसे उच्च व्रत की साधना खिलवाड़ न बने, उपहास और आलोचना की बात न बने और उसकी विशुद्धता, शक्ति और तेजस्विता आगे बढ़े, इसके लिए स्वाध्याय परम औषधि है, बहुत बड़ा साधन है। शास्त्र ने जो 'ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः' कहा है, उसी को-' स्वाध्याय-सामायिकाभ्यां मोक्षः' इन दूसरे शब्दों में कहा जा सकता
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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