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________________ विषयानुक्रमणिका सम्पादकीय आमुख RICTLम प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड तेणं कालेणं तेणं समएणं (रत्नवंशीय आचार्य परम्परा) २. जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे पीपाड़ नगरे पुण्यधरा : पीपाड़ १३, बोहरा कुल १४,दो असह्य आघात १४. केवलचन्दजी पर दायित्व १६, बोहरा परिवार पर पुन: अनभ वज्रपात १६, महान् विभूति का जन्म १८, कुल का एकमात्र चिराग १९, विरक्ता माता रूपादेवी २०, पौशाल की शिक्षा २१, बाल-लीलाएँ २१, परिवार के प्रति दायित्व बोध २३, सन्त-सती का प्रथम सुयोग २३, ननिहाल पर कहर २४, सत्य का बोध २४, दादी भी दिवंगत २५, सन्त-सतियों का पुन: सुयोग २६, माता की भावाभिव्यक्ति २७, पुत्र भी विरक्ति का पथिक २७,शिक्षागुरु का प्रभाव २९, शोभा गुरु की सेवा में ३०, अजमेर में अध्ययन-व्यवस्था ३० प्रव्रज्या-पथ के पथिक ४. शोभा गुरु के सान्निध्य में मुनि-जीवन (वि. संवत् १९७७-१९८३) सन्त -जीवन का अभ्यास और अध्ययन की निरन्तरता ३८, प्रथम पद विहार : मेड़ता की ओर ४०, बीकानेर के धोरों का अनुभव ४१, भोपालगढ़ की ओर ४२, जोधपुर के पाँच वर्षावासों (संवत् १९७९-८३) में योग्यता वर्धन ४२, संघनायक के रूप में चयन ४४, आचार्य श्री शोभागुरु का स्वर्गारोहण ४५ ५. आचार्य पद-ग्रहण के पूर्व अन्तरिम -काल पीपाड़ चातुर्मास (संवत् १९८४) ४७, श्री सागरमुनि जी म.सा.का अद्वितीय संथारा ४८, किशनगढ़ चातुर्मास (संवत् १९८५) ५०, भोपालगढ़ चातुर्मास (संवत् १९८६) ५० ६. आचार्य पद पर आरोहण आचार्य पद के दायित्व का बोध ५५, साध्वी माँ से संवाद ५६, रत्नवंश के आचार्यों की विशेषता ५७, रत्लवंश सम्प्रदाय ५८ ७. संघनायक के विहार और चातुर्मास ८. संघनायक का प्रथम चातुर्मास जयपुर में (विक्रम संवत् १९८७) ____ आचार्य श्री हाड़ौती की ओर ६३ ९. आचार्य श्री मालव प्रदेश में (विक्रम संवत् १९८८-१९८९) ___ रामपुरा चातुर्मास (संवत् १९८८) ६६, रतलाम चातुर्मास (संवत् १९८९) ७० १०. अजमेर साधु-सम्मेलन में भूमिका(संवत् १९९०) ११. मारवाड़ एवं मेवाड़ में विचरण (संवत् १९९०-१९९४) जोधपुर चातुर्मास : उपाध्याय श्री आत्मारामजी के साथ (संवत् १९९०) ७५, पीपाड़ चातुर्मास (संवत् १९९१) ७६, पाली चातुर्मास (संवत् १९९२) ७७, अजमेर चातुर्मास (संवत् १९९३) ७७, उदयपुर चातुर्मास (संवत् १९९४) ७८, सैलाना की ओर ७९. स्वामीजी भोजराजजी महाराज का स्वर्गारोहण ७९ १२. महाराष्ट्र एवं कर्नाटक की धरा पर (संवत् १९९५-१९९९) अहमदनगर चातुर्मास (संवत् १९९५) ८१, सतारा चातुर्मास (संवत् १९९६) ८३, गुलेजगढ़ चातुर्मास (संवत् १९९७) ८६, महासती रूपकंवर अस्वस्थ ८६, कर्नाटक में प्लेग का आतंक ८६, अहमदनगर चातुर्मास (संवत् १९९८) ८८, लासलगाँव चातुर्मास (संवत् १९९९) ८९, महासती रूपकंवर जी का स्वर्गारोहण ८९
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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