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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ४३२ . ममत्व-त्याग • जब प्रदेशी को ज्ञान हो गया तो उसको खजाना भरे रहने की या खाली रहने की चिन्ता नहीं रही। यदि प्रजा भूखी है, उसके खाने-पीने, रहने की व्यवस्था नहीं है, शिक्षा और चिकित्सा की व्यवस्था नहीं है, तो मेरे खजाने का महत्त्व क्या है? इसलिए उन्होंने अपनी आमदनी का चौथाई हिस्सा दान कर दिया। चाहे खर्च में पूरा हिस्सा लगता है या नहीं, उन्होंने ममता घटा डाली। मोक्ष उतना ही उनके नजदीक आ गया, जितनी कि उन्होंने ममता घटाई। एक वृद्ध मुसलमान सज्जन की बात है। उसका ४५० रुपये मासिक कमाने वाला पुत्र रोगग्रस्त होकर चल बसा, जो बूढे का एकमात्र सहारा था। मियांजी का गांव से भी अच्छा व्यवहार था। अतः उनको सान्त्वना देने को बहुत से लोग आए। एक जैन भाई भी आए। मियांजी ने कहा-“ मैं आप लोगों का आभार मानता हूँ कि आप लोग मुझे पुत्र-वियोग में सान्त्वना देने आए हैं, परन्तु वह तो वास्तव में भगवान की धरोहर थी। आपके पास किसी की धरोहर हो,तो उसे राजी-खुशी या दुःख से भी लौटाना होता है। जमा रखने वाले ने अपनी वस्तु उठाली, तो उसमें बुरा क्यों मानना?" यह कितनी सुन्दर समझ की बात है। प्रिय-वियोग में लोग जमीन-आसमान एक कर देते हैं, पर उससे क्या फल मिलता है? आखिर शान्त तो होना ही पड़ता है। ज्ञानी कहते हैं कि मानव दूसरों को देने के एक मिनट बाद ही उस वस्तु को पराई समझता है। तो देने से पहले ही क्यों नहीं समझता कि यह वस्तु मेरी नहीं है। पहले ही समझ ले कि जो कपड़ा मेरे तन पर है वह मेरा नहीं है, जिस कोठी में मैं बैठा हूँ वह मेरी नहीं है। तन पर जो आभूषण लाद रखे हैं वे मेरे नहीं है, बाहरी चीजें मेरी नहीं हैं। यह अगर पहले ही समझले तो मन में जो चंचलता है, दौड़-धूप है, मन में जो संक्लेश है वह नहीं होगा। - माताएँ • सन्ततियों से मोह सम्बन्ध न रखकर कर्तव्य पालन का विवेक रखो। 'मेरा लाल जीवन का आधार' इस दृष्टि से देखने की अपेक्षा सोचो–इसकी आत्मा मेरे समान है। मेरे द्वारा इसका कुछ निर्माण हो सके तो अच्छा। मुझे इसके साथ कर्त्तव्य-पालन का ध्यान रखना है। • संस्कार हेतु माताओं को छोटी-छोटी कथाओं के सहारे बालकों को बोध देना चाहिए। सरलता के साथ वह हृदय ग्राही हो सकता है। • हर माता-पिता अपने बालकों में दस-पन्द्रह मिनट नीति-अध्यात्म की प्रेरणा करे। • बालक और विद्यार्थियों में धर्म-जागरण के शुद्ध बीज डाले जायें। • माता सुशिक्षित होगी तो बालक को संस्कारवान् बनने में देर नहीं लगेगी। मानव • संसार में चार प्रकार के मनुष्य होते हैं? प्रथम प्रकार के नजर उठाकर देखने से समझ जाते हैं, दूसरे प्रकार के संकेत, हाथ आदि के इशारे से समझते हैं, तीसरी श्रेणी के कहने पर समझते हैं और चौथी श्रेणी के वे हैं , जो
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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