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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ३६० - आत्म-गुणों की उपेक्षा • भूमि, कोठी, जायदाद और धन-सम्पत्ति, ये सब आपके निज के नहीं हैं। आपका निज तो वस्तुतः ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूपी आत्मगुण है। आप निज को भूलकर, निज के आत्म-गुण को भूलकर जो आपका अनिष्ट करने वाला है, उसको अपना (निज) समझ रहे हो। इस भूमि, जायदाद आदि से ज्यादा सोच आपको ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप का होना चाहिए क्योंकि ये आपके निज-गुण हैं। एक अल्प बुद्धि वाला व्यक्ति भी जिसे अपने कुटुम्ब का ध्यान हो, खतरे की स्थिति पैदा हो जाए तो जिस जगह वह वर्षों से रह रहा है, उस स्थान को छोड़ने में देर नहीं करेगा। पर बड़े आश्चर्य और दुःख की बात है कि आप निज घर को छोड़कर सर्वस्व नाशक शत्रु के घर में बैठे कराल काल की चक्की में पिसे जा रहे हो। फिर भी महाविनाश से बचने के लिए आपको कोई चिन्ता नहीं है। आत्म-शक्ति अपने भीतर रहने वाला जो चेतना का बीज है उसमें तो अनन्त शक्ति है। उससे अमित दिव्य शक्तियाँ प्रकट हो सकती हैं। आवश्यकता केवल इस बात की है कि सुयोग्य वातावरण में उस बीज को अंकुरित करें, उसे प्रस्फुटित करें। • कारण छोटा होता है, परन्तु उससे निर्मित होने वाला कार्य विशाल होता है, भव्य होता है। आपने देखा होगा कि वटवृक्ष का बीज कितना छोटा-सा होता है, किन्तु उसका विस्तार बहुत बड़ा हो जाता है, बीज के आकार से कोटि गुणा अधिक । इसके निर्माण का कारण वह छोटा सा बीज होता है। यदि बीज न हो तो मूल वृक्ष किससे पैदा हो? उसकी पत्तियाँ, शाखाएँ, प्रशाखाएँ, फूल, फल इत्यादि किससे उत्पन्न हों? यदि बीज ठीक स्थिति में है और उसे अनुकूल संयोग प्राप्त होता रहता है, तो समय पाकर वह इतना विस्तार करता है कि दर्शक उसके विस्तार को देखकर चकित हो जाते हैं। • मकान के मलबे के नीचे दबे हुए बीज को समय-समय पर यदि वर्षा का पानी मिलता रहे, तब भी वह दबा हुआ बीज अपना विकास नहीं कर पाएगा। क्या उस बीज में विकास करने की योग्यता नहीं है? योग्यता अवश्य है। जब तक उस बीज पर से पत्थर व मलबा न हटा लिया जाए तब तक वह अकुंरित नहीं होगा। हमारे चेतन रूपी बीज पर भी गणनातीत गिरीन्द्रों से भी अधिक मलबे और कीचड़ का भार पड़ा हुआ है, जिसमें दबे हुए हमारे आत्म-देव में चेतना की योग्यता होते हुए भी उसका आगे विकास नहीं हो पाता। • आत्मा का प्रकाश बड़ा है या बिजली का? बिजली के प्रकाश को खोजकर किसने निकाला? अमुक-अमुक चीज़ों को जुटाने से विद्युत पैदा हो सकती है, इसे खोजकर निकाला है मनुष्य ने। बिजली का कनेक्शन नहीं होने पर भी बैटरी का खटका दबाते ही प्रकाश हो गया। बैटरी है, तो गाड़ी में बैठे हुए भी रेडियो के गीत सुन लोगे। मानव के मस्तिष्क ने ये सब चीजें खोज निकालीं। आत्मा इतनी तेजस्वी है कि उसने छोटे-छोटे जड़ पदार्थों में छिपी हुई शक्ति को प्रकट किया। तो शक्ति प्रकट करने वाला बड़ा या जिसने शक्ति दिखाई वह बड़ा? बिजली से अनन्तगुणी शक्ति हमारी आत्मा में है। यदि आत्मा को बलवान बनाना है तो कुछ त्याग को और अच्छाई को आचरण में लाना होगा।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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