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________________ (द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड ३४१ • जब कभी तुम्हारा मन साधना से चला जाय, भोग की वस्तुओं में लग जाय, परिवार-जनों, पुत्र आदि में चला जाय, अर्थ पर मन चला जाय तो सबसे पहले यह सोचो कि जिनको मैं अपना समझ रहा हूँ , वे मेरे नहीं हैं और मैं भी उनका नहीं हूँ। गृहपति भाई-बहिन यह समझ लें कि परिवार की रखवाली करना हमारा काम है। यह धन-दौलत तो किसी दूसरे की है। मेरे साथ चलने वाली नहीं हैं। मन की चंचलता को मिटाने का यह पहला उपाय है। राग को कम करना है तो आरामतलबीपना छोड़ो और आतापना लो। शास्त्रकार कहते हैं कि बाहर जाने वाले मन को यदि रोकना है तो बाहरी बातों से उसको हटाओ, ममता को समाप्त करो, विषय-कषायों से बचते रहो। जो आध्यात्मिक मार्ग की ओर आगे बढ़ाने के बजाय उससे पीछे मोड़ती है, उस कथा का नाम विकथा है। बाहरी वस्तु से जितनी-जितनी ममता होगी, राग होगा, स्नेह होगा उतना-उतना मन चंचल बनता जायेगा। राग बन्ध का कारण है और विराग बन्ध-मोचन का साधन । इनके बीच में एक कड़ी और होती है राग से खींचने वाली और विराग से जोड़ने वाली, जिसका नाम है 'अनुराग' । देव, गुरु और धर्म तथा शास्त्र की ओर अनुराग होता है तो राग से खिंच जायेगा और विराग की ओर बढ़ेगा। • यदि सहिष्णुता पैदा हो गई तो शारीरिक कष्ट सामने आने पर भी मन में चंचलता नहीं आयेगी। • जिसने अपने शरीर को साध रखा है, मन को मनाने की क्षमता है, उसको किसी भी परिस्थिति का सामना करने में कठिनाई नहीं होती। • मन यदि सधा हुआ है तो आप जैसा मिला उसमें सन्तोष करोगे, राग-द्वेष नहीं होगा, मन चंचल नहीं होगा। • एक-एक व्यक्ति अपने एक-एक साथी को प्रेरणा देकर स्वाध्याय के लिये तैयार करे, समाज का एक-एक श्रोता ऐसा सोच कर चले तो कितना काम हो जाय? भय, लोभ, महिमा की चाह और राग का लुभावना आकर्षण-इन चार बातों से साधक साधना-मार्ग में कमजोरी से पैर इधर-उधर रखने लगता है। इन समस्याओं को हल करने के लिये उसको गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। दुःख दूर करने की कुंजी है-कामना को दूर करना। तन की भूख मिटाना आसान है, लेकिन मन की भूख मिटाना मुश्किल है। तन की भूख कोई दूसरा भी मिटा सकता है, लेकिन मन की भूख स्वयं ही मिटा सकता है। यदि द्वेष को जड़ से काट दिया और राग की जड़ को हटा दिया तो संसार में रहता हुआ भी जीव सुखी हो | जायेगा। • यदि कामनाओं को वश में कर लोगे तो दुःख सदा के लिये नष्ट हुआ समझो। त्यागी को चाहिये कि जिस वस्तु को छोड़ दिया उसे वापस लेने की इच्छा भी नहीं करे। • धर्म का मूल सिद्धान्त है अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त करना। • आत्मा के भीतर अनन्त शक्ति और सामर्थ्य है, अनन्त ज्योति है। पहचानिये । इसको पहचानने का माध्यम है |
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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