SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 384
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ३२० • पापों में डूबा हुआ मानव भी यदि धर्म-जागरण करे, आत्म-स्वरूप का चिन्तन करे, तो अपने आपको ऊपर उठा सकेगा और जीवन धन्य बना सकेगा। मरण-सुधार के लिए जीवन-सुधार और जीवन-सुधार के लिए वृत्तियों पर संयम करना आवश्यक है। साधक, साधु-सन्तों के पास कुछ अर्थ (धन) लेने नहीं, वरन् अपना जीवन सुधारने जाता है, ताकि उसकी ज्ञान, दर्शन और चारित्रिक योग्यता बढ़े तथा जीवन-निर्माण की ओर उसकी प्रवृत्ति हो। धार्मिक, राजकीय व सामाजिक कार्यों में उग्रता के समय यदि कुछ समय टालकर जवाब दिया जाए और बीच में भगवान का भजन कर लिया जाए तो श्रेयस्कर है। उत्तेजना के समय किये जाने वाले काम में विलम्ब करना अच्छा है, किन्तु जीवन को उन्नत बनाने वाले कामों में प्रमाद से दूर रहना अत्यंत आवश्यक है। • आवेश में किया हुआ कोई भी काम स्व-पर हितकारक नहीं होता। पागल की बातों को जैसे हम बुरी नहीं मानते, वैसे ही क्रोधादि से पराधीन व्यक्ति की बातों को भी बुरी नहीं | मानना चाहिए, क्योंकि वह परवश एवं दया का पात्र है। शारीरिक और वाचिक संयम कर लेने से मन आसानी से ध्यान में लग सकता है। • भगवान के भजन में मन को लगाने के लिए शारीरिक और वाचिक संयम चाहिए। पवित्र साधना एवं पुरुषार्थ के बिना यह संभव नहीं है। • भला ! इससे बढ़कर आश्चर्य की बात और क्या होगी कि हम भौतिक वस्तुओं को अपना समझ कर उनके लिए तो चिन्ता करते हैं, पर आत्म-धन की चिन्ता नहीं करते। जैसे निर्मल जल से वस्त्र की शुद्धि होती है, उसी प्रकार सत्संग से जीवन पवित्र होता है। • निर्मलता, शीतलता और तृषा-निवारण जल का काम है। सत्पुरुषों का सत्संग भी ऐसा ही त्रितापहारी है। वह | ज्ञान के द्वारा मन के मल को दूर करता है, संतोष से तृष्णा की प्यास मिटाता है और समता व शान्ति से क्रोध का ताप दूर करता है। • आत्मोन्नति के लिए सत्संग की खुराक आवश्यक है। • श्रुताराधन, वायु-सेवन की तरह है। • हर एक संघ को दीपक बनकर ज्ञान की ज्योति जगाने का काम करना चाहिए। • यदि दीपक में तेल और बत्ती है, किन्तु लौ बुझ गई है तो जलता हुआ दूसरा दीपक उसे जला सकता है। इतिहास साक्षी है कि श्रुतबल, स्वाध्याय तथा ज्ञान ने लाखों मनुष्यों के जीवन को सुधार दिया है। • वस्तुतः जो शिक्षा को जीवन में उतार ले, वही दूसरों को शिक्षा देने का पूर्ण अधिकारी होता है। • धार्मिक-जन का जीवन सफेद चादर के समान है। उजली चादर पर छोटी-सी स्याही की बूंद भी खटकती है। • साधु-सन्त और भक्त-गृहस्थ सफेद चादर की तरह हैं, उनमें छोटा-मोटा दोष भी खटकता है। केवल व्यापार में ही आदमी आत्म-विश्वास के बिना पिछड़ा रह जाता हो, यह बात नहीं है; आध्यात्मिक क्षेत्र में
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy