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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ३०८ वाणी का ओज सहस्रों कार्यकर्ताओं की प्रेरणा का स्रोत था, अब उस महापुरुष की पावन स्मृतियाँ ही शेष थीं। सम्भवत: वे ही युगों-युगों तक प्रेरणा का कार्य करेंगी। 'परिसवरगंधहत्थीणं' उन महामनीषी आचार्य भगवन्त के देवलोक होने के समाचार वायुवेग से चारों ओर फैल गये। संघ ने दूरभाष, टेलीग्राम आदि सभी संभव उपायों से सर्वत्र यह दुःखद समाचार प्रेषित किया। आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं प्रान्तीय व राष्ट्रीय समाचार पत्रों द्वारा भी समाचार देश-देशान्तर में प्रसारित हो गये। जिसने भी सुना,स्तब्ध रह गया। उन परम पूज्य योगिवर्य के प्रयाण के समाचारों पर मानों विश्वास ही नहीं हो रहा था। परन्तु जब पुन: पुन: जानकारी मिली कि परम पावन गुरुदेव हमें छोड़कर चले गए, तो बरबस भक्तों के हृदय कह उठे - भगवन् ! आप धन्य हैं, आपने अपने जीवन को सफल किया। आपकी साधना सदियों तक स्मरण रहेगी।" कहा भी है - “यूँ तो दुनियाँ के समुद्र में कमी होती नहीं। लाख गौहर देख लो, इस आब का मोती नहीं।" आचार्य भगवन्त के शरीर को वैकुण्ठी (मांडी में) में बरन्डे में रखा तब भक्त समुदाय ने जो गीत गाते हुए अपनी श्रद्धा व्यक्त की उसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं - माँ रूपा के लाल तेरी वन्दना करें केवल कुल की शान तेरी वंदना करें। दुःख का मारा आया कोई सुख उसे मिला, लाया झोली खाली जो भी भरके वह चला, ध्यान मग्न ज्ञान बाँटा साधना करें॥वन्दना करें॥१॥ प्रभुजी अधीन आपके, पावन दयालु दीन, हुए ज्योत में मिला के ज्योत संथारा में लीन, मोक्ष में ठण्डी नजर भक्तों पर धरें ॥वन्दना करें॥२॥ • महाप्रयाण की अंतिम यात्रा व्यथित हृदय भक्तजन अपने परम पावन गुरुवर्य की महाप्रयाण-यात्रा में भाग लेने निमाज की ओर दौड़ पड़े। जो जहाँ था, वहीं से चल पड़ा। विविध ग्राम-नगरों से जैन-जैनेतर भक्तगण कार, बस, स्कूटर, ट्रक, ट्रैक्टर सभी उपलब्ध साधनों से निमाज की ओर चल दिए। परम पूज्य युग मनीषी अध्यात्मयोगी के पार्थिव शरीर को वोसिराने के पश्चात् सन्तवृन्द अलग बैठे थे। संघ |व निमाज के कार्यकर्ताओं ने विचार-विमर्श कर अन्तिम संस्कार के लिये मध्याह्न एक बजे का समय नियत किया। श्रावकगण व्यवस्था व प्रबन्ध हेतु इधर-उधर दौड़ रहे थे। अश्रुपूरित श्रद्धाजंलि अर्पण करने हेतु निकटस्थ क्षेत्रों से हजारो जैन-जैनेतर भक्तजन रात्रि में ही आने लगे। भीड़ प्रति पल बढ़ती जा रही थी। सकल श्री संघ निमाज क्षेत्र के सभी जैन-जैनेतर बन्धु व संघ के कार्यकर्तागण,युवक संघ के स्वयंसेवक,सभी व्यवस्था में जुट गये कि बाहर से पधारने वाले आबालवृद्ध युवक किसी भी भाई-बहिन को कोई असुविधा न हो। निमाज गांव का हर व्यक्ति इस महापुरुष की महाप्रयाण-यात्रा को अविस्मरणीय बनाने में जुट गया। सुबह होते-होते हजारों लोग गंगवाल भवन के परिसर के भीतर -बाहर एकत्र हो चुके थे। गुरुदेव का पार्थिव
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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