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________________ । प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २८१ जिनशासन का नायक, जन-जन की अनन्त आस्था का स्वामी, संतों के लिये भी सेव्य, देवों द्वारा भी वंदनीय यह महापुरुष छोटे-छोटे क्षेत्रों को भी अपनी चरण रज से पावन करने में इस अवस्था में भी कितना प्रयास कर रहा है। किसी ने नहीं सोचा था कि यह महापुरुष अनागत की झांकी को दृष्टिगत रख सभी भक्तों, श्रद्धालुओं व जन-जन को, जोधपुर के चप्पे-चप्पे को, कोने-कोने को अपनी कृपा का प्रसाद लुटा रहा है। पाली रोड़ से सन्निकट इस छोर पर बसे उपनगर में विराजने पर पाली निवासियों की आशाएँ बलवती हो। ., रही थी कि देव, गुरु व धर्म के प्रसाद से पूज्यपाद के पदार्पण व चातुर्मास का सौभाग्य हमें अवश्य मिलेगा, पर, पूज्यपाद की शारीरिक अशक्तता व उनके वचन कि “यदि मैं पैदल चलकर आ सका तो” उनके मन को आशंकित ।। भी कर रहे थे। वे मन ही मन मंगल कामना कर रहे थे कि भगवन्त का स्वास्थ्य शीघ्र ठीक हो व उनके श्री चरण । पाली की ओर आगे बढें। जोधपुर के भक्तों का प्रबल आग्रह था –“भगवन् आपका स्वास्थ्य समीचीन नहीं है, 'वृद्धावस्था है और यहाँ श्रमणोचित औषधोपचार की सुविधा है, यह क्षेत्र सभी दृष्टियों से अनुकूल भी है। भगवन् ! आप कृपा कर यहीं स्थिरवास विराजें व हमारे क्षेत्र व संघ को लाभान्वित करें।” करुणासागर गुरुदेव ने जोधपुर संघ के पदाधिकारियों व श्रद्धालु भक्तों को आश्वस्त करते हुए फरमाया-“मैं | पाद विहार करके ही पाली जाऊँगा, डोली आदि के उपक्रम से जाने की भावना नहीं है।” जीवन के इस पड़ाव में भी संयमधनी पूज्यप्रवर के मन में कैसा प्रबल विश्वास, अजेय आत्मबल व स्वावलम्बन का भाव था, साथ ही इससे । उनका यह चिन्तन भी परिलक्षित होता है कि वे बिना कारण, मात्र विचरण विहार व क्षेत्र स्पर्शन के लिये अन्य साधनों की तो बात ही क्या, डोली का उपयोग भी परिहार्य समझते थे। (बीच में अटक जाने पर संयमानुकूल क्षेत्र ।। तक पहुँचने के लिए ही अपवाद स्वरूप डोली का उपयोग किया जा सकता है।) पूज्य गुरुदेव का यह चिन्तन भावी पीढ़ी के साधकों के लिये दिग्दर्शन कराता रहेगा। श्रमण जीवन सदा स्वावलम्बी, स्वाश्रित ही होता है, पर का आलम्बन साधक को इष्ट ही नहीं होता है, उसे अवलम्बन होता है प्रभु महावीर की आगम-वाणी का, विश्वास होता ।। है अपनी आत्मा के अनन्त बल का व संयम में पुरुषार्थ का। शरीर अशक्त था, पर मनोबल दृढ था। आप थोड़ा थोड़ा घूम कर चलने का प्रयास बढ़ाते रहे । 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत' दृढ मनोबल के धनी महापुरुष की गति को कौन रोक पाया है। मधुवन हाउसिंग बोर्ड से || आपश्री का १२ जून को विहार हुआ। जोधपुरवासी सोच रहे थे कि भगवन्त अभ्यास कर रहे हैं, पर उनका विहार संभव नहीं है। पर आत्म-सामर्थ्य के धनी पूज्य आचार्य देव थोड़ी-थोड़ी दूर पार करते हुए आगे बढ़ते रहे । प्रकृति | भी नतमस्तक हो पाली के भाग्य का साथ दे रही थी। भीषण गर्मी से धरा व आकाश तप रहे थे, बादलों के आगमन का कोई चिह्न नहीं था। सहसा सब यह देखकर आश्चर्य अभिभूत थे कि घटाटोप मेघों ने आकर सूर्य को आच्छादित कर लिया है । सुर-नर, देव-देवेन्द्र द्वारा पूजित संयम धनी महापुरुष की सेवा का लाभ लेने में प्रकृति भी पीछे नहीं रही। सुखे समाधे पाद विहार कर पूज्यपाद कुड़ी पधारे व पाठशाला भवन में विराजे। प्रकृति प्रदत्त इस सहयोग से सब विस्मयमुग्ध थे व नतमस्तक थे इस महायोगी के श्री चरणों में । दिनांक १३ जून को ७ किलोमीटर का विहार कर आचार्य भगवन्त मोगड़ा पधारे। आषाढ मास की भीषण गर्मी में विहार के समय घटाटोप मेघमाला ने आकाश आच्छादित कर मानो काश्मीर का सा दृश्य उपस्थित कर | दिया। पूरे विहार में बादलों ने छाया बनाये रखी। मोगड़ा से मोगड़ा प्याऊ कांकाणी, निम्बला, निम्बली आदि | मार्गस्थ क्षेत्रों को पद रज से पावन करते हुये पूज्य चरितनायक १८ जून को रोहिट पधारे। यहाँ आप श्री पाँच दिन | DAI.MALE:--KaaneFRAIL.EL.ELLAHAMAREEME-ma -Reader a i
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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