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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २७९ परिस्थिति में हम आपको विहार नहीं करने देंगे। भगवन् ! यदि स्थिरवास करने का अवसर है तो भी हमारे संघ को यह लाभ मिलना चाहिये ।” वय स्थविर, दीक्षा स्थविर ज्ञान स्थविर व पद स्थविर पूज्यप्रवर का मन अभी स्थिरवास का नहीं था । उनका चिन्तन था कि जब तक जंघाबल क्षीण न हो, शारीरिक क्षमता हो व संतों के सहारे भी चलने | का सामर्थ्य हो, तब तक स्थिरवास नहीं किया जाना चाहिये। इसी निश्चयानुसार आपने शारीरिक अनुकूलता न होने पर भी १७ मार्च १९९० को राता उपासरा, पीपाड़ से शिष्य मंडल के साथ जोधपुर की ओर विहार कर दिया। रीयां, बांकलिया बुचकला, बेनण, बिनावास, बनाड़ आदि मार्गस्थ क्षेत्रों को अपनी पावन चरण रज से पवित्र करते हुए पूज्यपाद का जोधपुर पदार्पण हुआ। पीपाड़वासी श्रद्धालु जनों एवं मार्गस्थ ग्रामवासी भक्तों को कहाँ पता था कि अब भगवन्त के पावन चरण पुनः इस धरा को पवित्र नहीं करेंगे, हमारे नगर में ज्ञान सूर्य आचार्य हस्ती की प्रवचन सुधा का पान नहीं होगा ? जोधपुर पदार्पण • जोधपुर नगर का कोना-कोना पूज्यपाद के आगमन की प्रतीक्षा में था। हर भक्त के मन में यह अटल विश्वास था कि जिनशासन के सेनानायक अब जोधपुर पधार गये हैं, उनका सुदीर्घ अवधि तक हमें वरद हस्त प्राप्त होगा। उनकी मनमोहक छवि के दर्शन, अमिय दृष्टि, पावन मांगलिक श्रवण व सुखद स्नेहिल सान्निध्य से हम सम्पन्न बनेंगे। पूर्व में महाप्रतापी क्रियोद्धारक आचार्य भगवन्त पूज्य श्री रत्नचन्द जी म.सा, जीवन-निर्माण के कुशल शिल्पी पूज्य आचार्य श्री शोभाचन्द जी म.सा, बाबाजी श्री सुजानमलजी म.सा. प्रभृति तपः पूत महापुरुषों के स्थिरवास से भी यह नगर उपकृत हुआ है, अब हमें परमाराध्य गुरुदेव के श्री चरणों में अपना आग्रह, अनुनय, विनति प्रस्तुत कर उनके स्थिरवास का लाभ प्राप्त करना है। इन महापुरुष ने बाल-वय से लेकर अद्यावधि निरन्तर साधना के उच्च सोपानों पर आरोहण कर लाखों किलोमीटर पाद विहार कर भारत भूमि के कोने-कोने में श्रमण भगवान महावीर के पावन सन्देशों को जन-जन तक पहुँचा कर उन्हें धर्माभिमुख करते हुए अपूर्व धर्मोद्योत किया है। महावीर के धर्म रथ का यह अप्रमत्त सारथी अविराम गति से जिनवाणी का पावन घोष दिग्-दिगन्त में गुंजाता रहा है। भगवन् ! अब बहुत हो चुका। जरा अपने इस तपःपूत देह का भी ध्यान कीजिये, संघ पर अनुग्रह कीजिये व अब यहीं विराजकर आपकी छत्रछाया का लाभ दीजिये, यह पुरजोर विनति श्री चरणों में करनी है। सभी अपने-अपने विश्वास के अनुसार कल्पना कर रहे थे, पर यह अद्भुत योगी संभवत: अपनी दिशा मन ही मन निर्धारित कर चुका था । न जाने उनके मन में क्या था, जोधपुर के कोने-कोने में धर्म- ज्योति प्रज्वलित करने, स्वाध्याय का शंखनाद करने यह योगी विभिन्न उपनगरों को फरस रहा था। इस क्रम में महामन्दिर, पावटा, कन्या पाठशाला, घोड़ों का चौक, उपरला बास, मुथा जी का मन्दिर फरस कर पूज्य चरितनायक भांडावत हाउस पधारे। श्री चम्पक मुनि जी जिन्हें काफी लम्बे समय से संघ मर्यादा व अनुशासन की प्रेरणा देकर स्थिर करने का प्रयास किया जा रहा था, किन्तु कर्म की गति कितनी विचित्र है, मोह का कैसा उदय है कि जिन महनीय गुरुवर्य ने असीम करुणा कर उन्हें संयम धन प्रदान किया, जिन्होंने ज्ञान-दर्शन- चारित्र के मार्ग पर चलना सिखाया, आज उन्हीं के आज्ञा पालन व रत्नवंश की मर्यादा के पालन में प्रमाद के कारण, उन्हें आज्ञा बाहर होना पड़ा। रेनबो हाउस के प्रांगण में भगवान आदिनाथ का पारणक दिवस संवत् २०४७ वैशाख शुक्ला तृतीया दिनांक | २७ अप्रेल ९० के अवसर पर २९ तपस्वी भाई-बहिनों के पारणक सम्पन्न हुए। परम पूज्य आचार्य हस्ती के आचार्य पद-आरोहण के इस दिवस पर श्रद्धालुओं ने विविध तप-त्याग और व्रत-नियम ग्रहण कर श्रद्धाभिव्यक्ति की । इस
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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