SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २७७ के अनुवाद हों तथा जैन ध्यान-केन्द्र व अन्तर्राष्ट्रीय जैन साहित्य अकादमी की स्थापना हो। १३ नवम्बर को सामायिक संघ के वार्षिक अधिवेशन में श्री राजेन्द्र जी पटवा ने संघ की प्रवृत्तियों का परिचय दिया। कोसाणा का यह चातुर्मास तप-त्याग व व्रताराधन के विभिन्न सोपानों से सानन्द सम्पन्न हुआ। • पीपाड़ पदार्पण स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से पूज्य चरितनायक चातुर्मास सम्पन्न होने के पश्चात् भी कुछ समय तक कोसाणा ही विराजे। इस अवधि में आचार्यकल्प श्री शुभचन्दजी म.सा. आदि ठाणा ५, नानकगच्छीय श्री वल्लभमुनि जी म.सा, श्री सुदर्शन मुनिजी म.सा. आदि ठाणा ३ ने पूज्यपाद के दर्शनार्थ पधार कर सुखसाता पृच्छा की। ब्यावर वर्षावास सम्पन्न कर आपके सुयोग्य शिष्य पं. रत्न श्री मानमुनि जी म.सा. (वर्तमान उपाध्याय प्रवर) आदि ठाणा गुरुचरणों में उपस्थित हुए। उनके पधारने के पश्चात् पूज्यप्रवर शिष्य मंडल के साथ विहार कर ६ दिसम्बर १९८९ को पीपाड़ पधारे। ___ शारीरिक अस्वस्थता के कारण आचार्य भगवन्त का दीर्घावधि तक पीपाड़ विराजना हुआ। पूज्यपाद के विराजने से आचार्यदेव की जन्मभूमि पीपाड़ नगर तीर्थधाम बन गया। पूज्य संत वृन्द, पूज्या महासती मंडल व श्रद्धालु श्रावक-श्राविकाओं का आपश्री के दर्शनार्थ पधारना होता रहा। आपश्री के सान्निध्य में पीपाड़वासियों को समवसरण का दृश्य लम्बे समय तक देखने को मिला, स्वधर्मी बन्धुओं के वात्सल्य व पूज्य संत-सतीवृन्द की सेवा का अनुपम लाभ मिला। पीपाड़ निवासी सहज ही प्राप्त देवदुर्लभ इस स्वर्णिम सुअवसर का लाभ उठाने में बढ़चढ़ कर भाग ले अपनी पुण्य वृद्धि कर रहे थे। ज्ञानगच्छीय पं. रत्न श्री घेवरचन्दजी म.सा. 'वीर पुत्र' आदि ठाणा पूज्यपाद के दर्शन व सान्निध्य लाभ हेतु पधारे। ८ दिसम्बर १९८९ को पं. रत्न वीरपुत्र जी म.सा. ने पूज्यप्रवर के सुदीर्घ संयम-जीवन, निरतिचार साध्वाचार एवं जिनशासन सेवा के अभिनन्दन स्वरूप स्वरचित अधोनिर्दिष्ट संस्कृत पद्य समर्पित किया - बाल्येऽपि संयमरुचिं चतुरं सुविज्ञम्, कान्तं च सौम्यवदनं सदनं गुणानाम् । मौनेन ध्यानसहितेन जपेन युक्तम्, पूज्यं नमामि गुणिनं गणिहस्तिमल्लम् । ९ दिसम्बर १९८९ को पूज्यपाद आचार्यदेव ने उत्कट संयम आराधिका, सेवा, सरलता व त्याग की प्रतिमूर्ति , दीर्घ संयमी महासती श्री लाडकंवर जी म.सा. को 'उप प्रवर्तिनी' पद प्रदान किया। पूज्य प्रवर के स्वाध्याय संदेश को कर्नाटक में प्रचारित करने में महनीय योगदान देने वाले सुश्रावक श्री भंवरलालजी गोटावत ने आजीवन शीलव्रत अंगीकार कर शीलसम्पदा-सम्पन्न आचार्य हस्ती के प्रति अपनी श्रद्धा अभिव्यक्त की। १ जनवरी १९९० को जिनशासन प्रभावक आचार्य भगवन्त ने अपनी विदुषी सुशिष्या बाल ब्रह्मचारिणी | महासती श्री मैनासुन्दरी जी म.सा. को 'शासन प्रभाविका' के विरुद से अलंकृत किया। १० जनवरी १९९० पौष शुक्ला चतुर्दशी को पीपाड़ की पुण्यधरा के लाल साधना-सुमेरु पूज्यपाद आचार्य हस्ती का पावन जन्म-दिवस त्याग-तप, व्रताराधन व शासन-सेवा के संकल्पों के साथ मनाया गया। इस अवसर पर बालोतरा, निमाज, भोपालगढ़, पाली, जोधपुर, अजमेर प्रभृति अनेक क्षेत्रों के सघों व शिष्टमंडलों ने उपस्थित होकर पूज्यपाद के श्री चरणों में अपनी भावभीनी विनतियाँ प्रस्तुत की।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy