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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २६१ नये साधक बने । समापन समारोह की अध्यक्षता उदारमना गुरुभक्त श्री पृथ्वीराजजी कवाड़ ने की। सभी साधकों ने दहेज, सप्त कुव्यसन, मृत्युभोज, विवाह में आतिशबाजी एवं नृत्य तथा बड़े भोज में जमीकन्द के त्याग के नियम लिए। चातुर्मास की सफलता में श्री मोफतराज जी मुणोत और उनके परिवार की समर्पण युक्त सेवाएं सराहनीय रहीं । चकित कर देने वाली तपस्याओं, नियम व्रत, अंगीकार करने आदि का ठाट रहा । ९ मासखमण उससे अधिक की तपस्या के अलावा ५९ अठाई एवं १९० तेलातप हुए। श्री बंसीलाल जी, श्री मोहनलालजी चौधरी, गजराजजी मुथा आदि ८ व्यक्तियों ने सजोड़े आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया। कार्तिक पूर्णिमा को श्राविका मण्डल का अधिवेशन सम्पन्न हुआ । मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा को विहार कर ओसवालों का नोहरा, कन्याशाला, चिरडानी, रुणकियावास (ठाकुर के घर विराजे) होकर पूज्यप्रवर रणसीगांव पधारे । यहाँ आपने फरमाया - “ मानव सुख चाहता है, फिर भी क्यों प्राप्त नहीं कर पाता। इसका कारण है अपने ही कर्म, अपनी ही प्रवृत्तियाँ । कहा है - को बुराई सुख च कैसे वे कोय | सप पेड़ चल का. आम कहां ने पाय ।। श्रावकों द्वारा प्रतिदिन १० दया करने की भावना व्यक्त करने पर आप यहाँ मार्गशीर्ष अमावस तक विराजे । यहाँ से विहार कर एक खेत में ३ घण्टे विराजित शीलसाधक चरितनायक के जीवन व प्रेरणा से प्रेरित हो लालसिंह जी ठाकुर ने ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा की । यहाँ से आप मादलिया पधारे । यहाँ भी भक्त श्रावकों का दर्शन-प्रवचन एवं नियमादि का लाभ लेने हेतु आगमन होता रहा । यहाँ से कोसाणा, साथिन होते हुए पुन: पौष शुक्ला ९ को पीपाड़ पधारे । यहाँ पौष शुक्ला चतुर्दशी १३ जनवरी १९८७ को आचार्य श्री की ७७ वीं जन्म जयन्ती उपवास, पौषध, दयाव्रत आदि के साथ उत्साहपूर्वक मनायी गई । अनेक स्थानों से विशिष्ट श्रावकों ने उपस्थित होकर अपनी श्रद्धा-भक्ति का परिचय दिया एवं गुरुदेव से व्रत - नियम स्वीकार किए। जोधपुर पदार्पण • पीपाड़ में जिनवाणी की गंगा प्रवाहित कर रीयां, बुचकला आदि मार्गस्थ क्षेत्रों को फरसते हुए पूज्यपाद आचार्यप्रवर २७ जनवरी को जोधपुर पधारे। जोधपुर की जनता के अनन्य आस्था केन्द्र गुरु भगवन्त के पदार्पण का सन्देश पाकर जोधपुर के विभिन्न क्षेत्रों के लोग आपके दर्शनार्थ उमड़ पड़े । उच्च शिक्षित मुसद्दियों के दिलों पर आपका न जाने कैसा अद्भुत प्रभाव था कि जब-जब भी आप जोधपुर पधारते नर नारी, आबालवृद्ध कोई आपके सान्निध्य सेवा से वंचित नहीं रहना चाहता था । आपका शेखे काल प्रवास भी चातुर्मास जैसा दृश्य उपस्थित कर देता । भक्त मानस पर ऐसा व्यापक प्रभाव होने पर भी परमपूज्य साम्प्रदायिकता से सर्वथा परे थे । आपका चिन्तन था कि सम्प्रदाएँ परस्पर प्रेमपूर्वक एकान्त शासन हित के साथ कार्य करें तो ये धर्म प्रभावना में बाधक नहीं, साधक हो सकती हैं व मान्य समाचारी के पालन की सूत्रधार बन सकती हैं । ३१ जनवरी, माघ शुक्ला द्वितीया को अपने दीक्षा दिवस पर आचारनिष्ठ अनुशास्ता आचार्य भगवन्त ने चतुर्विध संघ को सम्बोधित करते हुए फरमाया- “ उज्ज्वल आचार, परस्पर प्रेम एवं अनुशासन हो तो सभी क्षेत्र अपने हैं ।” संयम-दिवस के इस पावन दिवस पर आपने उत्कट संयम आराधिका उपप्रवर्तिनी स्थविरा महा श्री बदनकंवरजी म.सा. को प्रवर्तिनी पद प्रदान किया। श्री सत्यप्रसन्नसिंहजी भंडारी व श्री सोहनराजजी सिंघवी ने | आजीवन शीलव्रत अंगीकार कर अपने जीवन को संयमित बनाया। बड़ी संख्या में गुरुभक्त श्रद्धालुजनों ने सामायिक
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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