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________________ २४६ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ४. चोल पट्टे, दुपट्टे आदि सामायिक के वेश में सामायिक का अभ्यास। ५. शिष्टाचार, सदाचार, नियम एवं अनुशासन पर विशेष बल। ६. सामायिक प्रतिक्रमण के पाठों को शुद्धता के साथ पढ़ने का प्रशिक्षण। शिविर में बालक-बालिकाओं द्वारा निम्नांकित नियम लिए गए १. महीने में कम से कम ५ सामायिक उपाश्रय में आकर करना। २. अष्टमी, चतुर्दशी को प्रतिक्रमण करना। ३. धूम्रपान एवं नशे का आजीवन त्याग करना। ४. यथाशक्ति चाय, पान एवं कन्दमूल का त्याग रखना। ५. प्रतिदिन स्वाध्याय करना। • जोधपुर की ओर भोपालगढ़ में १० जून को आचार्य श्री पद्मसागरजी म. नागौर से पूज्यपाद के दर्शनार्थ पधारे । ज्ञान-क्रिया के अद्भुत संगम 'गुणिषु प्रमोदं' के मूर्त स्वरूप, साधना के साकार देवता, युग मनीषी आचार्य श्री के प्रति उनके हृदय में अत्यन्त आदर, श्रद्धा व विनय-भाव था। पूज्यपाद के श्रीचरणों में विराजकर उन्होंने साधना के बारे में मार्गदर्शन प्राप्त किया। १४ जून को भोपालगढ़ से विहार कर आचार्य श्री रतकूड़िया एवं साथिन फरसते हुए पीपाड़ शहर पधारे । पूज्यपाद का दो दिवसीय अल्प प्रवास भी सुफलदायी रहा। १७ युवकों ने पर्युषण में स्वाध्यायी के रूप में सेवा देने का नियम लिया व अनेक युवकों ने धूम्रपान एवं चाय आदि का त्याग किया। ___ यहाँ से सेठों की रियां, बुचकला होते हुए आचार्य श्री भंसाली परिवार के आग्रह से पहली बार कूड़ पधारे। गाँव के कृषक, मुनियों की चर्या देखकर आश्चर्यचकित रह गए। उनके दर्शन और वीरवाणी श्रवण कर उन्होंने भी अपने जीवन में कुव्यसन-त्याग के महत्त्व को पहचाना। कूड से विहार कर पूज्यवर्य बीनावास, बिसलपुर, पालासनी, बनाड़ होते हुए जोधपुर पधारे । १ जुलाई १९८४ को अगवानी हेतु सैंकडों भक्तगण बनाड़ तक पहुंच गए। बनाड़ से पावटा (जोधपुर) पधारते-पधारते जनमेदिनी उमड़ पड़ी। १४ कि.मी. के समूचे विहार में भक्त समुदाय, विशेषत: बहिनों एवं युवकों का उत्साह देखते ही बनता था। भक्तगण जैनधर्म की जय, शासनपति श्रमण भगवान् महावीर की जय, निर्ग्रन्थ मुनिमण्डल की जय, गुरु हस्ती के दो फरमान, 'सामायिक स्वाध्याय महान्' के जय निनाद से देव, गुरु एवं धर्म का जयगान करते हुए परमाराध्य गुरुदेव एवं मुनिमण्डल के पदार्पण की आनन्दानुभूति को अभिव्यक्त कर रहे थे। पद-विहार में अनेक भक्तप्रवर नंगे पांव संवर-साधना में चल रहे थे। व्यवस्था एवं विहार में भक्तों का अनुशासन सराहनीय था। पावटा पधारते समय मार्ग में श्री भंवरलाल जी बागमार ने अपने आवास को पावन कराते हुए एक वर्ष कुशील सेवन का त्याग किया। गिडिया भवन में अशेष जन समुदाय पूज्य गुरुदेव के दर्शन-वन्दन एवं प्रवचन-पीयूष का पान करने के लिए एकत्रित हो गया। स्वाति के प्यासे चातक की भांति बाट जो रही अत्रस्थ वयोवृद्धा स्थविरा प्रवर्तिनी महासती श्री सुन्दरकंवरजी म. अपने सती-मण्डल के साथ श्रद्धाकेन्द्र आचार्यदेव के, सात वर्षों पश्चात् दर्शन
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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