SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं चरणों में अपनी-अपनी विनतियाँ प्रस्तुत की। पूज्यपाद ने अहमदाबाद के लिए सन्तों के एक सिंघाडे के चातुर्मास की स्वीकृति प्रदान की। यहाँ निकटवर्ती स्वधर्मी बन्धुओं का आवागमन बना रहा। संसद सदस्य श्री नाथूरामजी मिर्धा ने प्रवचन-सभा में समाज की कुरीतियों को दूर करने हेतु बल दिया। नागौर में पूज्यपाद के विराजने से स्वाध्याय मंडल की स्थापना, जैन पुस्तकालय की सुव्यवस्था आदि उल्लेखनीय कार्य हुए। आचार्य श्री के नागौर आगमन पर चातुर्मास की तरह तपस्याओं का ठाट रहा। सामूहिक दया, सामायिक की पंचरंगी, १२ व्रतधारण के अतिरिक्त आजीवन शीलव्रत भी ग्रहण किए गए एवं वैरागिन बहन सुश्री निर्मला जी सुराणा की दीक्षा निश्चित होने की प्रसन्नता में सुराणा भाइयों ने अपनी विशाल भूमि श्री जैन रत्न श्रावक संघ को ट्रस्ट बना कर समर्पित की। • दीक्षा-प्रसङ्ग ७ अप्रैल ८४ चैत्र शुक्ला षष्ठी को नागौर स्थित प्रेमजी सुनार की बाड़ी में अपार जनसमूह के बीच आचार्य | श्री ने सन्तवृन्द ठाणा ११, महासती श्री सुगनकंवरजी आदि ठाणा ४, जयमल्लगच्छीया महासती श्री झणकार कंवरजी आदि ठाणा ६, बहुश्रुत जी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी महासती श्री भीखा जी आदि ठाणा ४, पायचन्द गच्छ की महासती श्री सुमंगला जी आदि ठाणा २ की उपस्थिति में सोमपुरगोत्रीय विरक्त बंधु हरिदास जी (यल्लपा) एवं बाल ब्रह्मचारिणी विरक्ता बहन सुश्री निर्मला जी सुराणा (सुपुत्री श्री भंवरलालजी एवं श्रीमती किरणदेवी जी सुराणा, जोधपुर) को जैन भागवती दीक्षा प्रदान की। दीक्षा के इस पावन प्रसंग पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री नगराज जी मेहता ने नित्य सामायिक व्रत, पुलिस अधीक्षक श्री रामकिशन जी मीणा तथा उप पुलिस अधीक्षक श्री प्रेमनाथ जी ने सप्त कुव्यसन-परित्याग का व्रत लिया। अपने-अपने क्षेत्रों में पधारने हेतु अत्यंत आग्रहपूर्ण विनतियों के होने पर भी आचार्य श्री ने अनुकूलता रहते वि. संवत् २०४१ का चातुर्मास जोधपुर में करने, अक्षय तृतीया पर पीपाड़ सिटी में विराजने और बड़ी दीक्षा तथा महावीर जयन्ती कडलू में करने के भाव साधु-मर्यादा में फरमाए। • पीपाड़ सिटी में अक्षयतृतीया तदनुरूप रामनवमी को आचार्य श्री मेहलसर (ताउसर) की ओर विहार करते हुए फिडोद से कडलू पधारे और १३ अप्रैल को दशवैकालिक सूत्र के छज्जीवणी अध्ययन से श्री हरीशमुनि जी (पूर्व नाम यल्लपा जी) तथा सती निःशल्यवती जी (पूर्व नाम निर्मला जी) को बड़ी दीक्षा प्रदान की। यहाँ से आचार्य श्री मुंदियाड़, गोवा, वासनी, आसोप, वारणी, नाडसर आदि क्षेत्रों को अपने पाद विहार से पवित्र करते हुए भोपालगढ़ पधारे। यहाँ श्री | सूरजराजजी ओस्तवाल एवं श्री सोहनलालजी हुण्डीवाल ने संजोड़े आजीवन शीलव्रत अंगीकार कर अपने जीवन को समृद्ध किया। भोपालगढवासियों को सम्बोधित करते हुए आचार्यप्रवर ने प्राचीन गौरव की स्मृति, परस्पर ऐक्य व संगठन का सन्देश देते हुए फरमाया -"हाथों की पांचों अंगुलियाँ एक पंजे के रूप में सक्षम और कार्यशील रहती हैं। एक अंगुली कोई भी कार्य नहीं कर सकती। आचार्य श्री रत्नचंदजी म.सा. की क्रियोद्धार भूमि का यह क्षेत्र महापुरुषों के उपकार से उपकृत रहा है। आप सब परस्पर प्रेम से हिल मिलकर रहें तो धर्म प्रभावना के साथ भोपालगढ का गौरव सुरक्षित रह सकता है।" ___ यहाँ से विहार कर पूज्यपाद रतकूड़िया, खांगटा, कोसाणा होते हुए पीपाड़ पधारे, जहाँ अक्षय तृतीया के
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy