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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २२५ कर्मों की निर्जरा कर अपने आपको आत्म-गुणों के रंग में रंग कर सुशोभित करते हैं । यहीं पर चैत्र कृष्णा अष्टमी को आदिनाथ जयन्ती के अवसर पर आपने जन-साधारण के भगवान ऋषभदेव के आदर्शों एवं मानव जाति पर किये गये उपकारों से अवगत कराया। आपकी प्रेरणा से यहां धार्मिक-शिक्षण प्रारम्भ हुआ। विहार क्रम में अलीपुर ग्राम में आचार्य भगवन्त मुनिदयाल जाति की वृद्धा नर्स की पुत्री पार्वती देवी के मुख से वन्दनोपरान्त नमस्कार मंत्र का शुद्ध उच्चारण सुन कर अत्यन्त प्रमुदित हुए । सत्य है गुण पूजा के आदर्श को प्रस्तुत करने वाला जैन धर्म जाति, कुल, देश एवं वेश के बंधनों में आबद्ध नहीं है। यहाँ से विहार कर भगवन्त कुडतनी ग्राम पधारे व वैष्णव मंदिर में विराजे । दक्षिण भारत के ग्राम-ग्राम में करुणाकर आचार्य भगवंत ने 'सब जीवों को जीवन प्यारा, रक्षण करना धर्म हमारा' का मन्त्र पाठ दिया। नई दरोजी में करुणानाथ ने ग्रामवासियों को मांस त्याग का उपदेश दिया, जिससे ग्रामवासियों को हिंसा से विरत होने की प्रेरणा मिली। आपके प्रेरणादायी उपदेश से प्रभावित नवयुवक सरपंच श्री नरसिंह ने सदा-सदा के लिए मद्य-मांस का | त्याग कर अपने जीवन को पाप-कालिमा के गर्त में डूबने से बचाया। यहाँ से पूज्यप्रवर पहाड़ी मार्ग से मेट्रो, कम्पली के लिंगायत मठ होते हुए गंगावती पधारकर श्री पन्नालालजी बांठिया के मकान पर बिराजे । यहां आपके प्रवचन सेठी भाई के भवन में हुए। तीनों सम्प्रदायों के लोगों ने आपके | प्रवचन पीयूष का लाभ लिया। पूज्यपाद के सान्निध्य लाभ से ग्रामवासियों का उत्साह देखते ही बनता था। यहाँ आपने अपने प्रेरक उद्बोधन में फरमाया - "श्रमण भगवान महावीर के उपदेश को श्रवण, ग्रहण, और धारण कर | आचरण में लाना है, तभी कल्याण है।" श्री रामनगर कार्डगी होते हुए आप गोरेवाल ग्राम पधारे व नहर के तट पर अवस्थित चरण वसवेश्वर के मन्दिर में विराजे। यहाँ अजैन भाइयों की सेवा-भक्ति सराहनीय रही। यहां से विहार कर पूज्यप्रवर सिन्धनूर पधारे, जहां महावीर जयन्ती उत्साहपूर्वक मनाई गई। इस अवसर पर देश के विभिन्न २१ नगरों के संघ प्रतिनिधि उपस्थित थे। महावीर जयन्ती के पावन प्रसंग पर श्री पुखराजजी रुणवाल ने आजीवन शीलवत अंगीकार किया व कई युवाओं व प्रौढ व्यक्तियों ने जीवपर्यन्त सप्त कुव्यसन का त्याग कर अपने जीवन को पावन किया। सिन्धनूर से विहार कर चरितनायक जबलगेरे, पोतनाल, कोटनेकल, मानवी होते हुए कपगलु (कफगल) पधारे। जहां करुणाकर गुरुदेव ने अब्दुल्लाह को उसके मकान पर मांस-सेवन, धूम्रपान व परस्त्रीगमन का त्याग कराया। यहाँ || से विहार कर आप कल्लूर, रेड्डीकेम्प फरसते हुए रायचूर पधारे। |. भागवती दीक्षा का आयोजन रायचूर में आचार्य श्री के सान्निध्य में अक्षय तृतीया का पावन पर्व व्रत-प्रत्याख्यान व तप-त्याग के साथ | मनाया गया। परम पूज्य चरितनायक आचार्य हस्ती के आचार्य पद दिवस पर स्थानीय बंधुओं के साथ देश के | विभिन्न भागों से आये भाई-बहिनों ने प्रवचनामृत का लाभ लिया। वैशाख शुक्ला षष्ठी दिनांक ९ मई ८१ को मुमुक्षु बहिन बालब्रह्मचारिणी सरला जी कांकरिया सुपुत्री श्री रिखबचन्दजी कांकरिया मद्रास एवं बाल ब्रह्मचारिणी चन्द्रकला जी हुण्डीवाल सुपुत्री श्री भंवरलालजी हुण्डीवाल भोपालगढ ने परमाराध्य आचार्य गुरुदेव के मुखारविन्द से भागवती श्रमणी दीक्षा अंगीकार कर मुक्ति मार्ग में अपने कदम बढाये। दीक्षा-महोत्सव पर उपस्थित स्थानीय व बाहर से पधारे श्रद्धालु श्रावक श्राविकाओं ने दीक्षा के
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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