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________________ २२२ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं साधनातिशय व साधक जीवन का दिव्य प्रभाव था। विहार काल में मद्रास, वेल्लूर व बैंगलोर आदि क्षेत्रों के भक्त श्रावकों ने विहार-सेवा का लाभ लेकर गुरु-भक्ति का परिचय दिया। मुस्लिम बहुल ग्राम विकोटा में पूज्यप्रवर डाक बंगले पर ठहरे । दयाधर्म के आराधक आचार्य भगवन्त ने यहां चार-पांच व्यक्तियों को अण्डा, मांस व मछली का त्याग करा कर उन्हें हिंसा से विरत किया। बेतमंगल में आप पाठशाला भवन में विराजे। यहां से पूज्य आचार्य भगवन्त के. जी. एफ. पधारे। आचार्य श्री नानेश के शिष्य श्री धर्मेश मुनिजी ठाणा ३ आपकी अगवानी में सम्मुख पधारे। श्रावक समुदाय भी उल्लसित भाव से पूज्यपाद की अगवानी में उपस्थित था। श्री धर्मेशमुनि जी आदि ठाणा पूज्यपाद के साथ ही विराजे । पौष शुक्ला अष्टमी को आचार्य श्री नानेश की दीक्षातिथि पर पूज्य चरितनायक ने फरमाया-“भोपालगढ की पुण्य भूमि में उन्होंने एवं हमने स्थानकवासी समाज के संगठन की भूमिका स्वरूप मैत्री सम्बन्ध किया। मैत्री के इस कल्पवृक्ष का रक्षण, पोषण एवं सिंचन चतुर्विध संघ को करना है। सरलता व आत्मीयता से ही इसका रक्षण संवर्धन संभव है।" के. जी. एफ. में पौष शुक्ला चतुर्दशी संवत् २०३७ को चरितनायक पूज्य हस्ती का ७१ वां जन्म दिवस तपत्याग एवं दया-संवर की आराधना के साथ मनाया गया। बैंगलोर, मद्रास, जलगांव, जयपुर, भोपालगढ एवं आस-पास के क्षेत्रों के श्रावकगण ने पूज्यपाद के पावन दर्शन व अमृतमयी जिनवाणी का पान करते हुए धर्म-साधना का लाभ लिया। परम गुरु भक्त श्री रतनलाल जी बाफना ने इस अवसर पर पांच वर्ष के लिये रात्रि चौविहार के प्रत्याख्यान किये। परमपूज्य गुरुदेव के लिये जन्म-दिवस साधना-संकल्प दिवस था, बालवय में महनीय गुरु के चरणों में जो समर्पण किया, उसे स्मरण कर आगे बढने हेतु संकल्प लेने का दिवस था। पूज्यप्रवर ने इस दिन अपनी रचना के माध्यम से जो संकल्प लिया, उसकी कुछ पंक्तिया प्रस्तुत हैं - गुरुदेव चरण वन्दन करके, मैं नूतन वर्ष प्रवेश करूं। शम-संयम का साधन करके, स्थिर चित्त समाधि प्राप्त करूँ॥ हो चित्त समाधि तन-मन से, परिवार समाधि से विचरूँ। अवशेष क्षणों को शासनहित, अर्पण कर जीवन सफल करूँ। उपर्युक्त पंक्तियां पूज्य हस्ती की उत्कट गुरु-भक्ति, आत्मोन्नति की तीव्र अभिलाषा, शासनहित समर्पण, शम |दम के प्रति प्रीति आदि गुणों को प्रकट करते हुए हमें भी जन्म-दिवस मनाने के सच्चे प्रयोजन का दिग्दर्शन कराती ग्रामानुग्राम विचरण-विहार करते हुए आचार्य भगवन्त बंगारपेठ फरसते हुए कोलार पधारे जहाँ श्री जेवतराज जी धारीवाल ने आजीवन शीलवत अंगीकार किया। यहां से नरसापुर, होस्कोटे आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए पूज्यपाद २६ जनवरी १९८१ को कृष्णराजपुरम पधारे। दिनांक २७ जनवरी को करुणाकर बैंगलोर के उपनगर अलसूर पधारे। ___के. जी. एफ. से बैंगलोर का यह विहार परीषहों से पूर्ण था। आहार पानी का कोई योग नहीं था। मार्ग में | सेना के आवास थे । सेना के लोग मांसाहार का प्रयोग करते थे। दयाधर्म के आराधक षट्काय प्रतिपाल पूज्य हस्ती की प्रेरणा से बटालियन के अधिकारी ने संकल्प किया कि बटालियन के सामूहिक भोजन में मांसाहार का उपयोग नहीं किया जायेगा। यह अहिंसा के पुजारी महान सन्त इस महायोगी के प्रबल पुण्यातिशय का ही दिव्य
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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