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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २०९ ने परस्पर क्षमा मांग कर इस कलह को समाप्त कर संघ को सामरस्य एवं सद्भाव में आबद्ध किया। ____ पहुर से पूज्यपाद सेंदूर्णी, पलासखेडा, बाकोद में धर्म का अलख जगाते हुए तोंडापुर पधारे। यहां श्री नामदेव पाटिल ने आपसे सजोड़े शीलवत अंगीकार कर अपनी भक्ति का परिचय दिया। यहां से आप फतेपर पधारे। यहां आपकी पावन परणा व मंगलमय आशीर्वाद से यवकों व बालिकाओं के धार्मिक शिक्षण के लिये भी महावीर जैन स्वाध्यायशाला की स्थापना हुई। धर्मनिष्ठ श्रद्धालु युवारत्न श्री रतनलाल जी ने संयमधनी तप:पूत आचार्यदेव के फतेपुर पधारने की खुशी में सजोड़े एक वर्ष का शीलव्रत अंगीकार कर श्रद्धा-भक्ति का क्रियात्मक रूप प्रस्तुत किया। मार्गस्थ गांवों व यहां पर कई अन्य व्यक्तियों ने आजीवन शीलव्रत के प्रत्याख्यान किये। फतेपुर से पूज्यवर्य गोदरी पधारे, जहां मात्र एक जैन घर होते हुए भी सम्पूर्ण गांव के लगभग ७०० व्यक्ति आपके दर्शनार्थ उपस्थित हुए। यहां से आपका विहार पहाड़ी घाटियों के विकट मार्ग को पार करते हुए हुआ।। परीषह विजेता साधक महापुरुषों की परीक्षा में प्रकृति भी पीछे नहीं रहती है। अचानक वर्षा प्रारम्भ हुई एवं पूज्यपाद ने शिष्य मंडल के साथ एक किसान की कुटिया में विराज कर उसे पावन किया। ५ घंटे वहां विराजने के उपरान्त विहार कर आप जब धावड़ा ग्राम पहुंचे तो शाम हो चुकी थी। सभी सन्तवृन्द के सहज ही उपवास हो गया था। धावड़ा से पीपलगांव, भोकरदन, केदारखेडा, चांडई, राजूर आदि क्षेत्रों को फरसते हुए भगवन्त जालना पधारे। यहां अपने प्रेरक उद्बोधन में आपने कषाय भाव को पाप कर्मों के बन्धन का हेतु बताते हुए संगठन व सद्भाव की प्रेरणा की। आपकी मंगलमयी ओजस्वी प्रवचन सुधा के प्रभाव से समाज में परस्पर समझौता होने से स्नेहमय वातावरण का निर्माण हुआ। स्वाध्याय की आपकी प्रबल प्रेरणा से बच्चों में संस्कार व धार्मिक शिक्षण देने हेतु यहां स्वाध्यायशाला का श्री गणेश हुआ। यहां पर आपने श्री शोभागसिंहजी चण्डालिया के संग्रह का अवलोकन किया, जिसमें १५५५ लेख-नियुक्तियाँ थीं। यहां वस्त्र, पात्र एवं ओघा आदि उपकरणों का भी भंडार था। फतेपुर से धर्मनिष्ठ श्रावक श्री रतनलालजी फूलफगर के नेतृत्व में ७० भाई-बहिनों के संघ ने आकर पूज्यपाद के पावन दर्शन व वंदन का लाभ लिया। पूज्यवर्य जालना से विहार कर गोलापांगरी, अम्बड धाकलगांव गेवर, गेवराई, गड्डी आदि क्षेत्रों में धर्मोद्योत करते हुए बीड पधारे। मार्ग में धाकलगांव में श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस के अध्यक्ष श्री जवाहरलालजी मुणोत ने सपरिवार एवं मंत्री श्री चम्पालालजी संकलेचा ने पूज्यपाद के पावन दर्शन, वन्दन व सान्निध्य का लाभ लेकर मार्गदर्शन प्राप्त किया। गेवराई में श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर में सर्वजनहिताय आपका प्रवचन हुआ। पूज्य गुरुदेव २ दिन बीड विराजे । आपके दो दिनों के इस अल्पकालिक प्रवास में ही ओस्तवाल, खींवसरा एवं डूंगरवाल भाइयों ने आजीवन शीलवत अंगीकार कर अपने जीवन को सुशोभित करते हुए आपके श्री चरणों में श्रद्धा भक्ति समर्पित की। बीड से विहार कर भगवन्त पाली होते हुए मोरगांव पधारे। यहां शोलापुर संघ एवं चौशाला के श्रावक-श्राविकाओं ने आचार्य देव की सेवा में अपना क्षेत्र फरसने की पुरजोर विनति प्रस्तुत की। उस्मानाबाद जिले की सीमा में आपका प्रवेश होते ही चौशाला गांववासी प्रमुदित हो उठे। आपने यहां अपने प्रेरक उद्बोधन में श्रावक द्वारा करणीय षट्कर्म का विवेचन करते हुए 'देव' का स्वरूप समझाते हुए फरमाया कि जो राग-द्वेष से रहित होते हैं | एवं कनक व कामिनी को पूर्णत: जीत लेते हैं, वे ही सच्चे देव हैं, श्रावक के लिये वे ही आराध्य हैं। कहा भी है देव वही जो राग रोष से हीना। कनक कामिनी विजय करन प्रवीना ।।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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