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________________ [प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड पधारे। यहाँ से गोटण, हरसोलाव होते हुए आपश्री आसावरी पधारे, जहाँ महासती श्री झणकार कंवर जी ने वन्दनप्रवचन सेवा का लाभ लिया। यहाँ से आप नोखा, खजवाणा, नीमली, कुचेरा, मुंडवा होते हुए नागौर पधारे, जहाँ आचार्य श्री रत्नचन्द्र जी म.सा. की १३२वीं पुण्यतिथि १३२ दया-पौषध के साथ मनायी गई। एक स्वाध्याय शिविर भी आयोजित हुआ। • अजमेर चातुर्मास (संवत् २०३४) नागौर में धर्मोद्योत कर खजवाना, मेड़ता रोड़, मेड़तासिटी, जसनगर (केकीन), गोविन्दगढ़ को पदरज एवं वाग्वैभव से समृद्ध करते हुए आपका अजमेर में संवत् २०३४ के चातुर्मासार्थ शुभागमन हुआ। यह आपश्री का सत्तावनवां चातुर्मास था। आपके गुरु पूज्य आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी की म. पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आपश्री ने देव और गुणी आचार्य गुरु के स्वरूप का प्रतिपादन कर तीर्थंकर महावीर में दोनों रूपों की विद्यमानता बतायी तथा वर्तमान में हमारे देव प्रत्यक्ष नहीं होने से सद्गुरु की आराधना को ही मानव के लिए कल्याणकारी बताया। क्योंकि निर्दोष मार्ग का पथिक तथा प्रणेता सद्गुरु ही होता है। पर्युषण में आपके उद्बोधन विषय-विकारों का शमन कराने वाले, तप और संयम की प्रेरणा करने वाले तथा जीवन में अध्यात्म आलोक को प्रज्वलित करने वाले थे। जिससे देश-देशान्तरवर्ती श्रावकों के जीवन को सही दिशा मिली और उनके चिन्तन का दृष्टिकोण निर्मल हुआ। यहाँ पहली बार बहनों एवं भाइयों में दया-पौषध की अलग-अलग नवरंगी की आराधना हुई। २० अक्टूबर १९७७ से षड्-दिवसीय स्वाध्याय-साधना शिविर प्रारम्भ हुआ जिसमें ४० स्वाध्यायी साधकों ने भाग लिया। शिविर में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, अधिवक्ता, शिक्षक एवं व्यापारियों ने भाग लेकर ध्यान एवं मौन के साथ कषाय-विजय का अभ्यास किया। सहायक आयकर आयुक्त श्री बी.आर. कुम्भट ने शिविर का उद्घाटन किया तथा समापन समारोह के मुख्य अतिथि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान के अध्यक्ष श्री सत्यप्रसन्न सिंहजी भण्डारी थे। जयपुर की श्राविकारत्न श्रीमती लाडबाई जी बोथरा (धर्मपत्नी श्री उग्रसिंह जी बोथरा) अपने ३३ उपवास पर अजमेर आई एवं ४२ दिन की तपस्या पूर्ण की। मासखमण तप करने वाली तपस्विनी श्राविकाओं का अभिनंदन, शिविरार्थियों का स्वाध्याय साधना-शिविर, श्राविका समिति का अधिवेशन, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल का वार्षिक अधिवेशन, लोंकाशाह जयन्ती समारोह आदि प्रसंग उल्लेखनीय एवं प्रेरणादायी रहे। • भोपालगढ़ में आचार्य श्री नानालालजी म. से मिलन अजमेर के उपनगरों को फरसते हुए पुष्कर पधारने पर मरुधर केसरी जैन पारमार्थिक संस्था भवन में आपका प्रवचन अतीव प्रभावोत्पादक रहा। नदी में पानी के कारण मार्ग बदलकर तबीजी, सराधना, लीडी खरवा होते हुए आप ब्यावर के गोलेच्छा गार्डन में विराजे। यहाँ से फिर गिरी में सामाजिक सामरस्य स्थापित कर निमाज, जैतारण होकर | आप बिलाड़ा पधारे। यहाँ पर आपके कृष्णादशमी का मौनव्रत था। आचार्य श्री प्रत्येक गुरुवार एवं कृष्णादशमी को मौनव्रत रखते थे। प्रवचन , वाचना आदि को छोड़कर आप मौन के समय में आत्म-साधना, स्वाध्याय एवं ध्यान में ही संलग्न रहते थे। बिलाड़ा से पीपाड़, कोसाणा होते हुए १७ जनवरी १९७८ को आप भोपालगढ़ पधारे। भोपालगढ़ प्रवासकाल में आचार्यश्री की ६८वीं जन्म-जयन्ती पर आचार्य श्री नानालाल जी म.सा. तथा | आपश्री के संयुक्त प्रवचन हुए। दोनों आचार्यों के मधुर-मिलन को देखकर आबालवृद्ध नरनारी भावविभोर हो उठे।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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