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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड १८७ चांदमलजी कर्नावट श्री जसकरण जी डागा, श्री सम्पतराजजी डोसी जैसे १६ वरिष्ठ साधकों ने भाग लिया। आचार्य श्री ने साधना-पद्धति, साधना का महत्त्व, साधकों की तैयारी तथा योग्यता पर विशेष प्रवचन और प्रेरक उद्बोधन दिए। स्वाध्याय के साथ चरितनायक श्रावकों को साधना की श्रेष्ठता एवं उसमें निरन्तर अभिवृद्धि से जोड़ना चाहते थे। यह प्रयत्न उसी दिशा में प्रारम्भ हुआ। • बालोतरा चातुर्मास (संवत् २०३३) आचार्य श्री का ५६वां चातुर्मास संवत् २०३३ में बालोतरा में ठाणा ६ से हुआ। जनमेदिनी ने दर्शन तथा | जिनवाणी का श्रवण कर अपने आपको धन्य किया। आचार्यप्रवर की प्रेरणा से बालोतरा की लूनी नदी में मछली | मारना तथा कसाईखाना बंद रहा। पर्युषण पर्व से कुछ दिनों पूर्व व्याख्यान में आचार्यप्रवर ने फरमाया कि यदि इस पर्व के पुनीत अवसर पर | आठ दिनों तक अपना व्यापार, कारोबार, कमठा आदि आरम्भ का कार्य बन्द रखा जाए तो आपके समाज के लिए | गौरव की बात होगी। इससे सहज ही आप आरम्भ परिग्रह से बच कर दया संवर आदि व्रताराधन से जुड़ कर अपने जीवन का निर्माण तो करेंगे ही, पर्वाराधन का सच्चा स्वरूप भी शासन प्रभावना का हेतु बनेगा तथा भावी पीढी को भी धर्म के सम्मुख होने का सहज अवसर समुपलब्ध होगा। इस संकेत का फल यह हुआ कि संघ ने सर्व सम्मति से पर्युषण के आठ दिनों पर आरम्भ एवं व्यवसाय के कार्य बन्द रखने का निर्णय कर लिया। स्थानकवासी समाज के इस निर्णय से प्रभावित | होकर तेरापंथी एवं मन्दिरमार्गी समाज का भी मन हुआ कि सम्पूर्ण ओसवाल जैन समाज में पर्युषण के | दिनों में व्यापार एवं आरम्भ के कार्य बन्द रखे जावें तो अत्युत्तम रहे। तीनों समाज ने मिलकर ओसवाल समाज को इसके लिए प्रार्थना पत्र दिया। यह योजना ओसवाल समाज की बैठक में सर्वसम्मति से पारित कर दी गई। इस प्रकार गुरुदेव का संकेत ऐसा सफल हुआ कि आज तक सम्पूर्ण जैन समाज के सदस्य पारस्परिक समन्वय से ८ या ९ दिनों के लिए पर्युषण में अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान एवं निर्माण कार्य बन्द रखते हैं। अनेक प्रभावशाली लक्ष्मीपति दम्पतियों द्वारा आजीवन शीलव्रत ग्रहण करना, त्रिदिवसीय ध्यानयोग-साधना शिविर का आयोजन, श्री अखिल भारतवर्षीय महावीर जैन श्राविका समिति का द्वितीय अधिवेशन समारोह, नारी शिक्षा एवं नारियों में अंधविश्वास निवारण हेतु चेतना-जागृति कार्यक्रम बालोतरा चातुर्मास की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ रहीं। प्रवचनों से प्रेरित होकर संपूर्ण जैन समाज ने पर्युषण पर्व के पावन दिनों में आरंभ समारंभ रूप व्यवसाय बंद रखने का निर्णय लिया, जो अब भी फेक्टरियों को बंद रखकर पालन किया जा रहा है। चातुर्मास समापन के अवसर पर जिलाधीश सज्जननाथ जी मोदी ने जैसलमेर पधारने की विनति की। ___ आत्म-नियन्ता आचार्य श्री यहाँ से विहार कर कनाना, पाडलू तथा समदड़ी पधारे। आप श्री के प्रभाव से तीनों गाँवों में व्याप्त विवाद एवं मन मुटाव दूर होकर परस्पर सौहार्द का वातावरण बना। निकटवर्ती क्षेत्रों में अपने संयम के आदर्श से जन-जीवन को मूक तथा मुखर साधना संदेश देते हुए आपश्री २४ दिसम्बर ७६ को पाली पधारे । स्थविर सौभागमुनिजी, श्रुतधर प्रकाशमुनि जी, उत्तम मुनि जी आदि ठाणा ४ अगवानी में सामने पधारे । यहाँ तपस्वीराज श्री चंपालालजी म. ठाणा ८ का सुराणा मार्केट स्थानक में मिलन हुआ। पौषशुक्ला चतुर्दशी को परमपूज्य चरितनायक के जन्मदिन पर तपस्वीराज पूज्य श्री चंपालालजी म.सा. ने ‘हलाहल कलयुग मत जाणो रे बडे
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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