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________________ सवाईमाधोपुर, ब्यावर, बालोतरा एवं अजमेर चातुर्मास (संवत् २०३१ से २०३४) भार • भरतपुर होकर आगरा : पल्लीवाल समाज में धर्म जागरण गांधीनगर से १ दिसम्बर १९७३ को गोलेछा गार्डन होते हुए आप कानोता पधारे। यहाँ छात्रों को उद्बोधित कर मोहनपुरा, गोठड़ा, भंडाणा को पावन करते हुए दौसा पधारे। जन-जन को हितबोध देते हुए आप लालसोट मण्डावरी, डाबर, बड़ा गाँव, बामनवास, सफीपुरा होते हुए प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र श्रीमहावीर जी पधारे। मार्ग में बन्धे की पाल से गुजरते समय आपको जो अनुभूति हुई वह आपके ही शब्दों में दैनन्दिनी से उद्धत है-“पाल पर से पानी हिलोरें खाते ऐसा दिख रहा था, मानो अन्तर में मोह पवन से तरंगित मन की तरंगें संयम-नियम की पाल से टकराकर पीछे जा रही हों।" आपकी यह अनुभूति प्रकृति से भी अध्यात्म का अध्ययन करने की प्रवृत्ति को इंगित करती है। जो सीखना चाहता है वह प्रकृति के तत्त्वों से भी अध्यात्म की सीख ग्रहण कर सकता है। मार्गस्थ ग्राम-जनों को धर्म के प्रति प्रेरित कर आप बरगमां, झारेडा एवं हिण्डौन पधारे। यहाँ २४ दिसम्बर को स्वाध्याय शिविर आयोजित हुआ। नई मंडी, शेरपुर जैसे गाँवों में किसानों द्वारा वृद्ध पशु के विक्रय करने का त्याग करना तथा आपश्री को अपना गुरु बनाना, आपश्री के प्रभावी व्यक्तित्व एवं पातक प्रक्षालिनी वाणी का प्रत्यक्ष प्रमाण था। कच्चे मार्ग पर बसे धाधरेन जैसे गाँव में ४०-५० गूजरों द्वारा धूम्रपान, मद्यपान, तम्बाकू-सेवन आदि व्यसनों का त्याग, मानव जीवन निर्माण की कड़ी में महत्त्वपूर्ण कदम था। पौष शुक्ला ७ को बयाना पदार्पण के समय तहसीलदार रणविजयजी एवं उपजिलाधीश ललितप्रसादजी शाह अगवानी के लिये सामने आए। जिलाधीश एवं भरतपुर के भाई भी दर्शनार्थ उपस्थित हुए। बयाना से आप उच्चैन पधारे, जहाँ पुराने ताड़पत्रों का अवलोकन आचार्यश्री के विद्या-व्यसन को परिलक्षित कर रहा था। ४ जनवरी १९७४ पौष शुक्ला एकादशी को आपने भरतपुर में प्रवेश किया। भरतपुर के जिलाधीश पशुपति नाथ जी भंडारी ने सप्त व्यसन तथा रिश्वत लेने-देने का त्याग करने के नियम ग्रहण किए। स्थानीय जेल में आपका प्रभावी व्याख्यान हुआ। महावीर भवन में श्री चंदूलालजी, हजारीमलजी, रेवतीलालजी और फूलचंदजी ने आजीवन शीलव्रत का नियम लिया। यहाँ से आप बछामदी पधारे, जहाँ राजस्थान के डी.आई.जी. ज्ञानचन्दजी सिंघवी ने दर्शनलाभ लिया। वहाँ से चिकसाना, अछनेरा, अंगूठी होते हुए चरितनायक लोहामंडी, आगरा पधारे। यहाँ उपाध्याय कवि श्री अमरचन्द जी म.सा. ने आप श्री की अगवानी की और आपके आचार्य पद का सम्मान किया। दोनों मुनिवरों का बड़ा आत्मीय मिलन हुआ। आप पोषधशाला पधारे, जहाँ आपका पूज्य श्री पृथ्वीचंदजी म.सा. से मिलन हुआ। आपने मोतीकटरा, बेलनगंज एवं मेयरकोठी को भी पावन किया। मोतीकटरा में धर्म, अहिंसा और श्रावक के दायित्व पर सरस प्रवचन करते हुए आपने फरमाया "संयम-साधना में सहयोग दे सकें तो दें, पीछे तो नहीं खींचे।” लोहामण्डी कोठी में २८ जनवरी १९७४ माघशुक्ला पंचमी वि. संवत् २०३० को जैन महिला महाविद्यालय के प्रांगण में पीपाड़ निवासी दीक्षार्थी भाई श्री चम्पालालजी (सुपुत्र श्री जीवराजजी मुथा एवं श्रीमती तीजा बाई, पीपाड़ सिटी) को आपश्री ने भागवती दीक्षा
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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