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________________ १६० - - - नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं शक्ति लगा दी थी। बढ़ते शैथिल्य को गुरुदेव निराकृत करना चाहते थे। किन्तु उसमें सहयोग न मिलने एवं अव्यवस्थाओं के मद्देनजर संयम आराधक , प्राच्य संस्कृति एवं विशुद्ध साध्वाचार के हिमायती चरितनायक के समक्ष एकमात्र विकल्प श्रमण संघ से पृथक् होना ही शेष था। ___ मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी को आपने धर्म की आस्था विषयक प्रवचन फरमाया। इस प्रवचन सभा में राजस्थान | के मख्यमंत्री श्री मोहनलालजी सुखाडिया ने भी उपस्थित होकर आपके मंगलमय पावन दर्शन व वचनामृत का लाभ प्राप्त किया। • सवाई माधोपुर की ओर आचार्य श्री ने जयपुर के गाँधीनगर, बजाजनगर आदि को पावन करते हुए सवाई माधोपुर की ओर चरण | बढ़ाए। मार्ग में सांगानेर, शिवदासपुरा होकर लोक भारती संस्थान में अहिंसक जीवन पर उद्बोधन देते हुए आप चाकसू पधारे, जहाँ विद्यालय के बालकों को नशा, चोरी और गाली का प्रयोग न करने का संकल्प दिलाया। यहाँ आपका पूज्य आनन्दऋषि जी से मधुर वार्तालाप हुआ। फिर कौथून के पंचायत भवन, गुनसी की पाठशाला में एक रात्रि ठहर कर आपने निवाई, सिरस, पावडेढा होते हुए सन्त रामनिवासजी म, महासतियाँ जी एवं श्रावक-श्राविकाओं द्वारा की गई जय-जयकार के साथ चौथ का बरवाड़ा के स्थानक भवन में प्रवेश किया। आपने पौष कृष्णा १० को पार्श्वनाथ जयन्ती पर भ. पार्श्वनाथ द्वारा कमठ उद्धार की घटना से शिक्षा लेने की प्रेरणा की। स्वाध्याय और धर्म शिक्षा हेतु अभिमुख होने का उद्बोधन दिया। यहाँ गोविन्दरामजी आदि श्रावकों ने बारह व्रत अंगीकार किए। तदनन्तर आचार्यश्री ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए सवाईमाधोपुर पहुंचे, जहाँ अनेक श्रावकों ने १२ व्रत अंगीकार किए और स्कूल के बच्चों ने नैतिक नियम स्वीकार किये। सवाईमाधोपुर पधारते समय आपने बणजारी, एकडा, डेकवा आदि ग्रामों को भी फरसा। यहाँ से आलनपुर, शेरपुर, रावल, कुण्डेरा, श्यामपुरा, एण्डा, धनोली, सूरवाल, पुनः आदर्शनगर, सीमेण्ट फैक्ट्री, आलनपुर, कुस्तला, पचाला होते हुए आपने चोरू पदार्पण किया, जहाँ ३ फरवरी माघ शुक्ला पंचमी संवत् २०२४ को वयोवृद्ध श्री पन्नालाल जी म.सा. के स्वर्गवास के सायंकाल समाचार सुनकर निर्वाण कायोत्सर्ग किया। श्रद्धाञ्जलि सभा में आचार्य श्री ने उनके जीवन एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए फरमाया- "स्वामीजी | महाराज के स्वर्गवास से श्रमण समाज में एक क्रियावान, निष्ठावान, मर्यादाशील, सिद्धान्तवादी सन्त की रिक्तता हुई है। मेरे साथ आपका वर्षों से प्रेम सम्बन्ध चलता रहा। पारस्परिक विश्वास के साथ सामाजिक स्थिति में विचार की हमारी एकता निरन्तर अद्यतन निभती रही। वे आज नहीं हैं, पर उनके सद्गण और प्रेरक उद्बोधन आज भी समाज को जागृत कर रहे हैं। वे एक विद्वान सन्त, प्रखर वक्ता और सुन्दर साहित्य सर्जक थे। क्रान्ति और शान्ति दोनों का स्वामीजी में एक साथ वास था। स्थानकवासी समाज ऐसे मुनिरत्नों का स्मरण कर अपने आप में गौरवानुभव करता दृढ़तापूर्वक जैन धर्म का पालन करने वाले मीणा जैनों के ५०-६० घर वाले अलीनगर (जैनपुरी) ग्राम में पधारे, जहाँ आपने जन समुदाय को जीवन की असारता का उद्बोधन दिया। उखलाना में मुनिश्री गोपीलालजी म.सा.से आपका स्नेह मिलन हुआ। यहाँ से अलीगढ़-रामपुरा में आपकी प्रेरणा से त्रिदिवसीय सामायिक शिविर में २५ सामायिक संघों की स्थापना हुई, जिसका क्षेत्रीय कार्यालय सवाईमाधोपुर एवं प्रधान कार्यालय जयपुर तय किया गया। तदुपरान्त बिलोता, पाटोली, देवली, गाडोली, खातोली, समिधी, जरखोदा, बणसोली, देई, नैनवां, दूणी, आवाँ, भरणी होते हुए चरितनायक
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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