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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड -emEERREmwarendra Dargan - -- - 1. जोधपुर एवं पाली की ओर भोपालगढ़ से विहार कर खांगटा में ३२ वर्ष के तरुण नथमलजी कोठारी को आजीवन शीलव्रत का प्रत्याख्यान कराकर आप रणसीगांव , पीपाड़, बिसलपुर, पालासनी आदि ग्रामों में जिनवाणी का अमृतरस पान कराते हुए पौष शुक्ला पंचमी ८ जनवरी १९६४ को जोधपुर पधारे। पौष शुक्ला १४ संवत् २०२१ को चरितनायक की जन्म जयन्ती जोधपुर में प्रवर्तक पण्डित श्री पुष्कर मुनिजी | महाराज आदि के सह-सान्निध्य में तप-त्याग पूर्वक मनाई गई। चरितनायक ने इस अवसर पर फरमाया कि मेरा जीवन-लक्ष्य सामायिक-स्वाध्याय है। चतुर्विध संघ के सहकार से यदि मैं सामायिक-स्वाध्याय के प्रचार-प्रसार का अपना उद्देश्य पूर्ण कर सका तो जीवन की सफलता समदूँगा। पं. श्री लक्ष्मीचन्दजी म.सा. एवं श्री मगनमुनि जी की चिकित्सा के कारण आप जोधपुर में लगभग साढे तीन माह विराजकर स्वाध्याय, सामायिक एवं धर्म प्रवृत्तियों का वर्धापन करते रहे। सरदारपुरा में माघकृष्णा द्वादशी २९ जनवरी १९६५ को आपने प्रवचन में फरमाया - "राजशासन के लिए कोष और सैन्यबल समृद्ध होना अपेक्षित है। वैसे ही धर्मशासन में चारित्र कोष और श्रावक हमारी सैन्य शक्ति हैं। इनमें निष्ठा एवं व्यक्तिगत मोह से ऊपर उठकर शासन के प्रति वफादारी होनी चाहिए। सम्मेलन के नियमों का जो पालन करे उन्हीं को साधु मानना चाहिए। श्रमणों को आचारधर्म का प्रामाणिकता से पालन करना चाहिए। आचार ही शासन की निधि है। हमें संगठन या सुधार के नाम पर संयम या आचार को नहीं झुकाना है। ज्ञान, क्रिया, विचार या आचार की तुलना में आचार के बिना विचार निर्मूल्य हैं।" मेवाड़ प्रान्तमन्त्री श्री पन्नालालजी म.सा. की सम्प्रदाय की वयोवृद्धा महासतीजी श्री धनकुँवरजी ८० वर्ष की अवस्था में भी ग्रामानुग्राम विचरण करती हुई आपके दर्शनलाभ कर प्रमुदित हुई। जोधपुर से लूणी पधारते समय मार्ग में आपका यति भेरूजी से वार्तालाप हुआ। एक वैष्णव साधु की हाथी पर सवारी निकल रही थी, आचार्य श्री को देखकर वह हाथी से उतरा, वन्दन किया और कहा कि मैंने आपके प्रकाण्ड पांडित्य, प्रवचन-पटुता और वाग्वैभव आदि गुणों की यशोगाथाएँ सुन रखी थी, आज आपके दर्शन कर मैं धन्य धन्य हो गया। अक्षय तृतीया पर पाली के पंचायती नोहरे में वर्षीतप के पारणे हुए। चरितनायक ने यहाँ प्रवचन में प्रेरणा दी कि वैशाख शुक्ला एकादशी शासन जयन्ती के रूप में मनाई जानी चाहिए। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी महावीर के भौतिक पिण्ड का जन्म-दिन है जबकि वैशाख शुक्ला एकादशी महावीर की महावीरता का जन्म-दिन है। जन्म-जयन्ती लौकिक मंगल है तो शासन जयन्ती लोकोत्तर मंगल है। इससे आचार्य श्री के मौलिक चिन्तन का बोध हुआ। पाली से पुनायता, केरला, गढवाडा, जेतपुरा आदि को फरसते हुए आप मांडावास पधारे । यहाँ पर मंदिरमार्गी व स्थानकवासियों में मनमुटाव था। आपस में हुई गलत फहमियों को दूर करने हेतु गुरुदेव के द्वारा प्रेरणा की गई, जिससे परस्पर शीघ्र ही सुलह हो गई। यहाँ से आप गेलावास, ढींढस (यहां श्री चुन्नीलालजी ने शीलव्रत अंगीकार किया), मजल, कोठड़ी, राणी दहिपुरा एवं दसीपुरा पधारे, जहाँ १५ वर्ष के भेरू ने १० वर्ष शीलपालन का नियम लिया। यहाँ से समदड़ी में पुष्करमुनिजी म. से विचार-विमर्श कर देवेन्द्र मुनिजी को साहित्य एवं अध्ययन लेखन की प्रेरणा करके आप करमावास, राखी, मोकलसर होते हुए वीर दुर्गादास की ऐतिहासिक भूमि सिवाना पधारे, जहाँ आपको विदित हुआ कि सिवांची क्षेत्र के १४४ ग्राम पारस्परिक कलह में डूबे हुए हैं। पूज्य प्रवर ने इस कलह को | -
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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