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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं का श्रावक होकर भी स्वाध्याय एवं सत्संग के अभाव में चलचित्त हो गया और आर्तध्यान में मरकर मेंढक हआ। तंगिया के श्रावक स्वाध्यायी थे। ३३ श्रावक मित्र स्वाध्याय एवं सत्संग से स्थिरभाव में करणी करके इन्द्र के गुरु हए। स्वाध्याय से सामायिक की साधना भी व्यवस्थित होती है। साधना-बल से आकुलता समाप्त होकर मानव को परम शान्ति प्राप्त होती है।” पूज्य प्रवर ने फरमाया – “दु:ख के तीन कारण हैं- १. अज्ञान, २. कुदर्शन और ३ मोह । प्रभ ने दःख मुक्ति के लिए भी उत्तराध्ययन सूत्र के ३२ वें अध्ययन में तीन उपाय बताये हैं-१. ज्ञान का प्रकाश करो। २. अज्ञान - मोह को दूर करो। ३. राग-द्वेष का नाश करो।” गुरुदेव की प्रेरणा से पाँच युवकों ने नियमित स्वाध्याय का नियम लिया। आप यहाँ से विहार कर बोहेडा होते हुए बड़ी सादड़ी के बडी न्यात के नोहरे में विराजे । • बड़ी सादड़ी
बड़ी सादड़ी में गोकुल हरिजन ने आजीवन जीव-हिंसा व मांस-भक्षण का त्याग किया। यहाँ महासती चूना जी आदि ठाणा ४ स्थिरवास विराजमान थे। उन्होंने गुणस्थानों में आहारक-अनाहारक सम्बन्धी प्रश्न किये जिनका पूज्यवर ने तात्त्विक समाधान किया। श्रावकों ने पं. लक्ष्मीचन्द जी म.सा. के चातुर्मास हेतु विनति की। यहाँ के जागीरदार के काका श्री भीमसिंह जी का मद्य-मांस का सेवन और शिकार करना दैनिक कार्य था। ऐसा करना वे राजपूतों के लिये जरूरी मानते थे। आचार्य श्री ने मूक प्राणियों की हत्या का विवेचन करते हुए कहा कि “प्रत्येक प्राणी जीवित रहना चाहता है। कैसी भी स्थिति हो लेकिन उसकी जिजीविषा की भावना सदैव बलवती रही है और मृत्यु का नाम सुनते ही वह भयभीत हो उठता है। मनुष्य होकर जो धर्म के नाम पर या अपनी आकांक्षा पूर्ति के लिए प्राणि-हत्या करते हैं वे मनुष्य होकर भी राक्षसी वृत्ति वाले हैं। ऐसे व्यक्ति दूसरों का विनाश करने के साथ-साथ अपने लिए रौरव नामक नरक का रास्ता बनाते हैं।" आचार्य श्री का सदुपदेश सुनकर भीमसिंह जी का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने अपने किये हुए पर पश्चात्ताप किया | और सदैव के लिए जीव-हिंसा तथा मद्य-मांस का त्याग कर दिया।
बड़ी सादड़ी से साटोला होते हुए धाकडों के गाँव मानपुरा पधार कर धाकडों की पोल के बाहर रात्रि विश्राम | किया। यहाँ से कच्चे रास्ते पहाड़ की घाटी उतर कर छोटी सादड़ी पधारे। धर्म-ध्यान अच्छा रहा। गुरुदेव ने अपनी
डायरी में लिखा है-“यहाँ पर पढे-लिखे काफी हैं, पर स्थानीय संघ में उनके द्वारा कोई लाभ नहीं लिया जाता।" | यहाँ का गोदावत जैन गुरुकुल किसी समय बड़ा जाना माना गुरुकुल रहा है। यहाँ पर रतनलाल जी संघवी अच्छे
अभ्यासशील श्रावक थे, किन्तु समाज में ऐक्य नहीं था। यहाँ से चीताखेड़ा, जीरण, मल्हारगढ़ को फरसते हुए मेवाड़ में स्वाध्याय-सामायिक की अलख जगाकर एवं व्यसनों से अनेकों को मुक्त कराकर आप पीपलिया मंडी पधारे । दोपहर में यहाँ विराजित महासती रामाजी की शिष्या सती दीपकंवर जी और कंचनकंवर जी दर्शनार्थ पधारी एवं शास्त्रीय प्रश्नोत्तर हुए। • मालव प्रदेश की ओर
पीपलिया मंडी से विहार कर आप विहारक्रम से बोतल गंज, नयी बस्ती, जनकपुरा एवं मन्दसौर पधारे । प्रातः जनकपुरा में आषाढ कृष्णा १० को गुरुदेव ने प्रवचन में फरमाया –“जिनशासन जीवन निर्माण की कला सिखाता है। चण्डकौशिक ने प्रभुकृपा से इसी कला को सीखकर आत्म-कल्याण किया।" "समाज धर्म है - उपशम भाव । सर्वथा कषाय के वेग को स्वाधीन नहीं कर पाओ तो इतना तो अवश्य ध्यान रखना कि घर के झगड़े धर्म-समाज में