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________________ (प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड १२७) ओस्तवाल व श्री डोशी जी के उल्लेखनीय प्रयासों से भूधर जैन ज्ञान भण्डार की स्थापना हुई। श्री भूरमलजी बोकड़िया की अध्यक्षता व श्री जतनराजजी मेहता के मंत्रित्व में पुरातत्त्व साहित्य के संरक्षण का निश्चय किया गया। यहाँ स्थित मन्दिर के भण्डार का पूज्य प्रवर ने तीन घण्टे अवलोकन किया। इसमें ४०-४५ पुढे थे एवं पाँचवी शताब्दी से पूर्व का भी साहित्य उपलब्ध था। कल्याणकर पूज्यवर ने भण्डार को व्यवस्थित करने की प्रेरणा की। यहाँ से गवारडी होते हुए आप छोटी पादू पधारे। करुणानाथ ने छोटी पादू आना यहाँ की फूट समाप्त होने के आश्वासन पर स्वीकार किया था। अत: आपके पदार्पण से पारस्परिक कलह, प्रेम के सुखद वातावरण में बदल गया। प्रवचन में 'दुःख का कारण कषाय है' ऐसा समझाते हुए क्रोध के सम्बन्ध में दुर्योधन का उदाहरण दिया, जिससे महाभारत का युद्ध हुआ। बडी पादू के उपाश्रय के खम्भे पर संवत् १७४८ के दो शिलालेख थे, जिनकी नकल श्री जतनराजजी मेहता मेड़ता ने की। प्रवचन में आप श्री ने फरमाया -"संसार का राग देव, गुरु एवं धर्म के प्रति अनुराग में बदल दो। तन, धन एवं कुटुम्ब का राग संसार का फेरा बढ़ाने वाला है और देव, गुरु एवं धर्म के प्रति अनुराग फेरा घटाने वाला है।” विहार में श्रावकों का प्रेम द्रष्टव्य था। मेवड़ा पहुंचने पर आपने शान्तिनाथ की प्रार्थना के साथ शान्तिनाथ भगवान के पूर्वभव मेघरथ राजा का परिचय देते हुए प्रवचन फरमाया कि मेघरथ ने कबूतर की रक्षा के लिये अपने प्राणों की परवाह नहीं की, वचन को निभाया । इसलिये शान्तिनाथ के रूप में माता के उदर में आते ही सर्वत्र शान्ति हो गई। तापत्रय को मिटाने हेतु पूज्य श्री ने गाँव-गाँव एवं घर-घर में शान्तिनाथ की प्रार्थना करने हेतु प्रेरणा की। चरितनायक कई बार भगवान शान्तिनाथ की स्तुति करते थे। आत्मिक शान्ति हेतु प्रभु शान्तिनाथ पर उन्होने प्रार्थना की रचना भी की, जिसमें सर्वत्र शान्ति की भावना भायी गई है - भीतर शान्ति, बाहिर शान्ति, तुझमें शान्ति मुझमें शान्ति । सबमें शान्ति बसाओ, सब मिल शान्ति कहो ॥ मेवड़ा से भेरूंदा, थांवला एवं तिलोरा में भोग से योग की ओर उन्मुख होने की प्रेरणा करते हुये सन्तमण्डल | सहित आपका अजमेर नगर में पदार्पण हुआ। अजमेर में पौष शुक्ला द्वादशी, १७ जनवरी, १९६२ को ओसवाल हाई स्कूल के विशाल प्रांगण में आपश्री के श्रीमुख से श्रीमती इचरज कुंवर जी (धर्मपली श्री मोहनलाल जी नवलखा) की भागवती दीक्षा सम्पन्न हुई। इस अवसर पर जयपुर निवासी श्री केवलचन्दजी हीरावत, श्री किशोर चंदजी बोथरा व ब्यावर के श्री मिश्रीमलजी बोथरा ने आजीवन शीलव्रत अंगीकार किया। पौष शुक्ला चतुर्दशी को पाली, जयपुर और सैलाना की विनतियाँ हुई।। • आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज का स्वर्गवास माघकृष्णा दशमी को अजमेर में प्रातःकाल जंगल से लौटते ही ज्ञात हुआ कि रेडियो की खबर के अनुसार आचार्य श्री आत्माराम जी म.सा. का स्वर्गवास हो गया है। इस समाचार को सुनते ही पूज्य हस्ती अवाक् रह गए। सभी सन्तों ने कायोत्सर्ग किया। इस शोक में पूरा अजमेर बंद रहा। मुस्लिम भाइयों को प्रेरणा देने से उन्होंने भी | कत्लखाने बंद रखे। अपराह्न दो बजे श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई जिसमें चरितनायक ने फरमाया कि आत्माराम जी म.सा. जैसे आचार्यों का जीवन- चरित्र प्रेरणाओं का झरना होता है जो अविरल बहता रहता है। उन्होंने | आचार्य श्री आत्माराम जी म.सा. के जीवन की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं विशेषताओं का उल्लेख करते हुए | उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपना जीवन सार्थक करने को कहा। आपश्री ने बताया कि स्व. आचार्य श्री आत्माराम जी म. के जीवन को दो विशेषताएँ थी। प्रथम तो वे सतत स्वाध्यायनिरत रहते थे। शास्त्रों एवं ग्रंथों का
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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