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________________ सम्पादकीय xiv महोदधि आचार्यप्रवर श्री आत्माराम जी म.सा. चरितनायक के लिए अपने पत्र में 'परिसवरगंधहत्थीणं' विशेषण का प्रयोग करते थे। यह शब्द सामायिक सूत्र के 'नमोत्थुणं' पाठ में अरिहन्तों एवं सिद्धों के विशेषण रूप में प्रयुक्त हआ है। आगमज्ञ आचार्यप्रवर श्री आत्माराम जी म.सा. ने कुछ सोच विचार कर पूज्य चरितनायक के लिए इस विशेषण का प्रयोग किया होगा। हाथियों में जिस प्रकार 'गंधहस्ती' की श्रेष्ठता स्वीकृत है उसी प्रकार वे पुरुषों में श्रेष्ठ थे। आपके संयम, अनुशासन, विद्वत्ता एवं साधना की सौरभ चहुँ दिशाओं को आकर्षित करती थी। इस ग्रन्थ के माध्यम से पुरुषों में श्रेष्ठ महापुरुष पूज्य आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म.सा. को नमन किया | गया है, अतः ग्रन्थ का नाम 'नमो पुरिसवरगंधहीणं' अर्थवत्ता लिए हुए है। उपलब्ध सामग्री ही इस ग्रन्थ का आधार बनी है, इसलिए कुछ स्थानों पर विवरण अपूर्ण भी रहा है। ग्रन्य को प्रामाणिक बनाने का पूरा प्रयास किया गया है। इसमें पौष शुक्ला चतुर्दशी संवत् 2017 (डायरी नं. 2) से आचार्यप्रवर की उपलब्ध दैनन्दिनियों का यथावश्यक उपयोग किया गया है। दैनन्दिनियों में मुख्यतः प्रतिदिन की विहारचर्या, ग्रामों के नाम, दूरी, प्रमुख घटनाओं, सन्त-सतियों के मधुर मिलन, दीक्षा, समाधिमरण आदि का उल्लेख है। स्थान-स्थान पर स्वयं के चिन्तन एवं विचार भी अंकित हैं, जिनका उपयोग जीवनी-खण्ड एवं दर्शन-खण्ड में किया गया है। दैनन्दिनियों की कई बातें संकेतात्मक हैं, जिन्हें बिना पूर्व भूमिका के समझना शक्य नहीं है। ___ परमपूज्य आचार्यप्रवर श्री हीराचन्द्र जी म.सा., मधुर व्याख्यानी श्री गौतममुनि जी म.सा., शासन प्रभाविका श्री मैनासुन्दरी जी म.सा. के सान्निध्य में बैठकर पूज्य चरितनायक के जीवन प्रसंगों, संस्मरणों, उपदेशों, घटनाओं आदि के संबंध में सैद्धान्तिक विचार-विमर्श करने से अनेक अमूल्य सुझाव प्राप्त हुए। जिनसे जीवन ग्रन्थ में प्रामाणिकता एवं निर्दोषता में अभिवृद्धि हुई है। एतदर्थ सम्पादक-मण्डल पाठकवृन्द की ओर से आचार्यप्रवर, सन्तप्रवर एवं शासन प्रभाविका जी के चरणों में कोटिशः वन्दन करता हुआ हृदय से कृतज्ञता स्वीकार करता है। जीवनी लेखन में अपने पूर्व में लिखित सामग्री का यथावसर उपयोग किया गया है। अतः मैं उन सभी : पूर्व विद्वानों पं. श्री शशिकान्त जी झा, श्री गजसिंह जी राठौड़, डॉ. मंजुला जी बम्ब, डॉ. महेन्द्र जी भानावत, श्री लक्ष्मीकान्त जी जोशी एवं श्री पुखराज जी मोहनोत का हृदय से कृतज्ञ हूँ। डॉ. मंजुला जी बम्ब का विशेष आभारी हूँ, क्योंकि उनके द्वारा लिखित सामग्री इस ग्रन्य के लेखन में मुख्य आधार बनी।। शासन सेवा समिति के सदस्य एवं 'आचार्य श्री हस्ती जीवन चरित्र प्रकाशन समिति के अध्यक्ष अग्रज भ्राता श्री ज्ञानेन्द्र जी बाफना ने जब नवम्बर 2002 में जीवनी की सामग्री का पूर्ण मनोयोग के साथ निरीक्षण प्रारम्भ किया तो मैंने उन्हें दूरभाष पर कहा- "अब सिंह जाग गया है, कार्य शीघ्र सम्पन्न हो जायेगा।'' आपने जीवनी-खण्ड का स्वयं पारायण करते हुए मधुर व्याख्यानी श्री गौतममुनि जी म.सा. की सेवा में नियमित रूप से बैठकर वाचन किया तथा यथोचित तथ्यात्मक संशोधन पूर्वक इसे समृद्ध बनाया। सन् 1979 के जलगांव चातुर्मास से सन् 1990 के पाली चातुर्मास तक के विवरण का लगभग पुनर्लेखन किया। आपने 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' अध्याय, 'कल्याणकारी संस्थाएँ' तथा 'चरितनायक की साधना में प्रमुख सहयोगी साधक महापुरुष' नामक परिशिष्ट का भी लेखन किया है। आपके असीम स्नेह, अगाध विश्वास एवं परम आत्मीय भाव इस ग्रन्थ का कार्य सम्पन्न करने में मेरे लिए सम्बल रहे हैं। आपका आभार मैं किन शब्दों में व्यक्त करूँ, सभी शब्द छोटे पड़ते हैं। __ शासन सेवा समिति के सदस्य माननीय श्री प्रसन्नचन्द जी बाफना ने अपनी व्यापारिक व्यस्तताओं के
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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