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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड १०९ पुष्प ऋषि जी एवं हिम्मत ऋषि जी भी साथ ही विराजे । पारस्परिक सौहार्दपूर्ण व्यवहार से अजमेर निवासी प्रसन्न थे। चार मास तक धर्माराधन एवं तपश्चरण का आल्यादकारी ठाट रहा। यहां मिर्जापुर निवासी श्रीमती राजकंवर जी (धर्म पत्नी श्री रूपचंद जी सुराणा) ने कार्तिक शुक्ला १० एवं सादड़ी निवासी बाल ब्रह्मचारिणी बहन श्री जतनकंवरजी (सुपुत्री श्री दानमल जी) ने मार्गशीर्ष कृष्णा १२ को श्रमणी धर्म की दीक्षा अंगीकार की। . भीनासर सम्मेलन (संवत् २०१३) अब २६ मार्च से ६ अप्रैल १९५६ तक भीनासर में आयोज्यमान सम्मलेन निकट था। अतः चरितनायक अजमेर से जोधपुर भोपालगढ़ होते हुए पहले माघ शुक्ला ४ संवत् २०१२ को नोखामंडी पधारे, जहाँ अनेक प्रमुख श्रमण-श्रमणी पूर्व विचार-विमर्श हेतु एकत्र हो रहे थे। यहाँ पारस्परिक विचार-विमर्श के साथ जोधपुर के संयुक्त चातुर्मास की कार्यवाही तथा प्रतिवेदनों पर विचार कर निर्णायक स्वरूप प्रदान किया गया। प्रायश्चित्त विधि पर विचार कर उसे भी अन्तिम रूप दिया गया। देशनोक में फाल्गुन कृष्णा षष्ठी को प्रतिनिधि मुनियों का चुनाव किया गया, जिसमें २२ सम्प्रदायों के ५२ प्रतिनिधि चुने गये। इनमें चरितनायक एवं पं. श्री लक्ष्मीचन्द जी महाराज सम्मिलित थे। बीकानेर होते हुए आप भीनासर पहुंचे। सम्मेलन में १३५ मुनिवर एवं १४७ महासतियों का पर्दापण हुआ। प्रतिनिधियों के अतिरिक्त अन्य मुनियों एवं महासती-मण्डल को दर्शक के रूप में बैठने की अनुमति प्रदान की गई। प्रतिनिधि सन्तों ने नोखामण्डी देशनोक, बीकानेर और भीनासर इन चार स्थानों पर लगभग ४२ दिनों तक पारस्परिक विचार-विमर्श करने के अनन्तर श्रमणसंघ को सुदृढ बनाने और सम्पूर्ण स्थानकवासी समाज को एकता के सूत्र में आबद्ध करने के लक्ष्य से अनेक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए। चरितनायक ने सम्मेलन में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा “सादड़ी सम्मेलन में आप सब मुनिवरों ने संघ ऐक्य की भावना से जो त्याग और साहस दिखाया वह अपूर्व था। आरम्भ में हमने आचार्य श्री को देव समझकर उनकी आज्ञा से कार्य करने की प्रतिज्ञा ली और उनके प्रति निष्ठा प्रकट की थी। किन्तु आज की हमारी स्थिति ऐसी नहीं है । यही कारण है कि संघ-ऐक्य का भव्य भवन चार वर्षों के लम्बे समय में भी पूरा नहीं हो सका। हम संघ में असम्मिलित साधु-साध्वियों का सहयोग प्राप्त नहीं कर सके। इतना ही नहीं संघ में सम्मिलित आत्मार्थी योग्य सन्त भी स्थिति नहीं सुधरी तो किनारा कर सकते हैं। इस सम्मेलन में हमें इन स्थितियों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा। चरितनायक ने अपने उद्बोधन में इस बात पर बल दिया कि श्रमण का सबसे बड़ा बल, सबसे महत्त्वपूर्ण धन | अथवा जीवन सर्वस्व आचारबल ही है। ज्ञान के साथ क्रिया का आराधन करना ही उसकी सबसे बडी निधि है। भीनासर सम्मेलन में निम्नाङ्कित उल्लेखनीय निर्णय हुए१. कम से कम १० मिनट की प्रतिदिन सामूहिक प्रार्थना कराना। २. ध्वनिवर्धक यन्त्र का उपयोग नहीं करना (पंजाब एवं उत्तरप्रदेश के सन्तों को एक निर्णय के लिए छोड़ा | गया) ३. एकल विहारी साधु एवं एक या दो के संघाटक में विचरण करने वाली साध्वी को श्रमणसंघ में सम्मिलित | करते समय उनके स्वच्छन्द विहार काल की दीक्षा छेद करना) ४. प्रतिक्रमण करते समय संघाटक के मुख्य साधु को आचार्य की एवं आचार्य को श्रमण भगवान महावीर
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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