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________________ १०४ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं जोधपुर की सिंह पोल में श्री रत्न जैन पुस्तकालय तथा जलगांव में जैन ग्रन्थागार जैसे विशाल ज्ञान भंडार जैन जगत् को उपलब्ध हो सके। चरितनायक नागौर चातुर्मास के लक्ष्य से महामन्दिर पधारे। इधर जयमलजी म. सा. की सम्प्रदाय के श्री चौथमलजी म.सा. ने अत्यधिक रुग्ण होने से संथारा ग्रहण कर लिया था। मुनि श्री की प्रबल अभिलाषा थी कि पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. इस अन्तिम धर्म-साधना में उनके साथ रहें। वे उन्हें बार-बार याद कर रहे थे। चरितनायक नागौर की ओर निर्धारित विहार स्थगित कर मुनि श्री की सेवा में आहोर की हवेली पधारे। चातुर्मास काल निकट था तथापि धर्माराधन एवं मुनि श्री की अभिलाषा को ध्यान में रखकर संथारे के सीझने तक उनके पास स्वयं रहने की सहर्ष स्वीकृति ही नहीं दी, वरन् स्वात्म-बोध, आत्म-जागरण के संदेश देने वाले भजनों के अलावा स्वयं ने 3 ध्यान-चिन्तन से चार अध्यात्म-गीतिकाओं की रचना कर उन्हें सुनाया और मृत्यु को महोत्सव बनाते हुए उन्हें परलोक की महायात्रा के लिए प्रचुर पाथेय प्रदान किया। 'मेरे अन्तर भया प्रकाश', मैं हूँ उस नगरी का भूप' 'समझो चेतन जी अपना रूप' आदि आध्यात्मिक गेय पदों की रचना चरितनायक ने इसी समय की। आषाढ शुक्ला द्वितीया को १३ दिवसीय संथारा पूर्ण होने पर संस्कृत भाषा में आपने काव्यात्मक श्रद्धांजलि समर्पित की मरौ धरायां जयमल्लपूज्योऽभवत्प्रसिद्धो मुनिनायकः शमी। कलिप्रभावात्तस्यैव वंशे-क्षीणेऽभवत्तूर्यमल्लो यशस्वी ॥१॥ निरस्ततन्द्रेण तितीर्पणा व्रतं, वीरोचितं भक्त-त्यागादिरूपम्। अमोहभावेन निजात्मशुद्ध्या , आसेवितं साम्यसुरेण चेतसा ।।२।। रुजातिरेक: समपीडयत्तनु, सोढुं न शक्यं बलधारिभिर्नरैः । सहिष्णुतायां मुनिपुङ्गवेन, चमत्कृताः स्वेतरदर्शका जनाः ।।३।। शाश्वत हिता संयमयोगचर्या, भद्रा त्वदीयाचरणस्य श्रेणिः । व्यक्तं तनुं नश्वरभावभाजं, नित्यं शिवं मुक्तिपदजिगीषुणा ।।४।। आश्चर्यभावं भजते मदीयं, चित्तं चरित्रं हि दष्टवा त्वदीयम। यस्यां तिथौ मर्त्यलोकेऽवतीर्णस्तमेव स्वर्गारोहोऽप्याकार्षीः ।।५।। भूयो भूयोऽपि वंदेऽहं शान्तं धीरं महत्तरम्। सुमनोऽहं कृपादृष्टः किचित् सर्वमुपार्जयम्॥ इसके अनन्तर आप स्वामीजी श्री सुजानमल जी म.सा. की सेवा में पधारे और अपराह्न में उनसे मांगलिक श्रवण कर नागौर की ओर उग्र विहार किया। दिन में दो-दो बार उग्र विहार कर आषाढ शुक्ला १३ की अपराह्न नागौर पधारे । वहाँ सुराणा की बारी के बाहर मोहनलालजी बोथरा के मकान में विराजे । • नागौर चातुर्मास (संवत् २००९) ____ सं. २००९ के नागौर चातुर्मास में प्रथम दिन से ही आध्यात्मिक उल्लास का वातावरण बन गया। तपस्या का ठाट लगा। प्रबोधक प्रवचनों की धारा बही । चरितनायक महिला जागृति एवं बालिकाओं में संस्कारों पर अधिक बल देते थे। आपका चिन्तन था कि बालिका यदि संस्कारित होती है तो वह एक नहीं, दो कुलों को शिक्षित एवं संस्कारित करेगी। इस दृष्टि से आपने कन्या पाठशाला की आवश्यकता पर बल देते हुए श्राविकावर्ग में धार्मिक संस्कारों को जगाने की प्रेरणा की। आपने फरमाया-"जिस प्रकार चारों पहियों के समान रूप से सुदृढ़ एवं गतिशील होने पर ही कोई रथ प्रगति पथ पर निरन्तर अग्रसर हो सकता है, ठीक उसी प्रकार श्रमण
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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