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________________ - - - - सम्पादकीय xii अपनी साधना में आगे बढ़ाने हेतु आपने अमूल्य पाथेय एवं ज्ञानचक्षु का उन्मीलन करने वाली औषधि प्रदान की है। आपने सामाजिक कुरीतियों एवं अन्धविश्वास पर भी करारी चोट की है तथा स्वाध्याय और सामायिक को जीवन-निर्माण एवं जीवन उन्नयन हेत आवश्यक प्रतिपादित किया है। आपके विचारों को पढकर पाठक को निश्चित ही अंधी मान्यताओं के मकड़जाल से निकलने की एवं उच्च लक्ष्य को लेकर धर्म-साधना में प्रवृत्त होने की प्रेरणा प्राप्त होगी। तृतीय खण्ड चरितनायक के महान् व्यक्तित्व पर प्रकाश डालता है। आपके व्यक्तित्व पर इस ग्रंथ के आमुख एवं जीवनी खण्ड के अंतिम अध्याय 'अध्यात्म योगी : महाप्रयाण की ओर' में संथारा और समाधिमरण के प्रसंग पर संत-महापुरुषों के द्वारा प्रेषित संदेशों में भी कुछ विचार गुम्फित हुए हैं, किन्तु संतों, महापुरुषों एवं भक्त श्रावकों के जीवन विकास में आपके योगदान एवं उनके हृदय में आपकी छवि के दर्शन इस खण्ड के अग्रांकित दो स्तबकों में परिलक्षित होते हैं- 1. संस्मरणों में झलकता व्यक्तित्व 2. काव्यांजलि में निलीन व्यक्तित्व। प्रथम स्तबक गद्य में है तथा द्वितीय स्तबक पद्य में है। आचार्यप्रवर के व्यक्तित्व की विशेषताएं इन स्तबकों के माध्यम से नव्य शैली में प्रकट हुई हैं। आपके व्यक्तित्व पर सीधा लेख आमन्त्रित करने की अपेक्षा प्रथम स्तबक में संस्मरणों को स्थान दिया गया है। संस्मरण लेखक की चेतना से सीधे जुड़े रहते हैं, जिन्हें पढ़कर पाठक गुणसमुद्र आचार्यप्रवर की विशेषताओं का स्वयं आकलन कर सकता है। वैसे तो सम्पूर्ण ग्रन्थ ही आपके व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करता है, किन्तु इन संस्मरणों में जो सहज एवं अनुभूत अभिव्यक्ति हुई है, उससे पाठक की श्रद्धा चरितनायक के गुणों के प्रति स्वतः उमड़ती है। घटनाओं के माध्यम से पाठक को चरितनायक के गुणों का प्रत्यक्ष दर्शन होता है। गजेन्द्रगणिवर एवं आचार्य हस्ती के नामों से विश्रुत चरितनायक के व्यक्तित्व की विभिन्न विशेषताएँ इन संस्मरणों में अभिव्यक्त हुई हैं। आचार्यप्रवर हस्ती एक महान् अध्यात्म योगी, उच्च कोटि के चारित्रनिष्ठ साधक संत, गहन विचारक एवं युगमनीषी संत थे। आपकी इन विशेषताओं के अतिरिक्त इन स्तबकों में निस्पृहता, अप्रमत्तता, उदारता, करुणाभाव, गुणियों के प्रति प्रमोदभाव, वचनसिद्धि, भावि द्रष्टुत्व, चारित्र पालन के प्रति सजगता, आत्मीयता, असीम आत्म-शक्ति, विद्वत्ता, पात्रता की परख, दूरदर्शिता आदि अनेक गुणों का बोध होता है। संस्मरणों को पढ़ते समय भक्त-हृदय में आपकी गहरी पेठ एवं उसके मनोभावों को बदलने की क्षमता का भी बोध होता है। संस्मरणों से यह भी स्पष्ट होता है कि आपके प्रति श्रद्धालुओं को जीवन में बदलाव के चमत्कार का भी अनुभव हुआ और उन्हें विभिन्न अप्रत्याशित घटनाओं में भी चमत्कार परिलक्षित हुए। प्रथम स्तबक के अनुशीलन से यह सिद्ध होता है कि आपकी साधारण सी देह में एक महान् | असाधारण संत का जीवन ओतप्रोत था। संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में समय-समय पर किए गए काव्यमय गुणगानों में से कतिपय रचनाएँ द्वितीय स्तबक में संकलित हैं। इनमें आपका साधनाशील एवं युगप्रभावक व्यक्तित्व उजागर हुआ है। पूज्य घासीलाल जी म.सा. जैसे आगममनीषी संतों ने आप पर संस्कृत में अष्टक की रचना कर आपके व्यक्तित्व को प्रणाम किया है। उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी, पं. श्री घेवरमुनि जी, पं. श्री रमेशमुनि जी शास्त्री, पं. रत्न श्री वल्लभमुनि जी आदि संत प्रवरों की काव्यांजलियों एवं अष्टकों में आपके प्रभावक एवं व्यापक व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। | हिन्दी एवं मारवाड़ी मिश्रित काव्य-कृतियों का गान करते हुए आपके प्रति श्रद्धा, समर्पण एवं कृतज्ञता के भाव जन-जन के मन में सहज ही स्फुरित होते हैं। चतुर्थ खण्ड आपकी साहित्य-साधना एवं काव्य-साधना से संबद्ध है। इस खण्ड में दो अध्याय हैं। प्रथम अध्याय आपकी साहित्य-साधना की महत्ता का परिचायक है। जीवन के प्रारंभिक वर्षों में आपने दशवैकालिक aanduranamavli
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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