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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड ७७ • पाली चातुर्मास (संवत् १९९२) वि.सं. १९९२ का चातुर्मास सम्पन्न करने के लिए आचार्य श्री ठाणा ६ से पाली पधारे। यहाँ नारेलों के भखार में आपका चातुर्मास हुआ, जो कालुरामजी रेड की धर्मपत्नी के नेश्राय में था। संघ का संगठन, अनुशासन और धर्मप्रेम श्लाघनीय रहा। सभी सम्प्रदायों के श्रावक-श्राविकाओं ने धर्माराधन का लाभ लिया। पाली का चातुर्मास सानन्द धर्मवृद्धि पूर्वक सम्पन्न हुआ। चातुर्मास में सर्व श्री हस्तीमलजी सुराणा, पुखराजजी लूंकड, इन्द्रमलजी डोसी, नथमलजी पगारिया, हस्तीमलजी रेड आदि व्यवस्था में अग्रणी थे। वयोवृद्ध श्रावक श्री मुन्नीलालजी, मूलचन्दजी कटारिया आदि शास्त्र-श्रवण के रसिक थे। इस चातुर्मास काल में पूज्य श्री सोहनलाल जी म.सा. (पंजाबी) का अमृतसर में स्वर्गगमन होने पर, | आचार्यप्रवर ने संस्कृत भाषा में अपनी गेय भावाञ्जलि इस प्रकार समर्पित की काल ! किमु निष्कारुण्यं कृतम् ॥ध्रु.॥ हन्त काल ! निर्दयता - स्वीकृतहदा त्वया किं कृतम्। निर्धनधनमिव मुनिसर्वस्वं सौवर्णं किं हतम् ॥१॥ चिरपालितं मनीन्द्र . निधानं ज्ञानेनालङ्कृतम् । वीरसंघमुद्बोधयितुं यैः प्रान्ते यतनं धृतम् ॥२॥ नो मुनिवृन्दं संघटितं नो शास्त्रं स्वं वोद्भुतम् । जिनशासनोद्दिधीर्षा - विधितो विधिना पृथक्कृतम्॥३॥ यतमानानां साधनहीनं शमिनां समयाऽऽदृतम्। पूज्यैः सोहनलालमुनीन्द्रैर्देवत्वं संभृतम् ॥४॥ हस्तिमल्लमुनिरभ्यर्थयते गीर्वाणालयसृतम्। सदा कार्यमार्यैराहतमिह दिव्यतयोपकृतम् ।।५।। रचना का भाव इस प्रकार है - "हे काल ! तुमने निर्दयता स्वीकार कर यह क्या किया ? निर्धन के धन की | भाँति मुनि सर्वस्व सौवर्ण का हरण कर लिया। ज्ञान से अलङ्कृत मुनि श्री ने पंजाब में वीरसंघ को उद्बोधित करने | का यत्न किया।” पं. दुःखमोचनजी झा ने पृथक् रूपेण संस्कृत भाषा विरचित श्रद्धाञ्जलि प्रेषित की। पाली का सफल चातुर्मास सम्पन्न कर आचार्य श्री सोजत, ब्यावर होते हुए वयोवृद्ध महासती जी बड़े राधाजी को दर्शन देने अजमेर पधारे । अजमेर श्री संघ एवं स्थिरवास विराजित महासतीजी के आग्रह से अगले चातुर्मास के लिए अजमेर की विनति स्वीकार की गई। महासतीजी को दर्शन देकर आप श्री किशनगढ़, मदनगंज आदि क्षेत्रों को पावनकर शेषकाल में जयपुर पधारे । मार्ग में पूज्य श्री मन्नालालजी म. की परम्परा के आत्मार्थी मुनि श्री खूबचन्दजी म.सा. के साथ आपका प्रेम-मिलन हुआ। जयपुर में धर्मप्रचार कर चातुर्मासार्थ अजमेर पधारे। • अजमेर चातुर्मास (संवत् १९९३) आचार्य श्री का १६वां चातुर्मास वि. संवत् १९९३ में ठाणा ६ से अजमेर में हुआ। अजमेर में वैराग्यवती बहन श्रीमती हरकंवर जी (कोटा निवासी श्री तेजमल जी बोहरा की धर्मपत्नी) दीक्षित होने के लिए अत्यंत उत्कण्ठित थी। श्वसुर पक्ष से दीक्षा के लिए आज्ञा में विलम्ब जानकर बरेली के सेठ श्री रतनलाल जी नाहर ने अपने पर जिम्मेदारी लेकर अभिभावक के रूप में दीक्षा की अनुमति दी। बड़े धनकंवर जी महाराज की निश्रा में इनकी दीक्षा
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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