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________________ मारवाड़ एवं मेवाड़ में विचरण (संवत् १९९०-१९९४) • जोधपुर चातुर्मास : उपाध्याय श्री आत्मारामजी के साथ (संवत् १९९०) जोधपुर श्री संघ की ओर से श्री चन्दनमलजी मुथा, श्री शम्भूनाथ जी मोदी, श्री लच्छीरामजी सांड प्रभृति श्रावकों की भावभरी उत्कट विनति के कारण उपाध्याय श्री आत्मारामजी महाराज एवं चरितनायक का संयुक्त चातुर्मास (संवत् १९९०) जोधपुर के लिए स्वीकृत हुआ। प्रथम मिलन होने पर भी दोनों परम्पराओं के मुनियों में आत्मीयता की लहर दौड़ गई। दोनों महापुरुष अपने मुनि-मण्डल सहित अजमेर से विहार कर पुष्कर, थांवला, मेड़ता सिटी आदि ग्राम-नगरों में धर्मोद्योत करते हुए हुए पीपाड़ पधारे। उपाध्याय श्री काबरों के नोहरे में और चरितनायक उपाश्रय (पुखराज की पाठशाला) में विराजे। दोनों महापुरुषों के व्याख्यान एक ही स्थान काबरा के नोहरे में होते रहे। तदुपरान्त वि.सं.१९९० का संयुक्त चातुर्मास करने हेतु जोधपुर पधारे। जोधपुर के नागरिक हर्षित एवं उत्साहित थे। धर्माराधन खूब हुआ। सन्तों में परस्पर इतना प्रेम भाव था कि किसी को सम्प्रदाय भेद का आभास ही नहीं होता था। दोनों संघाटकों के श्रमणों ने शास्त्रों के अध्ययन-वाचन का आनन्द लिया। उपाध्याय श्री आत्माराम जी म. और पूज्य श्री के इस संयुक्त चातुर्मास में अनेक उपलब्धियां हुईं। इसी चातुर्मास में उपाध्याय श्री ने तत्त्वार्थसूत्र के सभी सूत्रों का जैनागमों में उद्गम खोजा जिससे 'जैनागम तत्त्वार्थ समन्वय' ग्रन्थ तैयार हुआ। इसकी पाण्डुलिपि | का लेखन पं. दुःखमोचन जी झा ने किया। चरितनायक की मौन और ध्यान-साधना का भी विकास हुआ। जोधपुर के धर्म प्रेमी भक्तों ने सन्तों की सेवा एवं समाधि का पूरा ध्यान रखा। एकदा उपाध्याय श्री आत्मारामजी म.सा. के एक सन्त मोहवश अदृश्य हो गए। उन्हें नये प्रदेश में इस प्रकार की घटना से विशेष दुःख हुआ। आचार्य श्री को भी बड़ा विचार हुआ, पर आगे प्रकाश दिखा। उत्साही युवा समाजसेवी श्री विजयमलजी कुम्भट ने अपने सहयोगियों के माध्यम से बिना किसी को खबर दिए गवेषणा की और अदृश्य हुए मुनि को वापस उपाध्याय श्री की सेवा में पहुंचाकर शान्ति की सांस ली। युवकों में गोपनीयता, अनुशासन और निष्काम सेवा देख सन्त-समुदाय को भी बड़ी प्रसन्नता हुई। बुजुर्ग श्रावकों में चन्दनमलजी मुथा, नाहरमलजी पारख, धूलचन्दजी रेड पारसमलजी लुणावत आदि की सेवाएँ भी स्मरणीय थीं। श्री दौलतरूपचन्दजी भण्डारी के मधुर भजन सबके आकर्षण के केन्द्र थे। चतुर्विध संघ में शान्ति, प्रीति और सहयोग की नीति से ओसवाल सिंह सभा जोधपुर द्वारा संचालित सरदार हाई स्कूल में एक धार्मिक पुस्तक तीनों सम्प्रदायों को मान्य हो, वैसी तैयार कर चालू की गई। शाह नवरत्नमलजी भाण्डावत उस समय सरदार हाई स्कूल के अध्यक्ष थे। चरितनायक आचार्य श्री ने स्वयं अपने संस्मरणों में इस वर्षावास का स्मरण करते हुए लिखा है “उपाध्याय श्री के सहवास में ज्ञान-ध्यान , विचार चर्चा में आदान-प्रदान का बड़ा लाभ मिला। मौन और ध्यान-साधना में हमें काफी प्रेरणा मिली। वयोवृद्ध और ज्ञानवृद्ध होकर भी वे आचार्य पद का आदर रखते थे।" __ आचार्य श्री अमरसिंहजी म.सा. के समय रत्नवंशीय वादीमर्दन श्री कनीराम जी महाराज का उनसे वात्सल्य
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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