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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ७२ | ग्राम पधारे। दोनों महान् सन्तों का मिलन परस्पर विचारों के आदान-प्रदान के कारण और भी महत्त्वपूर्ण बन गया । | वृहद् साधु सम्मेलन का समय नजदीक था, आचार्य श्री ने अपने सन्तों के साथ अजमेर की ओर प्रस्थान किया । मंझला कद, उन्नत भाल, पृष्ठ भाग पर धर्मशास्त्रों के पुट्ठे, नीची नजर, स्कन्ध पर रजोहरण धारण किये तरुण वय आचार्य प्रवर में मानो धर्माचरण साकार हो उठा हो। ऐसे श्वेतवस्त्रधारी आचार्य श्री के चरणकमल अजमेर धरा पर पड़ते ही जय-जयकार के नारों से गगन गुंजायमान होने लगा । जनमेदिनी साधुचर्या के कायक्लेश से चिन्तित थी और आचार्य श्री विभिन्न इकाइयों में विभक्त होकर छिन्न-भिन्न हो रहे जैन समाज को एकता के सूत्र आबद्ध करने का चिन्तन कर रहे थे । श्रमण श्रमणी वर्ग में व्याप्त भिन्न-भिन्न समाचारियां, भिन्न-भिन्न आचार-विचार पर्वाराधन की तिथियों में मतभेद, द्रव्य और भाव के भेद से मतान्तर आदि पर विचार कर समान श्रमणाचार और समान तिथि पर्व कैसे हों, इत्यादि संघ- ऐक्य विषयक चिन्तन करने लगे । अचानक पण्डित रत्न शतावधानी मुनि श्री रत्नचन्द्र जी महाराज की ओर से वृहद् साधु सम्मेलन को एक वर्ष आगे स्थगित किये जाने की संस्तुति पर आचार्य श्री हस्तीमल जी म. ने पूर्व निर्धारित समय पर ही सम्मेलन करने | का अभिमत प्रकट किया। इससे चरितनायक की दृढ़ निर्णय क्षमता का परिचय मिला। वृहद साधु सम्मेलन का दृश्य अद्भुत था । ५ से १९ अप्रेल १९३३ तक चले इस सम्मेलन में स्थानकवासी | परम्परा की विभिन्न सम्प्रदायों के ४६३ श्रमणों एवं ११३२ श्रमणियों में से इस सम्मेलन में २३८ श्रमण एवं ४० | श्रमणियां उपस्थित थीं । सम्मेलन में २६ सम्प्रदायों के ७६ प्रतिनिधि मुनिराजों ने भाग लिया । चरितनायक आचार्य श्री हस्ती पूज्य श्री रलचंदजी म.सा. की सम्प्रदाय का नेतृत्व कर रहे थे । परम्परा के वयोवृद्ध अनुभववृद्ध स्वामीजी भोजराजजी म एवं श्री चौथमलजी म. भी आपके साथ प्रतिनिधि थे । अजमेर नगर में धर्म देवों का शुभागमन ऐसा लगता था कि मानों स्वर्ग से देव ही भूमि पर आये हों विभिन्न प्रांतों से पधारे संतों को समीर शुभ कार्यालय, केसरी चंदजी की हवेली एवं कचेरी में ठहराया गया । राजस्थान, गुजरात और पंजाब के संत समीर शुभ कार्यालय में विराजे । आचार्य श्री तीसरी मंजिल में विराज रहे थे मध्य में कविवर्य श्री नानचन्दजी म.सा, श्री मणिलालजी म.सा. एवं शतावधानी श्री रत्नचंदजी म.सा. विराज रहे थे । | कुएं के पास कच्छ के पूज्य श्री नानचन्द जी म. सा., दरवाजे पर पंजाबकेशरी युवाचार्य श्री काशीरामजी म.सा, उपाध्याय श्री आत्मारामजी म.सा, गणिवर्य श्री उदयचंदजी म.सा, वाचस्पति श्री मदनलालजी म.सा. आदि पंजाबी संत विराजे हुए थे । नीचे के भाग में मरुधर केसरी श्री मिश्रीमलजी म.सा, श्री छगनलालजी म.सा, और श्री कुन्दनमलजी म.सा. आदि संतगण सब सन्त मुनिराजों की देखरेख एवं सम्हाल के लिये विराजे हुए थे । सम्मेलन के समय लगभग ५० हजार श्रावक-श्राविका अजमेर में उपस्थित थे 1 समीर शुभ कार्यालय भवन (ममैयों के नोहरे) में बड़ के नीचे सम्मेलन की बैठकें होती थीं, जिनमें प्रतिनिधिगण गोलाकार विराजते । सम्मेलन का शुभारम्भ शतावधानी श्री रत्नचंदजी म.सा. द्वारा प्रार्थना एवं आपश्री द्वारा संस्कृत में मंगलाचरण के साथ हुआ। आप द्वारा प्रस्तुत स्वरचित मंगलाचरण की कुछ मंगल कड़ियाँ इस प्रकार हैं “सफलयतु मुनिसम्मेलनमदो, विजयतां मुनिसम्मेलनमदः । काला बहोः सुषुप्तां जैनीं जातिमहो सम्मदः । सम्बोधयति मातमध्वानं सम्पदः ।। "
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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