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________________ आचार्यपद पर आरोहण संवत् १९८६ के चातुर्मास के पश्चात् पूज्यश्री रत्नचन्द्र जी महाराज की सम्प्रदाय के सभी संतों और प्रमुख श्रावकों का पीपाड़ नगर में सम्मेलन हुआ। उस समय स्वामीजी श्री सुजानमलजी म.सा. संघ में सबसे वरिष्ठ एवं संघ-व्यवस्थापक सन्त थे। आपके जीवन में उदारता एवं सहयोग की भावना कूट-कूट कर भरी थी। आप चरितनायक से दीक्षा में २६ वर्ष बड़े होने पर भी संघ-सेवी और आज्ञाराधक सन्त थे। आपने सन्तों एवं प्रमुख श्रावकों के समक्ष अपने विचार रखते हुए फरमाया - “अब समय आ गया है कि हम आचार्य भगवन्त श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. के आदेश का शीघ्र पालन करें। अब हमें पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. को आचार्यपद की चादर ओढाकर उऋण हो जाना है।” स्वामीजी महाराज के विचारों को श्रवण कर श्रावकों ने 'हर्ष-हर्ष' , 'जय-जय' के जयनादों के साथ अपनी सहमति एवं प्रसन्नता की अभिव्यक्ति की। पद-प्राप्ति के लिए संसार में जहाँ मनमुटाव एवं झगड़े देखे जाते हैं, वहाँ इस धर्म-संघ में सौहार्द एवं प्रमोद का वातावरण था। जोधपुर संघ का अत्यधिक आग्रह रहा कि आचार्यपद महोत्सव का कार्यक्रम धर्मप्राण नगरी जोधपुर में सानन्द सम्पन्न हो। इस पर स्वामी जी म.सा. ने अपने सन्त-सतियों व प्रमुख श्रावक-श्राविकाओं से विचार-विमर्श कर जोधपुर संघ को इस महोत्सव हेतु अनुमति प्रदान की, साथ ही संवत् १९८७ की अक्षय तृतीया का पावन दिवस इस समारोह के आयोजन हेतु नियत किया गया। इस सर्वसम्मत निर्णय की खबर वासन्ती हवा की तरह सब ओर फैल गई। पीपाड़ से स्वामीजी श्री सुजानमल जी महाराज तथा अन्यान्य क्षेत्रों में जहाँ जहाँ जो भी सन्त-सती विराजमान थे, सभी ने जोधपुर की ओर विहार कर दिया। ___जोधपुर के प्रमुख कार्यकर्ताओं द्वारा एक ‘आचार्य पद महोत्सव समिति' का गठन किया गया। आवश्यक | तैयारियां प्रारम्भ कर दी गईं। महोत्सव के अवसर पर एकत्रित होने वाले हजारों अतिथियों के आवास, भोजन आदि की व्यवस्था हेतु स्थान निर्धारण तथा स्वयं सेवकों के संगठन तैयार किये गए और देश-विदेश के विभिन्न प्रदेशों में निवास करने वाले रत्नवंशी उपासकों को इस महोत्सव की सूचना भेजी गई। महोत्सव का स्थल सवाईसिंह जी की पोल (सिंह पोल) निर्धारित किया गया। ___ वैशाख के शुक्ल पक्ष के प्रारम्भ होते ही हजारों श्रावक-श्राविकाओं एवं श्रद्धालु नर-नारियों का जोधपुर में आगमन होने लगा। नगर में सर्वत्र हर्षोल्लास का वातावरण छाया हुआ था। ऐसे ही वातावरण में अक्षय तृतीया का वह शुभ दिन आ पहुँचा, जिसकी देश-विदेश के रत्नवंशीय चतुर्विध संघ के सदस्य उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे। __सूर्योदय के साथ ही रंग-बिरंगी पोशाकों में सजे सामाजिकों और श्रमणोपासकों के समूह सिंहपोल की ओर बढ़ने लगे। देखते ही देखते समारोह स्थल खचाखच भर गया। ___समारोह स्थल में पाटों पर स्थविर स्वामी जी श्री सुजानमल जी महाराज, बाबाजी श्री भोजराज जी म, मुनि श्री अमरचंन्द जी म, मुनि श्री लाभ चन्द्र जी म, मुनि श्री लालचन्द्र जी म, मुनि श्री चौथमल जी म. और लक्ष्मीचन्द जी महाराज विराजमान थे। इन्हीं संत-वृन्द के साथ हमारे चरितनायक अत्यंत ही शान्त एवं गंभीर मुद्रा लिये विराज रहे थे।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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