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________________ सव्वदेव त्ति असुरवत् द्वादशापि दण्डकदेवपदानि वाच्यानि, तेषामप्येकेन्द्रियेषुत्पत्तेरिति । णोपुढविकाइएहितो त्ति अनेन पृथिवीकायिकनिषेधद्वारेणाप्कायिकादयः सर्वे गृहीता द्विस्थानकानुरोधादिति, तेभ्यो वा नारकवर्जेभ्यः समुत्पद्येत । णोपुढविकाइयत्ताए त्ति देव-नारकवर्जाप्कायादितया गच्छेदिति, एवं जाव मणुस्स त्ति, यथा पृथिवीकायिका दुगइया इत्यादिभिरभिलापैरुक्ता एवमेभिरेवाप्कायादयो मनुष्यावसानाः पृथिवीकायिकशब्दस्थानेऽप्कायादिव्यपदेशं कुर्वद्भिरभिधातव्या इति । व्यन्तरादयस्तु पूर्वमतिदिष्टा एवेति । [सू० ६९] दुविहा णेरइया पन्नत्ता, तंजहा-भवसिद्धिया चेव अभवसिद्धिया चेव, जाव वेमाणिया १। ___ दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा-अणंतरोववण्णगा चेव परंपरोववण्णगा चेव, जाव वेमाणिया २॥ दविहा णेरड्या पन्नत्ता, तंजहा-गतिसमावन्नगा चेव अगतिसमावन्नगा चेव, जाव वेमाणिया ३॥ दुविधा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा-पढमसमओववन्नगा चेव अपढमसमओववन्नगा चेव, जाव वेमाणिया ४ दुविधा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा-आहारगा चेव अणाहारगा चेव, एवं जाव वेमाणिया ५। दुविहा णेरड्या पन्नत्ता, तंजहा-उस्सासगा चेव णोउस्सासगा चेव, जाव वेमाणिया ६। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा-सइंदिया चेव अणिंदिया चेव, जाव वेमाणिया । दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा-पजत्तगा चेव अपजत्तगा चेव, जाव वेमाणिया ८॥ दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा-सन्नि चेव असन्नि चेव, एवं पंचेंदिया सव्वे विगलिंदियवजा, जाव वाणमंतरा ९।
SR No.032373
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayhemchandrasuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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