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________________ (२०६) द्वितीय भाग में राजकोष का वर्णन किया गया है जिसके अन्तर्गत राजकर व्यवस्था में कानूनी टैक्स, अठारह प्रकार के कर तथा राजकोष को समृद्ध बनाने के उपायों का भी वर्णन किया गया है । तृतीय भाग को दो विभागों में विभक्त किया गया है। प्रथम सेना के अन्तर्गत चतुरंगिणी सेना के अंग, तथा द्वितीय विभाग में युद्ध का वर्णन किया है । चतुरंगिणी सेना के अंगों के अन्तर्गत (१) पदापि सेना, (२) अश्व सेना, (३) हस्तिसेना, और (४) रथसेना । अश्व सेना के अन्तर्गत अश्व सेना के अन्तर्गत अश्वों की किस्म तथा उनकी शिक्षा का भी वर्णन किया गया है । हस्ति सेना के अन्तर्गत हस्तियों की जाति तथा उत्तम प्रकार के हस्तियों की विशेषताओं तथा ऐरावत हाथी का वर्णन किया गया है। रथ-सेना के अन्तर्गत रथों के प्रकार बताये गये हैं। द्वितीय भाग में युद्ध एवं युद्ध के कारणों का वर्णन किया गया है। जिसमें जैन मान्यतानुसार बताया गया है कि उस अधिकाँश युद्ध स्त्रियों के कारण होते थे । मल कारण स्त्रियों के सौन्दर्य से आकृष्ट हो उन्हें प्राप्त करने के लिये तथा स्वयंवरों के अवसर पर प्रायः युद्ध हुआ करते थे। इसके अलावा युद्धनीति का तथा अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन किया गया है, जो कि उस समय युद्धों में प्रयोग किये जाते थे। षष्ठ अध्याय : "न्याय-व्यबस्था" इस अध्याय को दो भागों में बांटा गया है। प्रथम में न्याय-व्यवस्था तथा द्वितीय भाग में अपराध एवं दन्ड का वर्णन किया गया है। प्रथम भाग में न्याय व्यवस्था के अन्तर्गत न्याय का स्वरूप एवं प्रकार, न्यायाधीश एवं गवाहियों की शपथ का वर्णन किया गया है। द्वितीय भाग में अपराध एवं दण्ड के अन्तर्गत चोरों के प्रकार, चोरी के प्रकार, चोरों के आख्यान, मुकदमे, तथा जेलखाने का वर्णन जिसके अन्तर्गत राजगह के कैदखाने का वर्णन किया गया है। अपराध या फौजदारी व्यवस्था के कुछ ख्याल यहाँ मिलते हैं। . सप्तम अध्याय : “नगरादि व्यवस्था" इस अध्याय को दो भागों में बांटा गया है। प्रथम भाग में नगर
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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